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Sunday, December 22, 2024

टैक्स प्लानिंग में ध्यान रखें यह बातें

नई दिल्ली- मार्च के महीने में सभी नौकरी पेशा लोगों को एक ही चिंता सताती है। टैक्स कैसे बचाएं। 31 मार्च तक टैक्स बचत संबंघी दस्तावेज एचआर विभाग को देने होते हैं। टैक्स बचाने के लिए हम कई वित्तीय प्रोडक्ट में निवेश करते हैं। बिना सोंचे समझे कई बार हम ऐसी जगह निवेश कर देते हैं जहां से हमें रिटर्न तो मिलता नहीं उल्टा घाटा उटाना पड़ता है।

हम पहले तो साल भर टैक्स नहीं बचाते फिर जब एचआर से दस्तावेज जमा करवाने का ईमेल आता है तब अचानक से निवेश की योजना बनाते हैं। ऐसे समय में हमसे गलती होने की ज्यादा संभावना होती है। हम ऐसी कई गलतियां करते हैं। लाइफ इंश्योरेंस के परंपरागत प्रोडक्ट में निवेश भी ऐसी ही गलती है। आइए जानते टैक्स बचत के लिए किए जाने वाले निवेश में किन गलतियों का ध्यान रखना चाहिए।

मार्च का महीना शुरू हो चुका है। क्या आपने टैक्स बचाने की योजना पर पूरी तरह से काम कर लिया है। आपको अगर ये लगता है कि अभी भी आपके पास बहुत समय है तो ऐसा नहीं है। 31 मार्च तक आपको मानव संसाधन विभाग में अपने निवेश से जुड़े सभी दस्तावेज जमा करवाने होंगे। क्या आप इसके लिए पूरी तरह से तैयार है। आपने टैक्स बचाने के लिए सेक्शन 80 सी और 80 डी के तहत होने वाले निवेश के लिए पूरी तैयारी की होगी। ये अच्छी शुरूआत है।

इन दोनों सेक्शन के तहत टैक्स बचाने के लिए बहुत ज्यादा वित्तीय प्रोडक्ट उपलब्ध हैं। आप इनमें से कौन सा चुनेंगे। क्या आप एक और इंश्योरेंस पॉलिसी खरीदेंगे या 5 साल की एफडी में निवेश करेंगे। क्या आपने कभी सेक्शन 80 सी और 80 डी के बाहर जाकर भी टैक्स बचाने का सोंचा है। जी हां इनके अलावा भी टैक्स बचाने के कई विकल्प हैं। आखिरी महीने में दिमाग स्थिर रखना बहुत ही चुनौती पूर्ण होता है। वित्तीय वर्ष खत्म होने पर जो काम का दबाव होता है उसके चलते आप टैक्स बचाने को लेकर गलत फैसले भी कर सकते हैं।

आमतौर पर टैक्स की योजना बनाते समय लोग आम तौर पर ये गलतियां करते हैं।

सेक्शन 80 सी और सेक्शन 80 डी के अलावा विकल्प
ये सबसे आम गलती है जो आयकर दाता करते हैं। अगर आप ये सोंचते हैं कि आप सिर्फ इन्हीं 2 तरीकों से टैक्स बचा सकते हैं तो आपको दोबारा सोंचना होगा। इनकम टैक्स एक्ट 1961 आपको आपके बच्चे की उच्च शिक्षा के लिए गए लोन के ब्याज पर भी टैक्स में छूट मिलती है। आप अपने ऊपर निर्भर लोगों के इलाज के लिए पैसे खर्च करते हैं तो उसका फायदा भी टैक्स बचाने में मिलता है।

कई लाइफ इंश्योरेंस प्लान खरीद लेना
ये दूसरी बड़ी गलती है जो आयकर दाता करते हैं। क्या आप टैक्स बचाने के सीजन के दौरान बैंक में गए हैं। अगर हां तो आप बैंक में देखेंगे कि बैंक के प्रतिनिधी आपको परंपरागत लाइफ इंश्योरेंस खरीदने की सलाह देते हैं। आप दूसरे प्रोडक्ट के बारे में पूछते हैं तो भी प्रतिनिधी आपको बार-बार लाइफ इंश्योरेंस प्लान के फायदे बता कर उसे ही खरीदने के लिए कहेगा। उन्होंने इसको इस तरह से पैकेज किया है कि टैक्स बचाने का यही सिर्फ एक तरीका है। बेचने वाले का एक ही तर्क रहता है कि इसमें इंश्योरेंस कवर के साथ रिटर्न भी मिलता है। लेकिन ये एक तरह का जाल होता है। पंरपरागत लाइफ इंश्योरेंस प्रोडक्ट से बैंक को ज्यादा कमीशन मिलता है। इससे प्रतिनिधी को भी उसके टारगेट पूरे करने में मदद मिलती है। ये सब आपके खर्च पर होता है।

