उत्तर प्रदेश में कानपुर के रजिस्ट्री ऑफिस में एक वकील ने इच्छा मृत्यु के लिए वसीयत (लिविंग विल) रजिस्टर कराई है। वकील शरद कुमार त्रिपाठी ने अपने जूनियर वकील अमितेश सिंह को यह अधिकार दिया है कि वह भविष्य में किसी अप्रिय स्थिति में उसके जीवन से संबंधित कोई फैसला ले सके। बता दें इच्छामृत्यु पर सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइंस के बाद यह लिविंग विल का देश में संभवत: पहला फैसला है।
किदवई नगर में रहने वाले 35 वर्षीय वकील शरद कुमार त्रिपाठी के परिवार में पत्नी और दो बच्चों के अलावा बुजुर्ग माता-पिता हैं। शनिवार को वह पूरे कागजों और जूनियर वकील अमितेश सिंह सेंगर के साथ रजिस्ट्री ऑफिस के जोन-3 कार्यालय में पहुंचे। यहां लिविंग विल वाली उनकी अर्जी देख अधिकारी परेशान हो गए।
ऐसा कोई विकल्प न मिलने के बाद उन्होंने लिविंग विल के पहले स्पेशल पावर ऑफ अटॉर्नी जोड़ा। इसके बाद इसका पंजीकरण हो सका। भविष्य में स्वास्थ्य संबंधी किसी मुश्किल हालात (लाइलाज, कोमा या मरणासन्न) में अमितेश ही कानूनी रूप से तय करेंगे कि शरद को जीवन रक्षक प्रणाली पर रखा जाए या नहीं।
जूनियर को यह कानूनी अधिकार देने के सवाल पर शरद ने कहा कि परिवार के लोग संकट और मोह की स्थिति में सटीक फैसला लेने में असमर्थ हो जाते हैं। ऐसे में कोई समझदार इंसान ही निर्णायक फैसला ले सकता है।
बता दें कोर्ट ने ऐसे मामलों में भी गाइडलाइन जारी किया है, जिनमें एडवांस में ही लिविंग विल नहीं है। इसके तहत परिवार का सदस्य या दोस्त हाईकोर्ट जा सकता है और हाईकोर्ट मेडिकल बोर्ड बनाएगा जो तय करेगा कि पैसिव यूथेनेशिया की जरूरत है या नहीं। कोर्ट ने कहा कि ये गाइडलान तब तक जारी रहेंगी जब तक कानून नहीं आता।
पैसिव यूथेनेसिया
एक्टिव और पैसिव यूथेनेशिया में अंतर ये होता है कि एक्टिव में मरीज की मृत्यु के लिए कुछ किया जाए जबकि पैसिव यूथेनेशिया में मरीज की जान बचाने के लिए कुछ ना किया जाए।