नई दिल्ली : तीन तलाक की संवैधानिक वैधता के मुद्दे पर सुनवाई कर रहे सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को बड़ी टिप्पणी की। कोर्ट ने कहा कि भले ही इस्लाम की विभिन्न विचारधाराओं में तीन तलाक को ‘वैध’ बताया गया हो, लेकिन यह शादी खत्म करने का सबसे घटिया (worst) और अवांछनीय तरीका है।
बता दें कि चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया जेएस खेहर की अगुआई में पांच सदस्यीय बेंच ने लगातार दूसरे दिन शुक्रवार को तीन तलाक के मुद्दे पर सुनवाई जारी रखी।
कोर्ट ने अपनी यह राय उस वक्त रखी, जब पूर्व केंद्रीय मंत्री और सीनियर वकील सलमान खुर्शीद ने बेंच को कहा कि इस मुद्दे की न्यायिक समीक्षा की जरूरत नहीं है। खुर्शीद ने यह भी बताया कि मुस्लिमों की शादी के निकाहनामे में एक शर्त डालकर महिलाएं तीन तलाक को ना भी कह सकती हैं।
बता दें कि खुर्शीद इस मामले में कोर्ट के लिए अमीकस क्यूरी की भूमिका निभा रहे हैं। अदालत ने खुर्शीद से उन इस्लामिक और गैर इस्लामिक देशों की सूची देने के लिए कहा, जहां तीन तलाक पर बैन लगाया गया है। इसके बाद, बेंच को बताया गया कि पाकिस्तान, अफगानिस्तान, मोरक्को, सऊदी अरब जैसे देश शादी खत्म करने के तरीके के तौर पर तीन तलाक को मान्यता नहीं देते।
पीटीआई के अनुसार तीन तलाक पीड़ितों में से एक की ओर से अदालत में पेश सीनियर वकील राम जेठमलानी ने इस प्रथा की कठोर शब्दों में आलोचना की। जेठमलानी ने तीन बार तलाक को ‘घृणित’ बताते हुए कहा कि यह महिलाओं को तलाक का समान अधिकार नहीं देता। कोर्ट ने कहा, ‘तीन तलाक का अधिकार सिर्फ पुरुषों के पास है, महिलाओं को नहीं।
यह संविधान के बराबरी के अधिकार से जुड़े आर्टिकल 14 का उल्लंघन है।’ जेठमलानी ने कहा, ‘शादी तोड़ने के इस तरीके के पक्ष में कोई दलील नहीं दी जा सकती। शादी को एकतरफा खत्म करना घिनौना है, इसलिए इससे दूरी बरती जानी चाहिए।’
जेठमलानी ने कहा, ‘तीन तलाक लिंग के आधार पर मतभेद करता है और पवित्र कुरान के सिद्धांतों के खिलाफ है। कितनी भी दलीलें दी जाएं, लेकिन इस पाप से भरी घिनौनी प्रथा का बचाव नहीं किया जा सकता।’ जेठमलानी ने यह भी कहा कि कोई भी कानून पति की मर्जी के हिसाब से पत्नी को पूर्व पत्नी बनने देने की इजाजत नहीं देता। उनके मुताबिक, यह सबसे बड़ा असंवैधानिक बर्ताव है।