जस्टिस लोया की मौत स्वाभाविक थी या इसकी जांच की जरूरत है इस मामले में सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने आज अपने फैसले में कहा है कि SIT की जांच नहीं कराई जाएगी।
वहीं तीन जजों की बेंच ने आज अपना फैसला सुनाते हुए कहा कि जज लोया के मामले में जांच के लिए दी गई अर्जी में कोई दम नहीं है। वहीं कोर्ट ने यह भी कहा कि हम जजों के फैसले पर संदेह नहीं कर सकते हैं।
कांग्रेस नेता तहसीन पूनावाला, पत्रकार बीएस लोने, बांबे लॉयर्स एसोसिएशन सहित अन्य द्वारा विशेष जज बीएच लोया की मौत की निष्पक्ष जांच की मांग वाली याचिकाओं पर 16 मार्च को सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुरक्षित कर लिया था।
सुप्रीम कोर्ट के चार वरिष्ठ जजों द्वारा 12 जनवरी को किए गए प्रेस कांफ्रेंस की तात्कालिक वजह लोया केस की सुनवाई के लिए चुनी गई पीठ थी।
हालांकि बाद में उस पीठ ने खुद को इस मामले से अलग कर लिया था और इसके बाद चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ के समक्ष इस मामले की सुनवाई हुई थी।
कई दिनों तक चली हाई-वोल्टेज सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ताओं की ओर कहा गया कि जज लोया की मौत की निष्पक्ष जांच जरूरी है।
याचिकाकर्ता की ओर से पेश वरिष्ठ वकील दुष्यंत दवे ने कहा था कि जज लोया मामले में जो कुछ हो रहा है, वह परेशान करने वाला है। एक के बाद एक जज को सजा’ दी जा रही है। उन्होंने कहा पिछले दिनों जज लोया मामले को बांबे हाईकोर्ट को दूसरे जज के पास भेज दिया गया।
उन्होंने कहा था कि जज को इस मामले से इसलिए दूर कर दिया गया क्योंकि उन्होंने सोहराबुद्दीन एनकाउंटर मामले में भाजपा अध्यक्ष अमित शाह को आरोपमुक्त किए जाने के फैसले के खिलाफ अपील न दायर करने को लेकर सीबीआई से सवाल किया था।
उन्होंने जस्टिस जयंत एम पटेल के तबादले की भी बात कहीं। जस्टिस पटेल ने इशरत जहां एनकाउंटर मामले की सीबीआई जांच का आदेश दिया था।
महाराष्ट्र सरकार की दलील, याचिका सिर्फ मामले को तूल देने को दायर की
वहीं महाराष्ट्र सरकार का कहना था कि जज बीएच लोया की मौत की निष्पक्ष जांच की मांग वाली याचिकाएं एक राजनीतिक व्यक्ति को टॉरगेट करने के मकसद से दायर की गई है। सरकार का कहना था कि न्यायपालिका के संरक्षण का ढोंग रचकर याचिकाकर्ता एक व्यक्ति विशेष पर निशाना साध रहे हैं।
याचिकाकर्ता का मंशा है कि मामले को इसी तरह तूल मिलता रहे। याचिकाकर्ता यह संदेश फैलाने की कोशिश कर रहा है कि जज, पुलिस, डॉक्टर सहित सभी के साथ समझौता किया गया।
महाराष्ट्र सरकार के वकील मुकुल रोहतगी ने कहा था कि इस तरह के घातक प्रचलन को शीघ्र रोका जाना चाहिए। रोहतगी ने कहा था कि जजों को संरक्षण देना भारत के प्रमुख न्यायाधीश का कर्तव्य है और उनके द्वारा यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कानून का शासन चलता रहे।
रोहतगी ने जज लोया की मौत को लेकर संदेह पैदा करने वाली खबर को झूठा बताया था। उनका कहना था कि याचिकाओं में बेतुकेपन की सीमा लांघ दी गई है।
एक याचिकाकर्ता का कहना है कि जज लोया के साथ शादी समारोह में शामिल होने गए चार अन्य जज संदिग्ध हैं। एक कहता है कि वह इन जजों से सवाल-जवाब करना चाहता है। कोई कहता है कि बांबे हाईकोर्ट की प्रशासनिक समिति के खिलाफ अवमानना की कार्रवाई होनी चाहिए।
याचिकाकर्ताओं का यह कहना है कि जांच तीन दिनों में क्यों पूरी हुई। जज लोया को उस अस्पताल में क्यों ले जाया गया, दूसरे अस्पताल में क्यों नहीं ले जाया गया। उन्हें ऑटो से अस्पताल ले जाया गया जबकि सच्चाई यह है कि उन्हें जज की कार से अस्पताल ले जाया गया है। रोहतगी ने कहा था कि याचिकाकर्ता मनगढंत कहानियां रच रहे हैं।
राजनीतिक रूप से संवेदनशील है मामला
राजनीतिक रूप से बेहद संवेदनशील सोहराबुद्दीन एनकाउंटर मामले का ट्रायल चलाने वाले जज लोया की वर्ष 2014 में मौत हो गई थी। याचिकाओं में जज लोया की मौत की निष्पक्ष जांच कराने की गुहार की गई है।
गत नवंबर को यह मसला तब सामने आया था जब एक मीडिया रिपोर्ट में कहा गया कि जज लोया की बहन ने भाई की मौत को लेकर सवाल उठाए हैं। सोहराबुद्दीन एनकाउंटर मामले में भाजपा अध्यक्ष अमित शाह सहित कई वरिष्ठ पुलिस अधिकारी आरोपी थे।