नई दिल्ली- संसद हमले के दोषी अफजल गुरु की फांसी का विरोध करने के लिए जेएनयू में एक कार्यक्रम का आयोजन किया गया था। कार्यक्रम के दौरान कथित तौर पर भारत विरोधी नारे लगाए गए, जिसके बाद जेएनयू छात्र संघ के अध्यक्ष कन्हैया कुमार सहित देशद्रोह का आरोप झेल रहे जेएनयू के छात्र उमर खालिद की जुबान ने एक बार फिर जहर उगला है, इस बार उसने कश्मीर में आतंक का पोस्टर ब्वाय बन चुके बुरहान की मौत पर उसकी शान में कसीदे गढ़े हैं।
फेसबुक पोस्ट में बुरहान की मौत पर अफसोस जाहिर करते हुए उसने अर्जेंटीना के मार्क्सवादी चे ग्वेरा का उदाहरण देते हुए लिखा, कि ‘अगर मैं मर जाऊं तो कोई और मेरी बंदूक उठा ले और गोलियां चलाता रहे’। बुरहान वानी के भी यही शब्द हो सकते थे।
उमर ने आगे लिखा कि बुरहान को मौत का खौफ नहीं था। उसे अधीनता का डर था, उसे इससे घृणा थी। वह आजाद होकर रहा और आजाद होकर ही मरा। उसने कहा कि, बदनसीब भारत सरकार उस आदमी को कैसे हरा सकती है, जिसने खुद खौफ को हरा दिया हो। तुम हमेशा कश्मीर के एकजुट लोगों के दिलों में रहोगे बुरहान। उमर ने आतंकी बुरहान को श्रद्धांनजलि दी है। उमर ने अपनी फेसबुक पोस्ट में बुरहान की सरहाना करते हुए सरकार और राष्ट्रवाद पर भी निशाना साधा है।
खालिद ने बुरहान के जरिए सेना को सुनाई खरी-खोटी
उमर खालिद ने सेना को ट्रोलर संबोधित करते हुए अपनी एक फेसबुक पोस्ट में आतंकी बुरहान की मौत पर आंसू बहाए और बेहद जज्बाती लहजे में लिखा ”मैं अपनी हार स्वीकारता हूं। बेशक, इस धरती तुम जैसे सैकड़ों जब इतने संगठित तरीके से मुझे फंसाने पर तुले हों तो मैं तुम्हारा सामना कैसे कर सकता हूं। हां, मैं गलत था, मुझे तुम्हारे साथ मिल जाना चाहिए था और बुरहान की मौत का जश्न मनाना चाहिए था। देशद्रोही, आतंकवादी, लड़ाकू…. मुझे भी उस गिरोह में शामिल हो जाना चाहिए था।
माफ करें, मैं तुमसे छुटकारा चाहता हूं। कल से, मैं राष्ट्रवादी मर्दानगी को संतुष्ट करने के लिए खुद सम्मलित हो जाऊंगा। मैं हत्याओं, बलात्कार, यातनाओं, गायब हो जाने, अप्सफा और हर चीज पर जश्न मनाऊंगा। केवल बुरहान वानी ही क्यों, मैं 12 वर्षीय लड़के समीर राह की पीट-पीट कर की गई हत्या को न्यायोचित ठहराऊंगा।
आसिया और नीलोफर का सोपियन में कभी बलाक्तार और हत्या नहीं हुई थी, वे पास की झील में गहरे पानी में डूबकर मरे थे। 17 वर्षीय तुफैल मत्तो मरने के ही लायक था जो गलत समय, गलत जगह पर प्रदर्शनकारियों में शामिल हो गया, यह उसकी गलती थी। हंदवारा और कुनान पोशपोरा में तो कभी कुछ हुआ ही नहीं।
कल से मैं एक शुतुरमुर्ग होऊंगा, मैं धौसियाया जाऊंगा, और मैं एक कायर भी होऊंगा जो एक पद पर रहते हुए कमजोरों को सताए जाने पर सुख की अहसास करूंगा। लेकिन मेरे राष्ट्रवादी हो जाने पर एक छोटा सा सवाल है कि क्या ऐसा करने कश्मीर की जमीनी हकीकत बदल जाएगी?’