देश में 12 वर्ष से कम उम्र की बालिकाओं के साथ दुष्कर्म के दोषियों को फांसी की सजा का प्रावधान किया जा चुका है। मध्यप्रदेश की सरकार ने तो केंद्र के पहले ही इस तरह का प्रावधान वाला विधेयक राज्य विधान सभा में पेश कर दिया था, जो पारित भी हो चुका है। किन्तु लगता है कि बलात्कार के दोषियों को शायद फांसी की सजा से भी डर नहीं लगता। फांसी की सजा की पुष्टी सर्वोच्च न्यायलय द्वारा किए जाने के बाद भी अपराधी को फांसी देने में इतना समय बीत जाता है कि उनके मन का भय दूर हो जाता है। शायद इस तरह की मनोवृत्ति वाले लोग यह अनुमान लगा लेते है कि फांसी का फंदा उनके गले तक नहीं पहुंच सकता। कठोर सजा का भय ही अपराधी को अपराध करने से रोकता है ,लेकिन ऐसा प्रतीत होता है कि कठोर सजा का भय इस देश में अपराधियों को नहीं रह गया है। यह सही है कि फ़ास्ट ट्रेक कोर्ट द्वारा आजकल दुष्कर्म के अपराधियों को फांसी की सजा सुनाए जाने के समाचार सुर्ख़ियों में है ,लेकिन इसके क्रियान्वयन में यदि देरी होती रहेगी तो इस सजा के प्रावधान के पीछे जो उद्देश्य है वो पराजित हो जाएगा।
यह एक कड़वी हकीकत है कि जब भी दुष्कर्म की घटनाए सामने आती है तब उसकी जाँच में यह तथ्य अक्सर सामने आता है कि आरोपी ऊंची पहुंच रखता है। तब पुलिस कुछ दिनों तक तो इसी मसोपेश में रहती है कि अपराधी पर क़ानूनी शिंकजा कसने पर उसे कही राजनीतिक दबाव का सामना न करना पड़े। ऐसे प्रकरणों की कमी नहीं है जब पुलिस दबाव में घटना की जाँच को लम्बे खींचती रहती है। ऐसे मामलो में सरकार पर भी अपराधी को बचाने के आरोप लगे है। ऐसा उन्नाव में हुआ ,ऐसा ही मुजफ्फरपुर में भी हुआ। सीबीआई जांच की सिफारिस तब की गए जब पानी गले से ऊपर जाने लगा। सरकार की इतनी किरकिरी होने लगी कि उसे सीबीआई जांच की सिफारिस आलावा कोई और विकल्प चुनना मुश्किल हो गया। इसका दुष्परिणाम यह भी होता है कि आरोपी को अपने बचाव के उपाय तलाशने का समय तो मिल ही जाता है। फिर भले ही उपाय कारगर साबित न हो।
सरकारे इसके बाद भी अपनी पीठ थपथपाने से परहेज नहीं करती की उसने कार्यवाही में तनिक भी देरी नहीं की। हर सरकार द्वारा यह दावा तो अब सामान्य बात हो गई है कि आरोपी कितना भी रसूखदार क्यों उसे बख्शा नहीं जाएगा। सरकार कठोरतम कार्यवाही करेगी ,ऐसा हर मामले के उजागर होने के बाद कहा जाता है। अब प्रभावशाली आरोपियों के खिलाफ कितनी कठोरतम कार्यवाही होती है यह बताने की आवश्यकता नहीं है। रोज नए नए मामले उजागर होते है और सरकार द्वारा कार्यवाही का भरोसा दिलाया जाता है। ऐसा लगता है कि अब तो भरोसा भी भरोसे के लायक नहीं रहा।
अक्सर यह भी देखा जाता है कि जब भी इस तरह की घटनाओं को लेकर विरोधी दलों द्वारा आवाज उठाई जाती है तो सरकारे बयान जारी कर इस संवेदनशील मामले में राजनीति नहीं करने की बात कहती है। सवाल यह उठता है कि अगर बेटी बचाओं का नारा देने वाली सरकारे अपने राज्यों में बेटियों को सुरक्षा देने की अपनी जिम्मेदारी में असफल रहेगी तो सरकार की आलोचना नहीं होना चाहिए। क्या केवल इस मामले में मूकदर्शक बनकर देखना चाहिए ? क्या दुष्कर्म पीड़ित के परिजनों को ही इसके खिलाफ आवाज उठाना चाहिए?सरकारों से सवाल यह भी है कि क्या केवल मुआवजे पीड़ित के दर्द को कम किया जा सकता है।
