नई दिल्ली: पर्यावरण मंत्रालय ने पशु बाजार में जानवरों के कत्ल करने के मकसद से बेचे जाने पर प्रतिबंध लगा दिया है। यह नियम पूरे देश में लागू होगा। इस श्रेणी में गाय, बैल, भैंस, ऊंट, सांड, बछिया, बछड़े आदि को शामिल किया गया है। इसके साथ ही अब मवेशियों को खरीदने वालों को एक घोषणा-पत्र देना होगा, जिसमें यह सुनिश्चित किया जाएगा कि बेचे जाने वाले जानवरों का कत्ल नहीं किया जाएगा।
इस कदम को मोदी सरकार की गायों को बचाने की भावनात्मक कवायद के रूप में भी देखा जा रहा है। इस फैसले को अमल में लाने के लिए 3 महीने का वक्त दिया गया है। मगर, देश में मांस के लिए केवल 30 फीसद मवेशियों का उपयोग किया जाता है, जो या तो स्थानीय खपत या निर्यात खपत के रूप में होता है। वहीं, 70 फीसद मवेशियों के शवों से दैनिक उपयोग में आने वाले सामानों के लगभग तीन दर्जन उद्योग चलते हैं और साथ ही कई सस्ती चीजें बनाई जाती हैं।
जिन 30 फीसद मवेशियों को मांस के लिए मारा जाता है, उनमें सर्वाधिक वॉटर बफेलो हैं क्योंकि पांच राज्यों को छोड़कर मांस के लिए गायों को मारना या तो पूरी तरह से प्रतिबंधित है या इस पर सख्त नियम बने हैं। इसके अलावा गौवंश का मांस खाना, बेचना, परिवहन या निर्यात करना एक गैर-जमानती अपराध है, जो सभी उत्तरी, मध्य और पश्चिमी भारत में लागू है और इसके लिए 10 साल तक जेल की सजा हो सकती है।
ऐसे में सरकार के नए नियम के बाद बटन, साबुन, टूथपेस्ट, पेंट ब्रश और सर्जिकल टांके के बिना जीवन के बारे में सोचना कठिन होगा, जो मवेशियों के शवों पर चलने वाले उद्योगों को सहारा देते हैं। इसके अलावा एक और बड़ी समस्या है। मान लीजिए कोई किसान 25,000 रुपए में एक बैल खरीदता है, तो वह करीब दो साल बाद भी उसे इतनी ही कीमत पर बेच सकता है।
चोट या बीमारी के कारण यदि वह बैल काम का नहीं रहता है, तो किसान इसे करीब 10,000 रुपए में बेचकर नया जानवर के लिए कुछ रकम का इंतजाम कर सकता है। नए नियमों के बाद किसान यदि बाजार में बैल को नहीं बेच पाएगा, तो किसान के लिए नए बैलों को खरीदना मुश्किल हो जाएगा साथ ही पुराने बैल की देखभाल करने में भी उसे अतिरिक्त बोझ उठाना पड़ेगा।
@एजेंसी