तीन तलाक देने को अपराध के दायरे में लाने वाला कानून लोकसभा से पास हो गया है। इससे पहले गुरुवार को संसद में इस बिल पर वोटिंग हुई। बिल में कुछ संशोधनों को लेकर यह वोटिंग हुई थी।
एआईएमआईएम चीफ असदुद्दीन ओवैसी ने भी वोटिंग की मांग की थी। सदस्यों ने उनके संशोधनों को पूरी तरह से खारिज कर दिया। एक संशोधन पर हुई वोटिंग में तो ओवैसी के पक्ष में सिर्फ 2 वोट पड़े, जबकि इसके खिलाफ 241 वोट पड़े।
दूसरे प्रस्ताव में भी उनके पक्ष में सिर्फ 2 वोट पड़े। वहीं, 242 लोगों ने उनके प्रस्ताव के खिलाफ वोट दिया।
हालांकि, इससे पहले उनके संशोधन के प्रस्ताव को लोकसभा के सदस्यों ने ध्वनि मत से खारिज कर दिया था। इससे पहले, सदन में इस बिल पर विस्तृत चर्चा हुई।
आखिर क्या है बिल में ?
द मुस्लिम विमिन (प्रोटेक्शन ऑफ राइट्स ऑन मैरेज) बिल में तीन तलाक की पीड़ितों को मुआवजे का भी प्रावधान है। इस बिल को गृह मंत्री राजनाथ सिंह की अगुआई में एक अंतरमंत्रालयी समूह ने तैयार किया है। इसके तहत किसी भी तरह से दिया गया इन्सटैंट ट्रिपल तलाक (बोलकर या लिखकर या ईमेल, एसएमएस, वॉट्सऐप आदि के जरिए) ‘गैरकानूनी और अमान्य’ होगा और पति को 3 साल तक जेल की सजा हो सकती है। इस बिल को सुप्रीम कोर्ट के 22 अगस्त के फैसले के बाद तैयार किया गया था। सुप्रीम कोर्ट ने 22 अगस्त को तीन तलाक को गैरकानूनी घोषित किया था। बिल के मसौदे को 1 दिसंबर को राज्यों को विचार के लिए भेजा गया था और उनसे 10 दिसंबर तक जवाब मांगा गया था।
कानून के जानकारों की नजर में
सुप्रीम कोर्ट द्वारा गैर-संवैधानिक करार दिए जा चुके ट्रिपल तलाक (तलाक-ए-बिद्दत) देने वालों को 3 साल तक कैद की सजा का प्रावधान करने की तैयारी है। लेकिन कानूनी जानकारों का कहना है कि ऐसी पीड़ित महिलाओं के संरक्षण के लिए कानून में ठोस प्रावधान करने की जरूरत है, क्योंकि ऐसे गैरकानूनी तलाक देने वाले पति को जब जेल भेजा जाएगा तो पूरे परिवार पर इसका असर होगा।
सुप्रीम कोर्ट के ऐडवोकेट एम. एल. लाहौटी के मुताबिक, सरकार ‘मुस्लिम विमिन प्रोटेक्शन ऑन राइट्स ऑफ मैरेज’ बिल ला रही है। इसमें दोषी पाए जाने पर 3 साल कैद की सजा हो सकती है, लेकिन यहां अहम सवाल है कि महिला और उसके परिवार के खर्चे कैसे और कहां से आएंगे? पति अगर किसी नौकरी में है और वह जेल जाता है तो वह सबसे पहले नियम के तहत सस्पेंड होगा।
अगर वह स्वरोजगार में है तो भी उसकी आमदनी खत्म हो जाएगी। पति को सजा होते ही वह नौकरी से बर्खास्त हो जाएगा और उसकी सैलरी खत्म हो जाएगी। ऐसी सूरत में महिला और बच्चों का खर्च कौन वहन करेगा। कहीं महिला इसी डर से कि उसकी परवरिश कैसे होगी, ऐसे मामलों में सामने आने से कतराने न लगे। चूंकि मामला पारिवारिक विवाद का है, ऐसे में पति पर निर्भर रहने वाली महिला बैकफुट पर आ जाएगी।
हाई कोर्ट के ऐडवोकेट एम. एस. खान बताते हैं कि शाह बानो केस के बाद सरकार ने मुस्लिम महिला (तलाक अधिकार संरक्षण कानून, 1986) बनाया था। इस कानून के तहत एक मुस्लिम तलाकशुदा महिला इद्दत के समय के बाद अपना गुजारा नहीं कर सकती तो अदालत उसके संबंधियों को गुजारा भत्ता देने के लिए कह सकती है। वो वैसे संबंधी होंगे जो मुस्लिम कानून के तहत उसके उत्तराधिकारी होंगे। अगर ऐसे रिश्तेदार नहीं हैं तो वक्फ बोर्ड गुजारा भत्ता देगा।