मुंबई : टाटा ग्रुप में रतन टाटा और सायरस मिस्त्री के बीच छिड़ी जंग बढ़ती ही जा रही है। टाटा संस ने गुरुवार को नौ पेज की चिट्ठी लिखकर सायरस मिस्त्री को हटाने के कदम को सही साबित किया है।
इस लेटर बम को फोड़ने से पहले सुबह ही टाटा ग्रुप ने अपनी कंपनियों से साइरस मिस्त्री को हटाने की कवायद शुरू कर दी है। टीसीएस के चेयरमैन पद से सायरस मिस्त्री को हटाकर इशात हुसैन को इसका चेयरमैन बनाया गया। पत्र में मुख्य रूप से टाटा संस संबंधी मसलों को तरजीह दी गई है क्योंकि इसके स्वामित्व वाले टाटा ट्रस्टों के पास 66 फीसद शेयर हैं।
टाटा संस से संबंधित मसलों पर पत्र में कहा गया है कि सायरस को परफॉर्म करने के लिए 4 साल का समय मिला। उनके कार्यकाल में टाटा ग्रुप की 40 कंपनियों का डिविडेंड एक हजार करोड़ रुपए से घटकर 780 करोड़ रुपए हो गया।
डिविडेंट घटने के साथ-साथ खर्चों में बढ़ोतरी हुई है। सायरस मिस्त्री की हिस्सा बेचने की रणनीति विफल रही और विनिवेश से कोई मुनाफा नहीं हुआ है। बीते तीन साल से टाटा संस को घाटा ही हो रहा था, जो चिंता का प्रमुख कारण था। सबसे अच्छे परिणाम दिखाने वाली कंपनी टीसीएस में सायरस का कोई योगदान नहीं था। मीडिया में जब भी टाटा समूह के परिणामों के आधार पर मिस्त्री को जब भी तारीफ मिली, उसमें मुख्य योगदान टीसीएस का ही था।
पत्र में कहा गया है कि कोई विकल्प नहीं होने की वजह से टाटा समूह ने मिस्त्री को चेयरमैन पद पर नियुक्त किया। चयन प्रक्रिया के दौरान इतने बड़े ग्रुप के मैनेजमेंट के लिए बड़े बिजनेस हाउस के प्रबंधन के साथ ही अंतरराष्ट्रीय कारोबार के अनुभव की दरकार थी। मैनेजमेंट के सामने मिस्त्री ने चयने के समय जो प्लान पेश किया था, उसका क्रियान्वयन मिस्त्री के कामकाज में नहीं दिखा। यानी पद पाने के लिए उन्होंने जो वादे किए, वैसा काम नहीं दिखाया।