इन दिनों बिहार की भाजपा जदयू गठबंधन सरकार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी राज्य में अपराधी तत्वों से बेहद परेशान है। उनकी परेशानी का सबब यह है कि अपराधी तत्वों के मन से कानून का भय एकदम निकल चुका है। अपराधी आए दिन भयावह घटनाओं को अंजाम दे रहे है। सरकार इनके विरुद्ध कठोर कार्यवाही करने में खुद को लाचार महसूस कर रही है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भले ही यह दावा करे कि उनकी सरकार न तो अपराधी तत्वों को छोड़ेगी न ही उन्हें बचाने वाले प्रभावशाली लोगो को संरक्षण देगी परन्तु वास्तविकता उसके विपरीत नजर आ रही है।
बिहार के शेल्टर होम्स में रहने वाली निराश्रितों के साथ लंबे समय से किए जा रहे अत्याचार का मामला जब उजागर हुआ तो उसने सारे देश को झंझोरकर कर रख दिया। इस घटना में उनकी सरकार की समाज कल्याण मंत्री का नाम भी सामने आया ,जिसका इस्तीफा लेने में नीतीश कुमार को कई दिन लग गए। मंत्री तो स्वयं को निर्दोष साबित बताती रही। आखिरकार सुप्रीम कोर्ट को मामले में बिहार सरकार को फटकार लगानी पड़ी तब जाकर नीतीश कुमार हरकत में आए और उन्हें अपना रहस्यमय मौन तोडना पड़ा। नीतीश कुमार ने पुनः भरोसा दिलाया कि राज्य में अपराधी तत्वों को सख्ती से कुचल दिया जाएगा, लेकिनअपनी कुर्सी के लिए जोड़तोड़ में दक्षता हासिल कर चुके नीतीश कुमार की सख्ती की पोल उस समय खुल गई जब उपमुख्यमंत्री सुशील मोदी ने पिछले दिनों अपराधी तत्वों से अत्यंत विनम्र भाव से यह प्रार्थना कि वे पितृ पक्ष में तो कम से कम आपराधिक घटनाओं को तो अंजाम न दे। सुशील मोदी का यह कहना कि वे हाथ जोड़कर इसकी विनती कर रहे है सरकार की इसी बेबसी का परिचायक है कि राज्य में कानून व्यवस्था की स्थिति अत्यंत ख़राब हो चुकी है। सरकार का अपराधियों पर कोई नियंत्रण नहीं है। मोदी की यह विनती केवल इस कड़वी हकीकत को उजागर करती है कि बिहार की गठबंधन सरकार ने अपराधियों के सामने हाथ ऊपर कर दिए है। नितीश द्वारा सुशील मोदी के बयान पर मौन साध लेना यही साबित करता है कि वे भी उनकी बातों से सहमत है। हो सकता है कि वे भी इस तरह की विनती कर ले क्योंकि राज्य की कानून व्यवस्था को पटरी लाने इच्छा शक्ति अब उनके अंदर समाप्त हो चुकी है।
उपमुख्यमंत्री सुशील मोदी ने अपराधी तत्वों से पितृ पक्ष में संयम रखने की जो करबद्ध अपील की थी उसे इन तत्वों ने किस तरह ठुकरा दिया उसका अंदाजा सुपौल जिले के त्रिवेणीगंज स्थित सरकारी आवासीय विद्यालय में पढ़ने वाली बालिकाओं पर गुंडा तत्वों द्वारा किए गए नृशंस हमले की घटना से लगाया जा सकता है। बताया जाता है कि छेड़खानी का विरोध करने वाली छात्राओं को गुंडा तत्वों ने लाठी डंडों से बुरी तरह पीटा। गुंडों की इस हरकत ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की महिलाओं एवं बालिकाओं की सुरक्षा करने वाले दावें की भी पोल खोल कर रख दी है। गौरतलब है कि हाल ही में राज्य की राजधानी पटना में जदयू समाज सुधार वाहिनी