सेना से निलंबित अधिकारी और मालेगांव विस्फोट मामले में मुख्य अभियुक्त पूर्व लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद श्रीकांत पुरोहित 9 साल बाद जेल से बाहर आए हैं। उन्हें रिसीव करने के लिए सेना की गाड़ी आई थी। उन्हें सोमवार को सर्वोच्च न्यायालय से जमानत मिली थी। बता दें कि साल 2008 में हुए इस विस्फोट में सात लोगों की मौत हो गई थी। पुरोहित पर बम सप्लाई का आरोप है। वह मुंबई की तलोजा जेल में बंद थे।
न्यायमूर्ति आर.के. अग्रवाल और न्यायमूर्ति अभय मनोहर सप्रे ने पुरोहित को इस हिदायत के साथ सशर्त जमानत दी कि वह सबूतों से छेड़छाड़ नहीं करेंगे। अदालत ने पुरोहित को जमानत देते हुए कहा था, “हमारे विचार से एटीएस मुंबई और एनआईए द्वारा दाखिल आरोप-पत्रों में विरोधाभास है, जिसकी निचली अदालत में सुनवाई के दौरान जांच होनी चाहिए थी और यह अदालत किसी एक आरोप-पत्र को दूसरे आरोप-पत्र पर तरजीह नहीं दे सकती।”
मालेगांव बम विस्फोट मामले की जांच शुरू में मुंबई की आतंकवाद-रोधी दल (एटीएस) ने किया था, जिसे बाद में राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) को सौंप दिया गया। अदालत ने कहा कि पुरोहित भारतीय सेना में खुफिया अधिकारी रहे हैं और उन्होंने साजिश रचने के आरोप से इनकार किया है और उनका कहना है कि उन्होंने अपने वरिष्ठ अधिकारियों को खुफिया जानकारियां दी थीं और एक अन्य आरोपी के घर आरडीएक्स रखने में एटीएस अधिकारियों की कथित भूमिका से भी अवगत कराया था।
पुरोहित ने शीर्ष अदालत से कहा था कि आज तक उनके खिलाफ आरोप तय नहीं किए गए और महाराष्ट्र संगठित अपराध रोकथाम अधिनियम (मकोका) के तहत लगाए गए आरोप उन पर से हटा लिए गए हैं। उन्होंने सर्वोच्च न्यायालय से कहा था कि वह जेल में नौ साल से हैं और इसलिए उन्हें जमानत मिलनी चाहिए।
पुरोहित ने 25 अप्रैल के बंबई उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती दी थी, जिसने इस मामले में आरोपी साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर को तो जमानत दे दी थी, पर पुरोहित की याचिका खारिज कर दी थी। महाराष्ट्र में नासिक जिले के मालेगांव में 29 सितंबर, 2008 को हुए विस्फोट में सात लोगों की मौत हो गई थी। जांच एजेंसियों ने पूर्व में इस विस्फोट के तार दक्षिणपंथी संगठन अभिनव भारत से जोड़े थे।