गौरवशाली भारतीय सिनेमा का इतिहास तीन दौर में विभक्त किया जा सकता है। इन तीन दौर में सिनेमा जगत ने जाे अमिट छाप दर्शकों के दिल में बनाई है वह हर उम्र के व्यक्ति की यादों में जुड़ चुकी है। मुंबई के चालीस युवाओं ने इन तीन दौरों की फिल्मों को लेकर एक अभिनव प्रयोग किया गया। करीब एक दशक पूर्व अपने कॉलेज में प्रदर्शन में मिली प्रशंसा के बाद यह युवा अपने माइरिड आटर्स के बैनर तले इसे कई सम्मानित मंचों पर प्रदर्शित भी कर चुके हैं।
तीनों दौरों का तीन घंटे में फिल्म जैेसा मंचन
माइरिड आटर्स की डायरेक्टर सायली इंदुलकर के अनुसार ‘कहा न फिल्मी है’ एक डांस ड्रामा है। बाॅलीवुड के फिल्मों से चयनित कुछ एेसी कहानियों का मंचन है जिन्होंने अपने दौर में दर्शकों के दिलों पर राज किया। एक पूरी तीन घंटे की फिल्म की तरह रची गयी इस प्रस्तुत में जहां ब्लैक एंड व्हाईट जमाने के राज कपूर-नरगिस के दौर की झलक दिखाई देती है, तो वहीं दूसरी ओर ईस्टमेन दौर के शम्मी कपूर के मस्तमौला अंंदाज, हेलन के कैबरे नृत्य की प्रस्तुत कलाकार देते दिखाई देते हैं। नब्बे के दौर में सिनेमा में अपनी अलग पहचान देने वाली काजोल-शाहरुख की जाेड़ी बदले हुए परिदृश्य को बखूबी पिरोती है। दर्शकों को सबसे ज्यादा कोरिग्राफी पसंद आती है जिसमें ट्रांसिज़शन्स बहुत प्रभावी हैं।
ऐसे शुरू हुअा सफर
मुंबई के केईटी वीजी वजे केलकर कॉलेज के स्टूडेंट्स ने वर्ष 2007 में अपने वार्षिक उत्सव सामारोह के लिए कुछ अलग प्रस्तुति करने की ठानी। लीड को कोरियोग्राफर और माइिरड आर्ट्स के फाउंडर श्रेयस देसाई और प्रणाली निम्बकर बताते हैं कि,’शुरुआत में कॉलेज के लिए ‘तीन कहानियां’ नाम से तैयार किया गये इस डांस ड्रामे को हर तरफ तारीफ मिली। तारीफ से मिले उत्साह के बाद 2008 में विधिवत आम दर्शकों के लिए इसे तैयार किया गया। इसके मंचन के दस वर्ष पूरे हो चुके हैं।
तीन घंटे के इस शो में चालीस कलाकार अपनी परफॉर्मेंस देते हैं। श्रेयस के अनुसार तीन घंटे के इस शो के तैयार करने में काफी अध्ययन औैर मशक्कत करनी पड़ी। कास्ट्यूम डिजाइनिंग, लाइटिंग, डायलॉग्स, म्यूजिक पर विशेष ध्यान दिया गया है।इन सब पहलुओं में परफेक्शन के लिए घंटों तक तीनों दौराें की मूवीज़ को देखा। बता दें कि रविवार, आठ अप्रैल को इस शो का मंचन थाने के डॉ. काशीनाथ घाणेकर नाट्य गृह में किया जाएगा।