द्वारा आयोजित एक समारोह में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने स्कूली छात्राओं को शाला गणवेश एवं साइकिलें प्रदान करने की योजना की तारीफ कर अपनी पीठ थपथपाई थी। अब सवाल यह उठता है कि सरकार की जिम्मेदारी क्या छात्राओं को सिर्फ गणवेश एवं साइकिलें देने तक ही सीमित है? क्या सरकार को यह भी सुनिश्चित नहीं करना चाहिए कि छात्राएं निर्भय होकर स्कूल आ जा सके। यह भी जानकारी में आया है कि सुपौल जिले के उक्त आवासीय विद्यालय में स्कूल स्टॉफ एवं छात्राओं की सुरक्षा के भी पर्याप्त इंतजाम नहीं किए गए थे। सरकार ने यहां सुरक्षा गार्डों की तैनाती तक की जरुरत महसूस नहीं की। इन हमलो में छात्राओं के साथ- साथ उन शिक्षिकाओं और वार्डन को भी चोटें आई है, जो उन छात्राओं को बचाने आगे आई थी।
सरकार की महिला सशक्तिकरण की पोल खोलने वाली इस घटना के बद फिर यह सवाल उठना स्वभाविक है कि अपराधी तत्वों को कब तक समाज में खुलेआम इस तरह की घटनाओं को अंजाम देने की छूट मिलती रहेगी। सुशील मोदी आखिर कब तक अपराधी तत्वों से प्रार्थना करते रहेंगे। सुशील मोदी शायद यह भूल गए कि जम्मू कश्मीर में भी भाजपा एवं पीडीपी की सरकार ने रमजान के दौरान एकतरफा युद्ध विराम का फैसला इस उम्मीद से किया था कि इससे आतंकी संगठनों पर सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। वे कम से कम रमजान के माह में तो संयम बरतेंगे परन्तु सरकार की उम्मीदों पर उन्होंने किस तरह पानी फेरा उसे पुनः दोहराने की आवश्यकता नहीं है। अतः सुशील मोदी को यह मान लेना चाहिए कि अपराधी तत्वों से कानून व्यवस्था में सहयोग देने की विनती करने से समस्या का समाधान नहीं होगा। सरकार को इन अपराधियों पर उसी तरह की कठोर कार्यवाही करनी होगी जिस तरह नीतीश कुमार के पहले कार्यकाल में प्रारंभ की गई थी। उस समय भी उपमुख्यमंत्री पद की बागडौर सुशील मोदी के हाथों में ही थी।
नीतीश कुमार ने प्रथम बार मुख्यमंत्री बनने पर अपराधियों के विरुद्ध जिस तरह से अभियान चलाया था जनता ने उसका तहे दिल से स्वागत किया था। हजारो अपराधियों को जेल में बंद कर सरकार ने जनता को निरापद जीवन जीने का जो सुकून भरा माहौल उपलब्ध कराया था उसके लिए नीतिश कुमार को सुशासन बाबू के ख़िताब से नवाजा गया था। उस सुशासन बाबू की अब असली चिंता यह है कि अपनी कुर्सी को सलामत कैसे रखा जाए। राजनीतिक जोड़तोड़ की कोशिशों ने मुख्यमंत्री की व्यस्तता एवं दिलचस्पी के चलते बिहार में सुशासन की सारी संभावनाओं को धूमिल कर दिया है। अभी तो मुख्यमंत्री की चिंता यह है कि आगामी लोकसभा चुनाव में जदयू के लिए अधिक से अधिक सीटें कैसे हासिल की जाए। अतः अब अपराधी तत्वों ने भी यह मान लिया है कि जब तक मुख्यमंत्री का ध्यान लोकसभा चुनाव पर केंद्रित है ,तब तक उन्हें कानून से भयभीत होने की कोई जरुरत नहीं है।
:-कृष्णमोहन झा
(लेखक IFWJ के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष और डिज़ियाना मीडिया समूह के राजनैतिक संपादक है)