अभिव्यक्ति की आजादी इस विषय पर बोलने के लिए नेताओं को कभी कोई आपत्ति नहीं होती हैं और इस विषय पर बोलने के लिए वें सबसे पहली पंक्ति में खडे भी रहते हैं या यूँ कहें हैं कि अगर अभिव्यक्ति की आजादी का कोई सबसे ज्यादा फायदा उठा रहा हैं तो वें खुद नेता ही हैं ।
अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर नेताओं ने अपने बयानों से न जानें कितनें ही दंगे भङकाएं होगें और न जाने कितने ही नेताओं नें इसी आजादी की आङ में महिलाओं पर अनर्गल बयानबाजी भी की हैं । और तो और कुछ नेता तो ऐसे भी हैं जो इस आजादी की खातिर गले पर छुरी रखवाने को तैयार हो जाते हैं।
आज इस आजादी का सबसे ज्यादा प्रयोग करने का हक अगर किसी ने अपने पास रखा हैं तो वे हमारे राजनेता हैं और अगर उनके अतिरिक्त कोई आम नागरिक अपनी आभिव्यक्ति की आजादी के आधार पर इनके विरोध में कुछ लिख दें या कुछबोल दें तो उसकी आजादी सें देश की आजादी को खतरा बताकर उसकी आवाज को दबाने का प्रयास किया जाने लगता हैं।
इसे महज संयोग ही कहें या कुछ और कहें कि एक तरफ तो हमारें देश के प्रधानमन्त्री अमेरीकी कांग्रेस में अभिव्यक्ति की आजादी पर भाषण दे रहे थे तो दूसरी तरफ उनकी ही सरकार के हस्तक्षेप वाला केन्द्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड जो सूचना एंव प्रसारण मन्त्रालय के अधीन हैं ,
‘उङता पंजाब’ फिल्म की सीन काटने के कारण विवादों में खेल रही थी । मारे यहाँ कहने को तो अभिव्यक्ति की आजादी की बहुत बात की जाती हैं पर उस पर लगें प्रतिबन्ध पर बहुत कम ही बातें की जाती हैं । सुरक्षा के नजरिए सें प्रतिबन्ध लगाना उचित भी हैं पर जब संवैंधानिक प्रतिबन्धों के अतिरिक्त आजादी पर और प्रतिबन्ध लगा दिए जाते हैं तो यह अति की स्थिति उत्पन्न कर देती हैं और इसका प्रयोग आजकल अधिकांश पार्टियां अपने सियासी हित की रक्षा के लिए कर रहीं हैं ।
17 जून को रिलीज होने वाली फिल्म उङता पंजाब के 89 सीन को केन्द्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड द्वारा काटने के आदेश पर एकबार फिर प्रेस की स्वतन्त्रता पर सवाल उठ गयें हैं । मामले को समझने के लिए यह समझना आवश्यक हैं कि आखिर से उङता पंजाब किस उङती चिङिया का नाम हैं ? उङता पंजाब 17 जून को रीलीज 2016 को होने वाली फिल्म हैं जो बालाजी मोशन पिक्चर के बैनर तले बनी हैं । फिल्म के डारेक्टर अभिषेक चौबे हैं । फिल्म के प्रोड्सुर टीम में शोभा कपूर , एकता कपूर और अनुराग कश्यप शमिल हैं ।
फिल्म में शाहिद कपूर , करीना कपूर , आलिया भट्ट और दलिजीत दोसतझ ने काम किया हैं । यें फिल्म पंजाब में फैले नशे के गौरखधन्धे पर फिल्माई गई हैं । इस फिल्म के ट्रलेर को देखने से पता चलता हैं कि फिल्म में पंजाब के उन युवाओं की दशा का वर्णन किया गया हैं जो नशे के गर्त में गिर गए हैं । फिल्म में दिखाया हया बैं कि किस तरह वहाँ के युवा धीरे – धीरे ही सही परन्तु नशे के दलदल ऐसे फंसते हैं कि फिर चाह कर भी खुद को इस दलदल सें निकाल नहीं पाते हैं । इस फिल्म को एक तरफ तो केन्द्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड नें ए सर्टिर्फिकेट दिया हैं तो दूसरी तरफ फिल्म के 89 सीन को काटने के आदेश भी दे दिया हैं ।
