रिपोर्ट के मुताबिक, दस्तावेज में रूस को चीन के बाद अमेरिका के वैश्विक हितों के लिए दूसरा सबसे बड़ा खतरा बताया गया है। यूक्रेन पर अकारण युद्ध शुरू करने के लिए रूस की निंदा की गई है।
अमेरिका ने साल 2022 के लिए अपने सुरक्षा सहयोगी देशों की लिस्ट में पाकिस्तान और सऊदी अरब का जिक्र नहीं किया है। ये दोनों देश यूएस की राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति में एक समय प्रमुख सहयोगी हुआ करते थे। रिपोर्ट के अनुसार अमेरिका रूस नहीं, चीन को सबसे बड़ी भू-राजनीतिक चुनौती के रूप में देखता है। 48 पन्नों के दस्तावेज में दक्षिण और मध्य एशियाई क्षेत्र में आतंकवाद और अन्य भू-रणनीतिक खतरों का उल्लेख है, जिसमें उन खतरों से निपटने के लिए आवश्यक सहयोगी के रूप में पाकिस्तान का नाम नहीं है। पाकिस्तान का नाम वर्ष 2021 के रणनीति पत्र में भी नहीं था।
पाकिस्तान की लंबे समय से शिकायत रही है कि अमेरिका उसे केवल अफगानिस्तान और अन्य देशों से खतरों का मुकाबला करने के लिए माध्यम के रूप में देखता रहा है। हाल के बयानों में अमेरिका और पाकिस्तान के अधिकारियों ने उसे अफगानिस्तान और भारत दोनों से अलग पहचान देने की आवश्यकता पर बल दिया। अमेरिकी अधिकारियों ने भी चीन के साथ अपने घनिष्ठ संबंध बनाए रखने की पाकिस्तान की इच्छा को स्वीकार किया है। यही कारण है कि इस क्षेत्र में चीन के प्रभाव का मुकाबला करने के लिए इसे अमेरिका ने इस तरह की रणनीति बनाई है।
‘चीन के बाद रूस US के वैश्विक हितों के लिए सबसे बड़ा खतरा’
दस्तावेज में रूस को चीन के बाद अमेरिका के वैश्विक हितों के लिए दूसरा सबसे बड़ा खतरा बताया गया है। यूक्रेन पर अकारण युद्ध शुरू करने के लिए उसकी निंदा की गई है। इसमें कहा गया है कि दोतरफा रणनीति महामारी, जलवायु परिवर्तन, मुद्रास्फीति और आर्थिक असुरक्षा को रेखांकित करती है। चीन और रूस जैसी प्रमुख शक्तियों के साथ बढ़ती प्रतिस्पर्धा अमेरिकी हितों के लिए बड़ा खतरा है।
ईरान के आक्रामक रवैये की भी हुई आलोचना
डॉक्युमेंट में आगाह करते हुए कहा गया है कि अगर हम इस दशक में समय गंवाते हैं, तो जलवायु संकट के साथ तालमेल नहीं बिठा पाएंगे। यह रणनीति ईरान को आक्रामक और अस्थिर करने वाले तरीके से काम करने वाली निरंकुश शक्ति के रूप में भी दर्शाती है। अमेरिका ने स्वतंत्र हिन्द-प्रशांत दृष्टिकोण को साकार करने में भारत को दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र और प्रमुख रक्षा भागीदार के रूप में दर्शाया गया है। वहीं, सऊदी अरब की अनुपस्थिति ने वहां से हो रहे उत्पादन में 2 मिलियन बैरल प्रति दिन की कमी करने का निर्णय लिया, जिससे अमेरिका में पहले से ही उच्च गैस की कीमतों में वृद्धि हुई।