नई दिल्ली– सुप्रीम कोर्ट ने एक प्रेमी जोड़े को सात लोगों की हत्या के मामले में सुनाई गई मौत की सजा को बरकरार रखा है प्रेमी जोड़े ने लड़की के परिवार के सात सदस्यों की हत्या कर दी थी।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कई हत्याओं का चौंकाने वाला कृत्य दीवानगी से प्रभावित था। चीफ जस्टिस एच एल दत्तू और न्यायमूर्ति अरूण मिश्र की पीठ ने परिवार के 10 महीने के बच्चे सहित सात सदस्यों की धारदार हथियार से हत्या करने की घटना को ‘दुर्लभतम’ करार देते हुए कहा कि दोषियों ने किसी पछतावे का प्रदर्शन नहीं किया है। और इसकी कम संभावना है कि उनमें सुधार होगा और वे भविष्य में किसी अपराध में लिप्त नहीं होंगे।
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कई बार इसका जिक्र करते हुए उसके अपराध को अमानवीय, क्रूरतम और किसी भी दशा में माफी योग्य न होने की बात कही है। इससे पहले कोर्ट ने दोषियों सलीम और शबनम की याचिका को खारिज कर दिया था, जो उन्होंने इलाहाबाद हाई कोर्ट की ओर से 2013 में सुनायी गयी सजा के खिलाफ दायर की थी |
पीठ ने कहा कि एक शिक्षित और सभ्य समाज में एक पुत्री परिवार में बहुमुखी एवं जरूरी भूमिका निभाती है, विशेष तौर पर अपने अभिभावकों के प्रति. वह देखभाल करने वाली, एक सहायक, एक सौम्य हाथ और एक जिम्मेदार आवाज होती है. वह हमारे समाज के पोषित मूल्यों की प्रतीक होती है, जिस पर अभिभावक आंख बंदकर भरोसा और विश्वास करते हैं |
मालूम हो कि 15 अप्रैल 2008 को शबनम बेहद सुनियोजित तरीके से अपने प्रेमी सलीम के साथ मिलकर इस वारदात को अंजाम दिया। शबनम में शुरू मे बहाना किया था। कि अमरोहा जिले में स्थित उसके घर पर अज्ञात हमलावरों ने हमला किया था। बाद में पता चला की उसने अपने प्रेमी के साथ मिलकर इस हादसे को अंजाम दिया।
कोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि शबनम खुद ग्रेजुएट होने के साथ ही अध्यापक थी, ऐसे में उसके द्वारा किया गया यह क्रूरतम अपराध किसी भी दशा में माफी योग्य नहीं है। अत: उसके खिलाफ निचली अदालतों द्वारा मुकर्रर की गई फांसी की सजा में किसी भी कमतरी की कोई गुंजाइश नहीं बचती। एजेंसी