आप ने मन की बात में अक्सर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी को सुना होगा। कभी वे युवाओं से सवांद करते हैं कभी महिलाओं के सशक्तिकरण की बात करते हैं। युवाओं से कहते हैं स्वरोजगार को बढ़ावा दें। नए रोजगार का सृजन करें। और न जाने क्या क्या…. मन की बात के लिए आदरणीय प्रधानमंत्री ने संचार का ऐसा माध्यम चुना जिसकी पकड़ बच्चों से लेकर बूढ़ों तक हैं। आप समझ ही गए होंगे वाह माध्यम है रेड़ियो।
रेड़ियो की बात निकल आई है तो थोड़ा आप के ज्ञान में इज़ाफ़ा करते हुए बताते चले की रेड़ियो की शुरुआत भारत में 1920 में हुई। 1923 में मुंबई (उस समय बंबई) के एक रेड़ियो क्लब से रेड़ियो कार्यक्रम प्रसारित हुआ। उसके बाद 1927 में कोलकाता (उस समय कलकत्ता)और बंबई से एक निजी रेड़ियो ट्रांसमीटर सेवा शुरू हुई।
1930 में तत्कालीन सरकार ने इसे अपने नियंत्रण में ले लिया और इसका नाम भारतीय प्रसारण सेवा रखा। यही” भारतीय प्रसारण सेवा” आगे चल कर 1936 में “ऑल इंडिया रेड़ियो”और आज़ादी के कुछ साल बाद इसे “आकाशवाणी” के नाम से जाना गया। आप सोच रहे होंगे मैं ये सब आप को क्यों बता रहा हूँ। तो जान लीजिये भारत की ये शानदार विरासत के वारिसान आज अपनी इस विरासत को बचाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। वारिसान कहने के पीछे यह मतलब हैं की रेड़ियो आवाज़ के दम पर चलता है। आप को शायद पता नहीं हो पर जब रेड़ियो सीलोन पर संगीत की महफ़िल साजती थी तो एक जादुई आवाज़ सुनाई देती थी “ये हैं रेड़ियो सीलोन और अब आप सुनेंगे फ़िल्मी नग्मे … नग्मा निगार…….” जाने दीजिए आप कभी अपने बड़ो से पूछिएगा वे लोग कैसे घड़ी के काटे मिलते थे…… जब बीबीसी से एक आवाज़ आती थी “अभी सुबह के 8 बज कर 30 मिनिट और 52 सेकंड हुए हैं ” तो ऑटोमेटिक निगाहें घड़ी की तरफ दौड़ पड़ती थी और हाथ घड़ी की चाबी पर होता था। समय मिलाने का यह अनोखा अंदाज सिर्फ रेड़ियो की वजह से ही संभव हो पाया हैं पर अब इन्हीं जादूभरी आवाज़ों को दबाने के लिए सरकार नए नए हथकंडे अपना रही है। पर लगता तो यही हैं जैसे रेड़ियों के खिलाफ कोई साजिश हो रही हो। वीरों की भूमि राजस्थान के कोटा में वे लोग सड़कों पर हैं जिनकी आवाज के आप कायल हो।अपने जीवन के अनमोल 15 से 20 साल रेड़ियो के देने के बाद भी इन्हें अपने हक़ के लिए सरकार के सामने झोली फैलाना पड़ रही हैं। सोचो अगर ये लोग न होंगे तो बिना आवाज़ का रेडियो कैसा होगा ? कैसा होगा उसका प्रसारण ?
कभी सोचना। पर सरकार इनके लिए क्यों सोचे आखिर सरकार को क्या लेना देना तो सुन लीजिये देश के प्रधान सेवक जी आप को अपनी प्रसिद्धि पाने के लिए इसी रेड़ियो का सहारा लेना पड़ा हैं। अगर आप इन लोगों के हक़ में नहीं बोल सकते ,इनके हक़ को नहीं दिला सकते तो फिर आप के “मन की बात ” सिर्फ और सिर्फ बेईमानी ही हैं। रेड़ियो अधिकारियों से नहीं चलता। रेड़ियो को ये कैजुवल कर्मचारी ही चलाते है। मोदी जी आप तो “सबका साथ सबका विकास” की बात करते हैं। तो जान लीजिए ये कैजुवल कर्मचारी 1978 से अपने नियमितीकरण की मांग कर रहे हैं अब तो मान लीजिए इनकी मांग ताकि इनके भी “अच्छे दिन” आ सके।
1972 में तत्कालीन सरकार और निदेशक ने कार्य के आधार पर 5 हिस्सों में इसे वर्गीकृत कर दिया। 1983 में इसी 5 हिस्सों में से दो को तो सरकार ने सुविधाएं दे दी पर बाकि बेचारे अबतक संघर्ष ही कर रहे हैं। और हद तो इस बात की है की जो संघर्ष कर रहे है वही सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण लोग हैं मामला तो कोर्ट भी चला गया उसमे कार्यवाही की बात भी कोर्ट ने की पर हर बार नया कुछ जोड़ कर इन कैजुवल कर्मचारीयों को नियमित नहीं किया गया। अब तो आंदोलन कर रहे इन कैजुवल कर्मचारीयों के साथ श्रोता भी जुड़ गया हैं अब वे भी इन कैजुवल कर्मचारीयों के साथ खड़ा हो गया है। साहब इस जादुई आवाज़ की दुनियां के बारे में भी सोचिए थोड़ा समय देकर रेड़ियो के भविष्य पर भी विचार कीजिए वरना फिर कोई अपने “मन की बात” नहीं कर पाएगा।
लेखक :-निशात सिद्दीकी
निशात सिद्दीकी
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लेखक तेज़ न्यूज़ नेटवर्क के एडिटर है। इन्होने देश के अन्य मिडिया संस्थानों में भी अपना सहयोग दिया है।