लाइफ इंश्योरेंस की आप एक चीज नहीं समझ पाते हैं। इसके प्रीमियम का अधिकतर हिस्सा मोर्टेलिटी चार्ज और डिस्ट्रीब्यूटर कमीशन में जाता है। इसके चलते आपका रिटर्न प्रभावित होता है। परंपरागत लाइफ इंश्योरेंस प्रोडक्ट 4 से 6 फीसदी रिटर्न ही देते हैं। भले ही इनमें आप 10 से 20 साल तक निवेश रखें।

अगर आपने सिर्फ 5 साल प्रीमियम भरा है तो इनमें से आप अपने मूलधन का निवेश भी नहीं निकाल पाते हैं। सरेंडर चार्ज के नाम पर कंपनियां आपसे आपके कुल प्रीमियम की 30 फीसदी रकम काटती है। मतलब अगर आपने अब तक 1 लाख रुपए किसी इंश्योरेंस पॉलिसी में भरें हैं और आप पॉलिसी सरेंडर करेंगे तो आपको सिर्फ 70 हजार रुपए ही मिलेंगे। कोई रिटर्न नहीं।

जीवन बहुत ही अनिश्चितता भरा है इसलिए आपको इंश्योरेंस की जरूरत है। परंपरागत लाइफ इंश्योरेंस प्रोडक्ट इसका समाधान नहीं है। बैंक के प्रतिनिधी पूरी कोशिश करेंगे कि आप ये प्रोडक्ट खरीदें लेकिन आप उनके झांसे में न आएं। अगर आप अपने परिवार को सुरक्षा देना चाहते हैं तो टर्म इंश्योरेंस खरीदें। इसमें आपको रिटर्न नहीं मिलेगा लेकिन आपको कुछ होने पर आपके परिवार को बिल्कुल दिक्कत नहीं होगी। इनका प्रीमियम भी बहुत कम होता है। 1 करोड़ का इंश्योरेंस 6 से 15 हजार सालाना प्रीमियम पर आपको आसानी से मिल जाएगा। याद रखें पंरपरागत नहीं टर्म इंश्योरेंस प्लान खरीदें।

टैक्स बचाने की लचर स्कीमों में निवेश
ये तीसरी बड़ी गलती है। अगर आप टैक्स बचाने के लिए 5 साल की एफडी और नेशनल सेविंग स्कीम में निवेश कर रहे हैं तो ये टैक्स प्लानिंग का सही तरीका नहीं है। आप इनके जरिए जो ब्याज कमाएंगे उस पर भी आपको टैक्स देना होगा। ईपीएफ, ईक्विटी लिंक्ड सेविंग स्कीम और पीपीएफ में आपको ये टैक्स नहीं देना होता है। पर क्या आपको अपने पोर्टफोलियो में डेट और इक्विटी का अनुपात सही नहीं रखना चाहिए। बिल्कुल रखना चाहिए।

अगर आप बहुत ज्यादा डेट प्रोडक्ट अपने पोर्टफोलियो में रखेंगे तो आपका रिटर्न प्रभावित होगा। डेट प्रोडक्ट का मतलब है एफडी, नेशनल सेविंग सर्टिफिकेट और सरकारी बॉन्ड जैसी स्कीमें। अगर आपको अपने वित्तीय लक्ष्य को पाना है तो आपका पोर्टफोलियो बैलेंस होना चाहिए। इसके लिए आप एक थंब रूल अपना सकते हैं। आपके पोर्टफोलियो में कितना इक्विटी का अनुपात हो इसके लिए आप 100 में से अपनी उम्र घटा लें।

इस थंब रूल से आपके पोर्टफोलियो में डेट आपकी उम्र के बराबर हो जाएगी। इस तरह करें एसेट एलोकेशन।

अलोकेशन के पीछे एक तर्क है आपकी उम्र जितनी बढ़ती जाएगी आपके पास खराब शेयर बाजार से रिकवरी के लिए उतना ही कम समय बचेगा। आप जैसे ही रिटायरमेंट के नजदीक जाएंगे इक्विटी में से ज्यादा पैसा बाहर निकालने पर आप महंगाई से नहीं लड़ पाएंगे और आपकी रिटायरमेंट की बचत पर प्रभाव पड़ेगा।

ये पैसे बचाने का बेहतरीन तरीका नहीं है लेकिन इससे आप शुरूआत कर सकते हैं। अब आपको टैक्स प्लानिंग के दौरान होने वाली सामान्य गलतियों के बारे में पता चल गया है। कोशिश करें कि इस साल ये गलतियां न हों। [एजेंसी]

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