नई दिल्ली – एक उच्च स्तरीय 14 सदस्यीय समिति ने तलाक के मामलों में मुस्लिम लॉ और हिंदू लॉ में कई महत्वपूर्ण बदलाव की सिफारिश वाली रिपोर्ट महिला एवं बाल विकास मंत्रालय को सौंप दी है। यूपीए सरकार ने वर्ष 2013 में इस कमेटी को महिलाओं की स्थिति पर रिपोर्ट देने के लिए गठित किया था।
इस रिपोर्ट के मुताबिक, मौखिक, एक तरफा, तीन बार तलाक बोलने से शादी तोड़ने की परंपरा को बंद करने की सिफारिश की गई है। इस परंपरा के मुताबिक मुस्लिम व्यक्ित फोन पर, सोशल नेटवर्किंग साइट पर या टेक्स्ट मैसेजे भेजकर भी पत्नी से तलाक ले सकता है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि पत्नी की उम्र जाने बगैर पति के जरिए किए गए दुष्कर्म को अपराध मानकर उस पर कार्रवाई होनी चाहिए। अब मंत्रालय इन सिफारिशों पर चर्चा करेगा और फैसला करेगा कि उन्हें स्वीकार किया जाए या नहीं। यहां तक कि यदि मंत्रालय तीन बार तलाक कहने की परंपरा को खत्म करने की बात स्वीकार करता है, तो भी उसे कानून में बदलाव का कोई कदम उठाने से पहले मुस्लिम समुदाय के साथ विचार-विमर्श करना होगा।
मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि गृह मंत्रलाय, कानून मंत्रालय और अल्पसंख्यक मंत्रालय सहित कई मंत्रालयों के साथ अगले दो हफ्तों में कई बैठकें की जाएंगी। उम्मीद है कि पहली बैठक 20 जुलाई को होगी। मुस्लिम महिला संगठन दशकों से मुस्लिम पर्सनल लॉ में सुधार की मांग कर रहे हैं।
पाकिस्तान, सऊदी अरब, तुर्की, ट्यूनिशिया, अल्जीरिया, इराक, ईरान, इंडोनेशिया और बांग्लादेश सहित कई देशों में तीन बार तलाक कहकर शादी तोड़ने की परंपरा पर प्रतिबंध लग चुका है। मगर, भारत में मुस्लिम पर्सनल लॉ में यह अब भी मान्य है।
ऑल इंडिया मुस्लिम वुमन पर्सनल लॉ बोर्ड की शइस्ता अंबर ने कहा कि समस्या यह है कि राजनीतिक क्लास हमें वोट बैंक नहीं मानता है। नेताओं ने मुझे बताया कि मैं कोई मुल्ला या मौलवी नहीं हूं। मेरी मांगे उनकी प्राथमिकता में नहीं हैं। अंबर ने कहा कि उन्हें डर है कि उच्च स्तरीय कमेटी की सिफारिशें ठंडे बस्ते में न रख दी जाएं।