लखनऊ- अखिलेश सरकार द्वारा 35 हजार सिपाहियों की भर्ती लिखित परीक्षा के बग़ैर कराये जाने के फैसले पर अब कई सवाल खड़े होने लगे है। जिस राज्य में चतुर्थ क्लास के कुछ सौ पदों के लिये 23 लाख आवेदन आये हो, वहां अब बग़ैर लिखित परीक्षा के मेरिट पर कैसे सरकार चयन करेगी। ये एक बड़ा सवाल बन कर सामने आया है।
राज्य में भर्ती प्रक्रियाओं को लेकर पहले से ही सरकार कटघरे में है। यहां तक की लोकसेवा आयोग जैसी संस्था के प्रमुख की नियुक्ति को लेकर न्यायालय तक को निर्देश देना पड़ा। 2012 से लेकर 2015 तक की सारी परीक्षाये विवादित रही है।
भाजपा का साफ़ कहना है की पिछली सपा सरकार में पुलिस भर्ती प्रक्रिया विवाद में आयी थी जिसमे दो दर्जन से अधिक आईपीस स्तर के अधिकारी सहित कई अन्न अधिकारी निलम्बित हुए। भष्टाचार निवारक संगठन से जांच हुई। आज भी हजारों नौकरी से वंचित है।
भाजपा प्रदेश प्रवक्ता विजय पाठक का कहना है की बेरोजगार के साथ छल और छलावा करने में जुटी अखिलेश सरकार में तमामो पद आज भी रिक्त है, प्रदेश में बड़े पैमाने पर काम प्रभावित हो रहा हैं, किन्तु ये पद कैसे पारदर्शी प्रक्रिया के तहत भरे जाये इसकी न तो कोई नीति है न ही सरकार की नियत प्रतीत होती है।
राज्य में सत्ता में आने के बाद लाखों नौकरियां देने के वादे हुए, पर सरकार की गलत नीतियों के कारण ये नियुक्तियां हो नहीं पायी। राज्य में पुलिस बल की कमी की बात लगातार सामने आती रही है। सरकार बार-बार यह कहती रही कि बड़ी संख्या में भर्तियां की जाएगी, क्या सरकार इंतजार कर रही थी, जब उसके कार्यकाल का अंतिम वर्ष हो तो इन प्रक्रियाओं की हवा बनाई जाये।
श्री पाठक ने कहा कि जब पुलिस भर्ती की योग्यता 8वीं पास थी, 10वीं पास थी तब भी लिखित परीक्षाये होती थी। अब पुलिस भर्ती की योग्यता 12वीं पास है, तो सरकार ने लिखित परीक्षा को खत्म करने का फैसला किया। पिछली बार पुलिस भर्ती को लेकर राजनैतिक प्रभाव के आरोप लगने पर लिखित परीक्षा की जब जांच हुई तो उसमें तमामो खामिया, हेराफेरी सामने आयी। सपा के शीर्ष नेतृत्व तक पर आरोपों की उगलिया उठी।
भाजपा प्रवक्ता ने कहा कि देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी छोटी नौकरियों में पारदर्शी प्रक्रिया अपनाने पर जोर देते हुए, इंटरव्यू को खत्म करने की बात कर रहे है, दूसरी ओर सीएम अखिलेश यादव इंटरव्यू के बजाय लिखित परीक्षाओ को ही खत्म करने में जुटे है।
रिपोर्ट:- शाश्वत तिवारी