नई दिल्ली: बीजेपी नेतृत्व ने महेंद्र नाथ पांडे की जगह स्वतंत्र देव सिंह को यूपी भाजपा अध्यक्ष बनाया है, तो इसके पीछे एक बड़ी रणनीति है। पार्टी की नजर 2022 के विधानसभा चुनाव पर तो है ही, उससे पहले उसे प्रदेश में होने वाले विधानसभा की 12 सीटों पर चुनाव की भी चिंता है। आइए समझने की कोशिश करते हैं कि राज्य के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के चहेते परिवहन, प्रोटोकॉल और ऊर्जा विभाग में राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) स्वतंत्र देव को नई जिम्मेदारी सौंपे जाने में किस-किस फैक्टर ने बड़ा काम किया है।
पार्टी ने स्वतंत्र देव सिंह को यूपी में भाजपा अध्यक्ष बनाए जाने की घोषणा कलराज मिश्र को हिमाचल प्रदेश का राज्यपाल बनाने के ठीक एक दिन बाद ही की है। कलराज मिश्र और महेंद्र नाथ पांडे दोनों यूपी के बड़े ब्राह्मण चेहरे हैं। जबकि, प्रदेश के मुख्यमंत्री का जिम्मा एक ठाकुर नेता के पास है। ऐसे में पार्टी को एक ऐसे पिछड़े चेहरे की दरकार थी, जो ‘सबका साथ-सबका विकास’ वाले उसके आधार वाक्य को यूपी के लोगों के सामने पेश कर सके। स्वतंत्र देव सिंह पिछड़े समुदाय के कुर्मी जाति से आते हैं। इस तरह से पार्टी ने ‘अपना दल’ की अनुप्रिया पटेल को साधने की भी कोशिश की है, जिन्हें इस बार मोदी सरकार में मंत्री नहीं बनाया गया है।
अनुप्रिया एपिसोड के बाद से उत्तर प्रदेश में पार्टी पर सिर्फ पिछड़ों का वोट लेकर उन्हें किनारे छोड़ने देने के आरोप भी लगाए जाने लगे थे। अब एक कुर्मी को सबसे प्रदेश के सबसे बड़े संगठन की जिम्मेदारी सौंपकर पार्टी ने उन आलोचकों की जुबान बंद करने की कोशिश की है। तथ्य ये भी है कि उनका जन्म भी उसी मिर्जापुर जिले में हुआ है, जहां से अनुप्रिया सांसद हैं। 2017 के विधानसभा चुनाव के दौरान भी यूपी में पिछड़े वर्ग से आने वाले केशव प्रसाद मौर्य के पास ही अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी थी। पार्टी ने अबकी बार स्वतंत्र देव को यह भार सौंपकर एक तरह से उसी समीकरण को फिर से सहेजने की कोशिश की है। क्योंकि, तब योगी आदित्यनाथ को पार्टी ने एक आक्रामक स्टार प्रचारक के तौर पर उतारा था। मौर्य अभी उपमुख्यमंत्री के तौर पर यूपी बीजेपी के बड़े चेहरे हैं।
स्वतंत्र देव सिंह के पक्ष में ये बात भी गई कि वे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, पार्टी अध्यक्ष अमित शाह और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ तीनों के करीबी हैं। उत्तर प्रदेश के लिहाज से बीजेपी के इन तीनों बड़े नेताओं के चहेते बनने के पीछे उनका परफॉर्मेंस है, जिसने हमेशा संगठन को मजबूत और वरिष्ठ नेताओं को खुश किया है । 2014 में समूचे यूपी में नरेंद्र मोदी की रैलियों का इंतजाम करके वे नरेंद्र मोदी के बेहद करीब आ गए थे। उस दौरान अमित शाह उत्तर प्रदेश में रहकर ही लोकसभा में पार्टी को ऐतिहासिक जीत दिलाने के लिए गोटियां सेट कर रहे थे, तो सिंह के काम को वे भी नजदीक से समझ पाए। जबकि, ढाई साल से मंत्री रहकर वो मुख्यमंत्री आदित्यनाथ के भी बहुत करीबी बन चुके हैं। सीएम तो उनके काम से इतने खुश थे कि हाल में जब योगी कैबिनेट के विस्तार की खबरें उड़ी थीं, तो स्वतंत्र देव सिंह का प्रमोशन निश्चित बताया जा रहा था।
स्वतंत्र देव सिंह को भारतीय जनता पार्टी ने इतनी बड़ी जिम्मेदारी दी है, तो इसके पीछे सबसे बड़ा कारण ये है कि वे आरएसएस के बैकग्राउंड से आते हैं और संगठन का काम बखूबी संभालते रहे हैं। शुरुआती दिनों में वे यूपी में विद्यार्थी परिषद के भी सदस्य रहे हैं और 2001 में युवा मोर्चा के भी प्रदेश अध्यक्ष रह चुके हैं। संगठन में काम करने का उनका तजुर्बा पार्टी के लिए इतना फायदेमंद रहा है कि बीजेपी ने उन्हें यूपी जैसे बड़े राज्य में मंत्री बनाने के बाद भी संगठन से उन्हें कभी अलग नहीं होने दिया। जब भी उनकी जहां जरूरत पड़ी, उनके स्किल का भरपूर लाभ उठाया गया। हाल में संपन्न हुए लोकसभा चुनाव में उनके पास मंत्री पद के अलावा मध्य प्रदेश में पार्टी का भी प्रभार था। वहां कांग्रेस की सरकार होने के बावजूद भाजपा ने 29 में से 28 सीटें जीत लीं। जाहिर है कि इतनी बड़ी सफलता के पीछे उनका भी बहुत बड़ा योगदान है। तभी से ये तय था कि उनका प्रमोशन तो होगा ही। लेकिन, पार्टी ने उन्हें कैबिनेट मंत्री का दर्जा न दिलाकर सीधे भारत के सबसे बड़े प्रदेश में दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी का प्रभार सौंपने का फैसला कर लिया है।
स्वतंत्र देव सिंह की एक और खासियत ये है कि वे मूलरूप से उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर से आते हैं, लेकिन उनकी कर्मभूमि बुंदेलखंड के इलाके में रही है। इसलिए 2017 में पार्टी ने उन्हें बुंदेलखंड इलाके की ही जिम्मेदारी सौंपी थी। इस तरह से भाजपा एक तीर से दो निशाना साधना चाहती है। वे पिछड़े तो हैं ही और यूपी के अति-पिछड़े इलाके से भी आते हैं, जिन गरीबों की बात प्रधानमंत्री मोदी अपने हर भाषणों में करते हैं। बुंदेलखंड से जुड़े होने के चलते स्वतंत्र देव गरीबों की समस्याओं से भी अच्छे से वाकिफ हैं, जिसने 2014, 2017 और 2019 में भी भाजपा पर भरोसा किया है। पार्टी को लगा कि ऐसे चेहरे को अगर प्रदेश में भाजपा का चेहरा बनाया जाएगा, तो पिछड़े भी उसके साथ जुड़े रहेंगे और गरीबों का भी उसके साथ नाता बरकरार रहेगा। क्योंकि, प्रदेश की दोनों बड़ी विपक्षी पार्टियां समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी भी पिछड़ों और गरीबों की ही राजनीति करती है और भारतीय जनता पार्टी इसमें कोई चूक नहीं होने देना चाहती।