अफगानिस्तान की असल हालत के बारे में अमेरिका के अधिकारियों ने अपनी सरकार को अंधकार में रखा। उन्होंने सरकार को सच नहीं बताया। ये दावा अखबार द वाशिंगटन पोस्ट ने सरकारी दस्तावेजों के आधार पर किया है। अखबार का कहना है कि ये सिलसिला पिछले 18 साल से चल रहा था। जिन सरकारी दस्तावेजों का हवाला अखबार ने दिया है, उनके मुताबिक अधिकारियों के पास इस बात के साक्ष्य थे कि अफगानिस्तान में युद्ध में विजय नहीं प्राप्त की जा सकती है। लेकिन वे उसके विपरीत घोषणाएं करते रहे।
इतिहास में अफगानिस्तान जितना लंबा युद्ध अमेरिका ने कभी नहीं लड़ा है। इस युद्ध के दौरान नाकामी क्यों हासिल हुई, इस बारे में ठोस जानकारियां खुद अमेरिका सरकार के पास मौजूद दस्तावेजों में हैँ। उनमें दो हजार से ज्यादा पेज का एक ऐसा दस्तावेज भी है, जिसे युद्ध में प्रत्यक्ष भूमिका निभाने वाले लोगों से बातचीत के आधार पर तैयार किया गया। जिन लोगों से बातचीत की गई, उनमें सैनिक जनरल, राजनयिक, सहायता कर्मी और अफगान सरकार के अधिकारी शामिल हैं। ये दस्तावेज औपचारिक रूप से अब तक अप्रकाशित है।
द वाशिंगटन पोस्ट के मुताबिक जिन लोगों से बातचीत की गई, उनमें से ज्यादातर की पहचान अमेरिका सरकार ने छिपाने की कोशिश की है। अखबार ने कहा है कि अमेरिका के सूचना की स्वतंत्रता अधिनियम के तहत तय प्रतिबंधों के कारण वह उन दस्तावेजों को प्रकाशित नहीं कर रहा है। लेकिन उसने पूरे दस्तावेज का सार प्रकाशित किया है। इसके मुताबिक अमेरिकी अधिकारी यह लगातार कहते रहे कि युद्ध में वे आगे बढ़ रहे हैं। जबकि हकीकत इसके विपरीत थी और अधिकारी उस हकीकत को जानते भी थे।
अखबार में छपी रिपोर्ट के मुताबिक इंटरव्यू के दौरान संबंधित व्यक्तियों ने दो टूक बातें कहीं। उन्होंने अपनी शिकायत, असंतोष और असल हालत का बयान किया। मसलन, पूर्व राष्ट्रपतियों जॉर्ज बुश जूनियर और बराक ओबामा के कार्यकाल में अफगानिस्तान से संबंधित मामलों के प्रभारी और थ्री स्टार जनरल रहे डगलस लुटे ने 2015 में कहा- ‘हमारे पास अफगानिस्तान की मूलभूत समझदारी नहीं थी। हमें यही नहीं पता था कि हम क्या कर रहे हैं।’ उन्होंने कहा- अफगानिस्तान में हमारी अकुशलता के बारे में अमेरिकी जनता को मालूम होगा, तो वे कहेंगे कि 2,300 सैनिकों की जान बेकार में चली गई। उसके लिए वे अमेरिकी सरकार और कांग्रेस (सांसद) को दोषी ठहराएंगे। ऐसे में यह बताने का कौन साहस करेगा कि ये जानें निरर्थक चली गईं?
साल 2001 में जब अमेरिका ने अफगानिस्तान पर हमला, तब से उसके सात लाख 75 हजार सैनिक वहां तैनात किए गए। कई सैनिकों को कई बार वहां भेजा गया। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक उनमें से लगभग 2,300 की मृत्यु हुई। 20,589 सैनिक जख्मी हुए, जिनमें कई विकलांग हो गए।
द वाशिंगटन पोस्ट ने कहा है कि उसे हाथ लगे दस्तावेज बताते हैं कि तीन पूर्व राष्ट्रपतियों- जॉर्ज बुश, बराक ओबामा, और डोनाल्ड ट्रंप- और उनके सैनिक कमांडर वह परिणाम देने में विफल रहे, जिसका वादा उन्होंने अमेरिकी जनता से किया था। तीनों राष्ट्रपतियों ने कहा था कि वे अफगानिस्तान में अमेरिका की जीत सुनिश्चित करेंगे। इन दस्तावेजों में अफगानिस्तान में फैले व्यापक भ्रष्टाचार का भी जिक्र है। इसकी वजह से भी अमेरिका वह नहीं हासिल कर पाया, जिसके लिए उसने अपना सबसे लंबा युद्ध लड़ा।