बोर्ड के इस फैसले के बाद फिल्म को प्रोड्सुर अनुराग कश्यप का कहना हैं कि फिल्म के जिन सीन को काटने के लिए बोर्ड ने फरमान सुनाया हैं , उन सीन को बनाने में सबसे ज्यादा पैसे लगें हैं और फिल्म में काँट – छाँट के पीछे बार्ड जो तर्क दे रही हैं वे तर्क एकदम बेबुनियाद हैं और फिल्म में किसी भी तरह सें युवा को ड्रग्स लेने के लिए प्रेरित नहीं किया गया हैं बल्कि युवाओं को ड्रग्स के दुष्प्रभाव से आवगत कराने का प्रयास किया गया हैं । जबकि केन्द्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड का कहना हैं कि इन दृश्य को देखकर युवा नशें लेने के नए तरीके को सीखेगें और इसके लिए वे गैरकानूनी रास्ते भी अपना सकते हैं ।
इस फिल्म के समर्थन में न केवल बॉलीवुड का एक बडा तबका जिसमें करण जौहर , महेश भट्ट, रामगोपाल वर्मा , मुकेश भट्ट जैसे दिग्गज शामिल हैं बल्कि विपक्ष भी इसके समर्थन में आकर खङा हो दया हैं । जबकि फिल्म के विरोध में अप्रत्यक्ष रुप सें सरकार का सहयोग हैं तो प्रत्यक्ष रुप सें केन्द्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड का सहयोग हैं । केन्द्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड और फिल्म के निर्देशक के बीच की लडाई में देश की राजनीति को अपनी – अपनी सियासी रोटियों को सिकने के लिए अच्छी खासी आँच दिख रहीं हैं तभी तो वें भी इस लङाई में कूद पङी हैं ।
फिल्म में पंजाब की जिस स्थिति का वर्णन किया गया हैं सरकार को लगता हैं अगर इसका प्रदर्शन किया गया तो आने वाले दिनों में होनें वाले विधानसभा चुनाव में सरकार को इसका नुकसान उठाना पङ सकता हैं क्योकि पंजाब में इस समय आकाली दल और भाजपा की गठबन्धन की सरकार चल रहीं हैं । और सरकार के खिलाफ इस समय पंजाब में रोष का माहौल हैं और ऐसें में यें फिल्म इस रोष की आग में कहीं न कहीं घी डालने का काम रहीं हैं । सरकार अपना हित देखते हुए सेंसर बोर्ड सें पर्याप्त काँट–छाँट की माँग कर रहीं और सेंसर बोर्ड सरकार की बात को टाल भी नहीं सकता हैं क्योकि ये बात सबको पता हैं कि केन्द्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड के सदस्यों की नियुक्ति केन्द्र सरकार करती हैं ।
सेंसर बोर्ड कह रहीं हैं कि फिल्म युवाओं को भटकाएंगी तो विपक्ष एंव बॉलीवुड में इस फिल्म के समर्थकों का कहना हैं कि बॉलीवुड में पहले भी कई ऐसी फिल्म आ चुकी हैं जिसमें नशे की बात की गई हैं गो गोवा गोन ऐसी ही फिल्मों में शुमार हैं और ऐसी और भी फिल्म आई हैं जिनमें अश्लीलता को अम्बार था तो उन फिल्मों में काँट – छाँट क्यों नहीं की गई हैं?
विपक्ष को तो उङता पंजाब ने बैठे–बिठाएं उङता हुआ विवादित विषय दे दिया हैं जिसको विपक्ष चुनाव तक गर्म रखने का प्रयास जरुर करेंगा । पर यें पहला मौका नहीं जब केन्द्र में बैठी सरकार ने अपने अनुसार फिल्मों में काँट – छाँट कराई हो । आज भाजपा पर सवाल उठाने वाली कांग्रेस भी एक समय तक अपने विरोध में बनने वाली फिल्मों पर कैंची चलवाने में संकेच नहीं करती थी ।
कांग्रेस के शासनकाल में ‘किस्सा कुर्सी का, ‘राजनीती‘, ‘मद्रास कैफे‘, ‘आँधी‘ जैसी फिल्मों में परिवर्तन की माँग की गई थी तो भाजपा का इतिहास भी इस मामले में ज्यादा साफ–सधुरा नहीं हैं । भाजपा ने भी अपने हित के अनुसार फिल्मों पर बैन एंव काँट–छाँट की माँग की थी, जिनमें ‘पीके‘, ‘ओएमजी‘, ‘एमएसजी‘, ‘कुर्बान, ‘डर्टी पिक्चर‘, ‘फना‘, ‘माई नेम इज खान‘, ‘हैदर‘, ‘जोधा अकबर‘, ‘गोलियों की रास लीला राम लीला‘ जैसी तमाम फिल्में शामिल हैं । हमारा फिल्म उधोग भले ही सौ करोङ का आंकडा पार कर शतक की खुशी मनायें पर आज भी यह एक बङा सच हैं कि राजनीति की आँधी सें फिल्म उधोग भी नहीं बच पाया हैं ।
लेखिका – सुप्रिया सिंह
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