युनाइटेड नेशंस ह्यूमन राइट्स की प्रमुख मिशेल बाचले ने भारत की मोदी सरकार को कटघरे में खड़ा करने की कोशिश की है।
मिशेल ने बुधवार को कहा कि मोदी सरकार की ‘विभाजनकारी नीतियों’ की वजह से देश की आर्थिक तरक्की पर असर पड़ सकता है।
मिशेल का कहना है कि संकीर्ण राजनीतिक एजेंडों की वजह से पहले से ही असमानता वाले समाज में लोग और ज्यादा हाशिए पर ढकेले जा रहे हैं।
जिनेवा में ह्यूमन राइट्स काउंसिल के समक्ष दाखिल अपनी सालाना रिपोर्ट में उन्होंने कहा, ‘हमें ऐसी रिपोर्ट्स मिल रही हैं, जिनसे अल्पसंख्यकों को निशाना बनाए जाने और उनके उत्पीड़न के संकेत मिलते हैं।’
मिशेल के मुताबिक, खास तौर पर दलित और आदिवासी भी इस उत्पीड़न का शिकार हो रहे हैं।
मिशेल ने इजरायल और फिलिस्तीन विवाद पर भी टिप्पणी की। उन्होंने यह रिपोर्ट को खारिज किए जाने पर निराशा जाहिर की, जिसमें इजरायल पर आरोप लगा था कि उसने फिलिस्तीनी प्रदर्शनकारियों की हत्याएं करवाकर अंतराष्ट्रीय कानूनों का उल्लंघन किया है।
यूएन ह्यूमन राइट्स काउंसिल प्रमुख ने दोनों देशों को संयम बरतने की अपील की। मिशेल चिली की राष्ट्रपति भी रह चुकी हैं। उन्होंने चीन में जेलों में कथित तौर पर बंद उईगर मुस्लिमों के लिए राहत की अपील की।
उन्होंने लैंगिक समानता और शांती की दिशा में इथोपिया द्वारा उठाए गए कदमों की भी सराहना की।
बता दें कि पिछले साल आई इंटरजेनरेशनल मोबिलिटी इंडेक्स के मुताबिक, भारत में मुस्लिमों की हालत और ज्यादा खराब हुई है।
हालांकि, रिपोर्ट में यह भी दावा किया गया है कि अगड़ी जातियों और पिछड़े वर्ग के हालात में भी कोई खास सुधार नहीं आया है।
रिपोर्ट में कहा गया था कि भारत में अनुसूचित जाति और जनजाति के हालात में सुधार हुआ है।
रिपोर्ट का आधार वो सर्वे था, जिसमें साढ़े 5 हजार से ज्यादा गांव और 2300 के करीब शहरों व कस्बों के लोगों को शामिल किया गया था।