लखनऊ: यूपी में बहुत जल्दी ही नई सरकार का गठन होना है। इस आहट ने ही तमाम अफसरों के होश उड़ा दिए हैं। थाना स्तर से लेकर शासन के शीर्ष तक बेचैनी बढ़ गयी है। कुछ अफसर नए संरक्षकों की तलाश में सक्रिय हो गये हैं और कुछ अपनी किनारे की तैनाती के आकलन भर से सहम गये हैं।यहाँ शनिवार को ही मुख्यमंत्री सचिवालय के शीर्ष अफसरों को अवमुक्त कर दिया गया है। अब तक हाशिए पर रहे अफसरों को उम्मीद की किरण दिख रही है।
बसपा शासन में एक खास वर्ग को प्राथमिकता मिली और फिर सपा शासन में भी यही स्थिति बनी रही। भाजपा ने लगातार यही आरोप लगाया कि अपने-अपने वोट बैंक के हिसाब से अच्छे और कर्मठ अफसरों को किनारे करके दोनों सरकारों ने जातीय आधार पर तैनाती की। आम आदमी की जरूरतों, दिक्कतों के हल के लिए थाना और तहसील सबसे अहम केंद्र होते हैं लेकिन, वहां जाने वालों को न्याय नहीं मिला।
डेढ़ दशक से यहां होने वाली तैनातियों ने पूरे समाज को प्रभावित किया। पुलिस और शासन में भी बहुत से महत्वपूर्ण पदों पर तैनाती में पारदर्शिता नहीं रही। ऐसा भी नहीं कि योग्य और ईमानदार अफसर मुख्यधारा में नहीं रहे। लेकिन उनकी संख्या कम थी और उन्हें अपने मन-माफिक काम करने नहीं दिया गया। जिस तरह तबादले-दर-तबादले होते रहे, उससे भी नीयत पर लगातार सवाल उठे।
जाहिर है कि अब भाजपा सरकार बनने के बाद मुख्यमंत्री कार्यालय से लेकर सचिवालय और फील्ड में पुलिस व प्रशासनिक अफसरों की नए सिरे से तैनाती होगी। ऐसे में यूपी कैडर के दिल्ली में तैनात कई वरिष्ठ अफसरों की वापसी की अटकलें लगने लगी है। प्रशासनिक हल्कों में दखल रखने वाले और भाजपा के लिए काम करने वाले कुछ लोग अफसरों की पोस्टिंग को लेकर अभी से सक्रिय हो गये हैं।
@शाश्वत तिवारी