हॉल ही में जब मुजफ्फरपुर की घटना प्रकाश में आई तो बिहार सरकार को शर्मसार तो होना ही था। इस मामले ने पुरे देश को झंझोरकर रख दिया है। सुप्रीम कोर्ट स्वयं इस मामले को संज्ञान में लेते हुए गंभीर टिप्पणी कर चुका है कि लेफ्ट हो या राइट सेंटर हर जगह दुष्कर्म की घटना हो रही है। हर घंटे में देश के किसी कोने में बलात्कार हो रहे है। देश में यह क्या हो रहा है? इसे रोका क्यों नहीं जा रहा है? सुप्रीम कोर्ट ने अब शेल्टर होम में शोषण रोकने के लिए उठाए गए कदमो की जानकारी मांगी है। मुजफ्फरपुर के शेल्टर होम को तो सरकारी सहायता भी मिलती थी। बिहार सरकार की मंत्री के पति एवं शेल्टर होम के संचालक ब्रजेश ठाकुर की मित्रता की बात भी अब सामने आ चुकी है। भाजपा के वरिष्ठ नेता सीपी ठाकुर ने जब मंत्री मंजू वर्मा के इस्तीफे की बात की तो स्वयं मुख्यमंत्री एवं उपमुख्यमंत्री ने इसका बचाव तक किया था जब तक मंत्री का इस्तीफा लेने के आलावा कोई विकल्प नहीं बचा। यहां सभी आरोपी स्वयं को निर्दोष बता रहे है और यह तर्क दे रहे है कि उन्हें फसाया जा रहा है।
मुजफ्फरपुर की गूंज धीमी पड़ी नहीं थी कि उत्तरप्रदेश के देवरिया के शेल्टर होम्स की बच्चियों से दुष्कर्म की घटना सामने आ गई। आश्चर्य की बात यह है कि एक साल पहले अनियमितता के कारण इस शेल्टर होम्स को बंद करने के आदेश दिए गए थे, परन्तु यह अवैध रूप से चलता रहा। बच्चियों को शिकार बनाया जाता रहा, परन्तु वाह से सरकार आपको कानों कान खबर नहीं हुई। मामला उजागर हुआ तो आनन फानन में डीएम सहित बड़े अधिकारीयों को हटाया गया। इधर केंद्रीय ग्रहमंत्री राजनाथ सिंह ने मुख्यमंत्री की तारीफ करने में भी देरी नहीं की ,लेकिन सवाल यह उठता है कि क्या इसके लिए सरकार की कोई नैतिक जिम्मेदारी नहीं बनती है। अब जब दुष्कर्म की भयावह घटनाओं की बात की जा रही है तो मप्र का जिक्र कैसे रह सकता है। मप्र के माथे पर तो सबसे अधिक दुष्कर्म वाले प्रदेश का कलंक लगा हुआ है। इसको लेकर वर्तमान सरकार का तर्क यह है कि पूर्व की सरकार के कार्यकाल में दुष्कर्म के मामले दर्ज ही नहीं होते थे। अब अपराधियों को सजा दिलाने के लिए हर मामला दर्ज किया जाता है इसलिए आंकड़े यहाँ सबसे ज्यादा है। अभी मूकबधिर बच्चियों का जो मामला सामने आया है वह इतना भयावह है कि किसी के भी रोंगटे खड़े हो जाए। जरा उन बच्चियों का दर्द देखिए जो मूकबधिर होने कारण कुछ बोल भी नहीं सकती थी। वे अपनी पीड़ा इशारों में ही व्यक्त कर सकती है। यह सब उस राज्य में हुआ है, जो बेटी बचाने का नारा बुलंद करने में देश में सबसे आगे है। यह वही राज्य है जिसके एक मंत्री बच्चियों को कोचिंग से जल्दी घर जाने की नसीहत भी दे चुके है।
इस तरह की घटनाए अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर देश की छवि भी ख़राब करती है। यह भी अक्सर सुनने को मिलता है कि महिला सुरक्षा के मामले में हमारा देश बहुत पीछे है। ऐसी रिपोर्ट पर हम तिलमिला भी उठते है ,परन्तु यह एक कड़वी हकीकत है। घटनाए जब आत्मा को झंझोरती है तब ही हम इसे सही मानने लगते है। आखिर वह दिन कब आएगा जब हम गर्व से कह सकेंगे कि जिस देश का आदर्श यत्र नार्यस्तु पूजयन्ते तत्र देवता रमते है वह भारत ही है।
:-कृष्णमोहन झा
(लेखक राजनीतिक विश्लेषक और आईएफडब्ल्यूजे के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष हैं)