अमेरिका के विरोध के बाद भी रूस ने भारत को तेल की सप्लाई के मामले में पहला नंबर हासिल कर लिया है। उसने इराक और सऊदी अरब को भारत को तेल एक्सपोर्ट करने के मामले में दूसरे और तीसरे नंबर पर धकेल दिया है।
अमेरिका और यूरोप ने भले ही रूस से भारत की तेल खरीद को लेकर कई बार आपत्ति जताई है, लेकिन इससे दोनों देशों के कारोबारी रिश्तों पर कोई असर नहीं पड़ा है। यही नहीं अक्टूबर महीने में तो रूस ने भारत को तेल की सप्लाई के मामले में पहला नंबर हासिल कर लिया है। उसने इराक और सऊदी अरब को भारत को तेल एक्सपोर्ट करने के मामले में दूसरे और तीसरे नंबर पर धकेल दिया है। शिपिंग डेटा के आधार पर सामने आईं मार्केट रिपोर्ट्स में यह जानकारी दी गई है। भारत में हर दिन 5 मिलियन प्रति बैरल तेल का आयात होता है। इसमें अक्टूबर महीने में रूस की हिस्सेदारी 22 फीसदी की रही है, जबकि 2019 में उसका हिस्सा महज 1 फीसदी ही था।
चीन और अमेरिका के बाद भारत दुनिया में तीसरा सबसे बड़ा तेल आयातक देश है। वहीं कई सालों से भारत को तेल आयात में अव्वल रहने वाला इराक 20 फीसदी पर आ गया है, जबकि अपनी जरूरत का 16 फीसदी तेल भारत सऊदी अरब से आयात कर रहा है। रूस से भारत की तेल खरीद में इस साल फरवरी से इजाफा हुआ है। रूस की ओर से फरवरी में यूक्रेन पर अटैक किया गया था और इसके चलते अमेरिका, ब्रिटेन, जर्मनी समेत कई पश्चिमी देशों ने रूस पर पाबंदियां लगा दी थीं। ऐसे में रूस की ओर से सस्ते दाम पर तेल बेचा जा रहा था और भारत ने मौके का लाभ लेते हुए बड़े पैमाने पर रूस से तेल की खरीद की है।
कैसे अमेरिका और यूरोप का विरोध भारत ने किया खारिज
दुनिया भर में कच्चे तेल की कीमतों में तेजी से इजाफा हुआ है और यह 139 डॉलर प्रति बैरल तक जा पहुंचा है, जो 14 सालों के टॉप पर है। ऐसे में भारत के लिए रूस से तेल की खरीद करना फायदे का सौदा साबित हुआ है। बता दें कि भारत की ओर से रूसी तेल की खरीद पर अमेरिका और यूरोप ने आपत्ति जताई थी। इस पर कड़ा जवाब देते हुए विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने साफ कहा था कि हम किसी के फायदे या नुकसान में यह कदम नहीं उठा रहे हैं। तेल खरीद का हमारा फैसला देश हित को लेकर है ताकि हम लोगों को सही रेट पर तेल मुहैया करा सकें।