बैतूल : आदिवासियों के लिए तमाम सुविधाएं एवं योजनाएं होने के बावजूद आदिवासी वर्ग भी सर्वाधिक शोषण का शिकार हो रहा है। घोड़ाडोंगरी स्वास्थ्य केन्द्र में शनिवार की शाम सर्पदंश से पीडि़त एक बच्चे की मौत के बाद पोस्टमार्टम के लिए परिजनों को जिस तरह की परेशानियों से जूझना पड़ा वह शासन के आदिवासियों के हित के लिए किए जा रहे कार्यो को ठेंगा दिखाने के लिए काफी है।
अस्पताल में पदस्थ कुछ कर्मचारी ने मानवीयता की हदे को पार करते हुए ऐसे गरीब परिवार से पोस्टमार्टम के लिए ढाई हजार रूपए की मांग की जिसके पास सर्पदंश के बाद तड़प रहे बच्चों को हॉस्पीटल तक ले जाने के लिए पैसे नहीं थे। 108 को सूचना मिलने के बाद बच्चे को सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र लाया गया था।
घोड़ाडोंगरी विकासखंड के बर्रीढाना ग्राम के मोहन पिता किशोर भस्मकर(15) को शनिवार शाम सांप ने काट दिया था। इलाज के लिए पैसे नहीं होने के कारण पहले भगत भुमकाओं से इलाज कराने उलझा रहा बाद में बालक को घोड़ाडोंगरी अस्पताल लाया गया। जहां उसे डॉक्टरों ने मृत घोषित कर दिया। आज दोपहर में मोहन के शव का पोस्टमार्टम करने के लिए अस्पताल में पदस्थ कर्मचारी प्रदीप ने मोहन के परिजनों से ढाई हजार रूपए की मांग की। परिवार ने जैसे तैसे लोगों से उधार लेकर 16 सौ रूपए चुकाएं और बेटे का पोस्टमार्टम करने का निवेदन किया।
बावजूद इसके कर्मचारी अपनी जिद पर अड़ा रहा। अंतत: पैसे चुकाकर ही आदिवासी परिवार के मासूम बेटे का पोस्ट मार्टम हो पाया। प्रत्यक्षदर्शियों के मुताबिक मोहन के शव के पीएम के लिए ढाई हजार रुपए मांगने वाले कर्मचारी का कहना था कि परिजनों से पीएम के लिए सामान मांगने के लिए पैसे मांगे गए है। हैरत की बात यह है कि शासन द्वारा शासकीय अस्पतालों में नि:शुल्क उपचार करने के साथ-साथ किसी मरीज की मौत हो जाने पर शव के पोस्टमार्टम एवं शव को घर तक पहुंचाने के लिए भी नि:शुल्क इंतजाम किए है। पीएम एक आवश्यक प्रक्रिया है जो किसी अनहोनी के दौरान मौत होने पर शासकीय अस्पताल में नि:शुल्क रुप से की जाती है।
अंतिम संस्कार के लिए नहीं थे पैसे
पोस्टमार्टम के बाद मोहन के पिता किशोर अपने बेटे को लेकर बर्रीढाना तो आ गए लेकिन दूसरी परेशानी यह थी कि अब उनके पास बेटे के अंतिम संस्कार के लिए पैसे नहीं थे। इस बात की सूचना समाजसेवी राजेश सरियाम को उनके मोबाइल पर किसी प्रत्यक्षदर्शी द्वारा दी गई। क्षेत्र में मौजूद श्री सरियाम ने बर्रीढाना पहुंचकर मोहन के शव का अंतिम संस्कार करने के लिए 15 सौ रुपए की मदद दी।
अस्पताल में जिस तरह से बेटे के शव के पोस्टमार्टम के लिए आदिवासी परिवार परेशान हुआ उसके बाद यह उम्मीद कैसे की जा सकती है कि आदिवासी पहले भगत भुमकाओं को छोड़कर सीधे अस्पताल की राह लेंगे। सरकारी सहायता से उनका मोहभंग होना लाजमी है।
इस संबंध में जानकारी के लिए घोड़ाडोंगरी अस्पताल में पदस्थ एवं मोहन के शव का पीएम करने वाले डॉक्टर प्रितेश बहोत्रा से उनके मोबाइल नंबर 9425351183 पर लगातार पांच बार सम्पर्क किया गया परंतु उनका मोबाइल कवरेज क्षेत्र में नहीं था। सीएमएचओ डॉ प्रदीप मौजेस के मोबाइल नंबर- 9009845557 पर कॉल किया गया उन्होंने कॉल रिसीव नहीं किया। रिपोर्ट @ अकील अहमद