नई दिल्ली- आज समाज में महिलाओं को बराबरी का हक़ दिए जाने की कवायद चल रही है। हाल ही में शनिचेश्वर मंदिर, हाजी अली दरगाह में महिलाओं के प्रवेश को लेकर काफी विवाद सामने आया। लेकिन भारत के संविधान की धारा 14, 15, 19 और 25 का विरोधाभासी है।’’ इन धाराओं के तहत किसी भी व्यक्ति को कानून के तहत समानता हासिल है और अपने मनचाहे किसी भी धर्म का पालन करने का मूलभूत अधिकार है।
ये धाराएं धर्म, लिंग और अन्य आधारों पर किसी भी तरह के भेदभाव पर पाबंदी लगाती हैं और किसी भी धर्म को स्वतंत्र रूप से अपनाने, उसका पालन करने और उसका प्रचार करने की पूरी स्वतंत्रता देती हैं। आपको बता दें कि अब भी कई ऐसे मंदिर हैं जहां महिलाओं का प्रवेश निषेध है। इन मंदिरों में निषेध पर धारणाएं भी अलग हैं।
हरियाणा (पिहोवा) में भगवान कार्तिकेय मंदिर
पिहोवा में स्थित भगवान कार्तिकेय मंदिर में उनके ब्रह्मचारी स्वरूप की पूजा की जाती है। जिसकी वजह से मंदिर में महिलाओं का प्रवेश निषेध है। कहा जाता है कि इस प्राचीन मंदिर का निर्माण 5वीं सदी ईसापूर्व हुआ था। मान्यताओं के अनुसार अगर कोई भी महिला, इस मंदिर में प्रवेश भी कर ले तो उसे श्राप मिल जाता है।
ऐसा कहा जाता है कि , ”जब भगवान कार्तिकेय ध्यान कर रहे थे तो देवी इंद्रा को उनसे ईर्ष्या हुई कि ब्रह्मा कहीं उन्हें उनसे ज्यादा शक्तियां न प्रदान कर दें। इसलिए उन्होंने कार्तिकेय का ध्यान भंग करने के लिए उनके पास खूबसूरत अप्सराएं भेंजीं। जिससे भगवान कार्तिकेय नाराज हो गए और श्राप दे दिया कि, ”अगर कोई भी महिला उनके पास उनका ध्यान भंग करने के लिए आती है तो वह पत्थर की हो जाएगी।’ इस मंदिर में भगवान कार्तिकेय ध्यान स्वरुप में ही हैं।’
राजस्थान (रनकपुर) जैन मंदिर
रनकपुर का जैन मंदिर 5 जैन तीर्थों में से एक कहा जाता है। जो 15वीं शताब्दी के बना था। कहते हैं कि मासिक धर्म के समय किसी भी महिला का प्रवेश यहां निषेध है। इतना ही नहीं मंदिर में जाने से पहले हर एक महिला को एक जरूरी काम करना होता है।जिसके तहत उन्हें अपनी टांगों को घुटनों के नीचे तक अच्छी तरह से ढंकना कर जाना होता है।
केरल (सबरीमाला) भगवान अय्यप्पा मंदिर
भगवान अय्यप्पा का ध्यान स्थल अय्यप्पा मंदिर।जो केरल राज्य में स्थित है ।इस मंदिर में 12 से 50 साल की लड़कियों और महिलाओं पर रोक है। इसका मुख्य कारण जो बताया जाता है वो ये है कि इस उम्र की महिलाएं मंदिर के अंदर मासिक धर्म कर सकती हैं।ऐसा इसलिए कि भगवान अयप्पा एक ब्रह्मचारी हैं।कहते हैं कि जब भगवान अयप्पा से एक जवान लड़की से विवाह करने को कहा गया तो उन्होने अस्विकार दिया। क्योंकि उन्होंने जीवन भर ब्रह्मचर्य का पालन करने का व्रत लिया था। इस तिर्थस्थान पर विस्व भर से बड़ी संख्या में श्रद्धालू आते हैं।इस मंदिर में श्रद्धालूओं को प्रवेश करने के लिए कड़े नियमों का पालन करना होता है,जिसके तहत उन्हें पूरे 41 दिन के ब्रह्मचर्य व्रत, अपना खाना खुद पकाने के अलावा कर्मकांडों के दौरान काले या नीले कपड़े पहनना जरूरी है।
छत्तीसगढ़- मावाली माता मंदिर
मावाली माता मंदिर के पंड़ितों का कहना है कि, एक बार उन्होंने एक पुजारी से सुना कि उन्होंने माता को धरती से पैदा होते देखा है। माता ने बताया कि वह अभी तक अविवाहित हैं। इसलिए महिलाओं को मंदिर में प्रवेश नहीं करने दिया जाए। इसलिए पुरुषों को ही मंदिर में जाने की अनुमति है। हालांकि मंदिर ने परिसर में एक अलग से मंदिर में बनाया है जो कि विशेष रूप से महिलाओं के लिए ही है।
असम- पतबाउसी सत्रा
कहते हैं कि 15वीं शताब्दी में संत और दार्शनिक श्रीमाता शंकरदेव ने पतबाउसी सत्रा मंदिर की स्थापना की थी। जिसके बाद असम के पतबुआसी सत्रा आश्रम में महिलाओं के प्रवेश को वर्जित करने का नियम लागू किया गया। जबकि, 2010 में असम के राज्यपाल जीबी पटनायक ने इस वैष्णव मंदिर के अंदर 20 महिलाओं के साथ प्रवेश कर कर्मकांड और प्रार्थना आदि कर इस नियम को तोड़ा था लेकिन राज्यपाल के पतबुआसी सत्रा के धार्मिक प्रमुख ‘सत्राधिकार’ को मनाए जाने के बाद भी इस प्रतिबंध को फिर से लागू कर दिया गया। इस मंदिर में भारत की पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को भी दाकिल होने से रोक दिया गया था।
झारखंड (बोकारो) मंगल चंडी मंदिर
मंगल चंडी के रूप में मां दुर्गा का यह मंदिर बोकारो जिला मुख्यालय से करीब 40 किलोमीटर की दूरी पर कसमार प्रखंड के टांगटोना पंचायत अंतर्गत कुसमाटांड गावं में स्थित है। मंदिर से 100 फीट की दूरी पर एक सीमांकन किया हुआ है जहां से महिलाओं का आगे जाना वर्जित है। श्रद्धा भक्ति से यहां पहुंचने वाली महिलाएं सीमांकन किए गए स्थान पर ही देवी मां की पूजा-अर्चना कर वापस लौट जाती हैं। [एजेंसी]