झारखंड जल,जंगल और जमीन के लिए जाना जाता है,अब यहां के जंगल और जमीन पर खतरा मंडराने लगा है।झारखंड में जंगल और जमीन बचाने के लिए आॅदोलन किया जा रहा है।जंगल बचाओ आॅदोलन के तहत रांची और खुंटी जिला में मुंडारी खुटकट्टी जंगल की वापसी के लिए आदिवासी आॅदोलनरत हैं।मुंडारी खुटकट्टी जंगल पर मालिकाना हक दशकों से मुंडा समुदाय का रहा है,जिसे सीएनटी ऐक्ट भी मान्यता देता है लेकिन वन विभाग अब इसपर अपना दावा जता रही है।मुंडारी खुटकट्टी गांव 500 हैं,जहां मुंडा समुदाय के लोग वर्षों से निवास करते आ रहे हैं।
जंगल बचाओ आॅदोलन के एक्टिविस्ट जंगल पर अधिकार के लिए हाई कोर्ट में मुकदमा दर्ज किये हैं।जंगल बचाओ आॅदोलन की शुरूआत पूर्व सांसद स्व0 रामदयाल मुंडा,संजय बसु मल्लिक और एलेस्टियर बोदरा ने की थी,वर्तमान में इसके संयोजक जेवियर कुजूर हैं।कुजूर बताते हैं कि झारखंड में वनाधिकार कानून को अमल में नहीं लाया जा रहा है।वन अधिकार कानून के तहत सामूदायिक वन अधिकार पट्टा ग्रामीणों को नहीं दिया जा रहा है,उसे दिलाने की दिशा में संगठन सक्रिय भूमिका निभा रहा है।झारखंड में सामूदायिक वन अधिकार पट्टा अबतक किसी को नहीं दिया गया है जबकि कर्नाटक के चमरा जिले के बी आर हिल्स में 25 सोलिगा आदिवासी गांव को सामुदायिक पट्टा दिया गया है, महाराष्ट्र के गढ़चिरौली सहित अन्य जिलों में 50 से अधिक सामूदायिक वनाधिकार पट्टा दिया गया है,उडीसा और छत्तीसगढ़ में भी दर्जनों पट्टे दिये गये हैं।
जंगल आधारित विकास योजना जीविका के लिए अनिवार्य हैं,झारखंड में ग्राम सभा की सहमति के बिना जंगल की जमीन पर निजी कंपनियों को हक दिलाया जा रहा है,वन ग्रामों को राजस्व ग्राम के रूप में परिणत नहीं किया जा रहा है।झारखंड में जंगल 29 प्रतिशत है,जिसका रकबा 24 हजार वर्ग किलोमीटर है, जिसमें 4 हजार वर्ग किलोमीटर आरक्षित वन एवं 19 हजार वर्ग किलोमीटर संरक्षित वन है।कुजूर बताते हैं कि जंगल क्षेत्र में रह रहे लोग जंगल का संरक्षण,संवद्र्वन और प्रबंधन कर रहे हैं,वन विभाग जंगल पर अपना हक जता रही है।
जंगल बचाओ आॅदोलन रांची के बुरमु,चान्हो,मांडर,खेलारी,सरायकेला खरसांवा के कुचाई,हजारीबाग के पारण,बोकारो के कसमार व जरीडीह,खुंटी जिला के अडकी प्रखंड सहित दर्जनों गांव में ग्राम सभा कर ग्रामीण जंगल की जमीन पर वन विभाग के तर्ज पर अपना साईन बोर्ड लगा रहे हैं।कुजूर ने बताया कि झारखंड बनने के बाद 107 एमओयू हुए हैं,जिसमें 60 प्रतिशत खनिज संपदा के दोहन के लिए हैं जो जंगल के ईलाके में अवस्थित हैं,ऐसे में जंगलों पर शामत आनेवाली है।झारखंड के गुमला,लोहरदगा,लातेहार,पलामू में बाॅक्साईट है जहां निजी कंपनी आ रही है,सारंडा के जंगलों में मित्तल,वेदांता लोहा लेने आ चुकी है।लातेहार में अभिजित गु्रप कोयला लेने आ रही है,संताल परगना में जिंदल,अडानी,यूपी बिजली निगम,हजारीबाग के बरकाकाना में कोयला लेने एनटीपीसी सहित निजी कंपनी आ रही है।ग्रामीण किसी भी सूरत मंे अपनी जमीन पर खनन नहीं होने दे रहे हैं,ऐसे में तनाव बढ़ने की संभावना बढ़ रही है।आदिवासी जंगल में निवास करते हैं,जंगल ही उनके जीने का सहारा है।
सरकार एमओयू के तहत निजी कंपनी को जमीन दिलाने के लिए जोर लगा रही है,ग्रामीण सरकार के खिलाफ गोलबंद हो रहे हैं।सरकार की नीति के खिलाफ आदिवासी संगठन भी मुखर है,एमओयू के तहत सरकार खदान के लिए भूमि व जंगल निजी कंपनी को उपलब्ध कराने की तैयारी में है।माओवादी के नाम पर बाक्साईट और कोयला खदान स्थित जंगल क्षेत्रों में सीआरपी,पुलिस कैंप स्थापित कर रही है,सरकार के लिए माओवादी चुनौति नहीं है,मकसद है खनन पर कब्जा।विस्थापन का दंश झेल रहे आदिवासी अब विस्थापित होना नहीं चाहते,लेकिन सरकार उनकी जमीन का अधिग्रहण करने पर उतारू है।झारखंड के ग्रामीण क्षेत्रों में निजी कंपनी के खिलाफ आदिवासी गोलबंद हो रहे हैं और वे किसी सूरत में अपनी जमीन से बेदखल होना नहीं चाहते,जंगल बचाओ आॅदोलन का समर्थन ग्रामीण कर रहे हैं,जंगल बचाओ आॅदोलन के पक्ष में झारखंड वन अधिकार मंच,इज्जत से जीने दो व एकता परिषद खडी है।पूर्व से झारखंड में विस्थापन विरोधी आॅदोलन,स्वशासन आॅदोलन,सीएनटी,एसपीटी ऐक्ट बचाओ आॅदोलन,5 वीं अनुसूची बचाओ आॅदोलन,ग्राम स्वराज आॅदोलन,स्थानीय नीति लागू कराने को लेकर आॅदोलन जारी है।
;- शैलेन्द्र सिन्हा