लखनऊ- यूपी की राजधानी लखनऊ में मनाया जाने वाला “बड़ा मंगल” सिर्फ हिन्दुओ की आस्था का प्रतीक नहीं है बल्कि मुस्लिमो की भी इसमें आस्था है। यहाँ बड़े मंगल के मौके पर जगह-जगह लगने वाले ठन्डे पानी के पाउच व भंडारो में हिन्दुओ के साथ खासकर मुस्लिम समाज का सहयोग काबिले तरीफ है।
1797 इस्वी के आसपास की अवध में रानी छत्रकुंवर (मलका ऐ ज़मानी) बहु बेगम ने मन्नत मांगी थी की अगर उनके बेटे सआदत अली खान अवध के नवाब बनते है तो वो हज़रत अली (अ.स.) के नाम पर एक बस्ती बसाई जाएगी और उसमें ही हनुमान जी का मंदिर भी बनेगा, उसके बाद सआदत अली खान अवध के नवाब बन गये, लिहाज़ा हज़रत अली (अ.स.) के नाम पर बस्ती कायम हुई उसे अली गंज का नाम दिया गया,और अलीगंज में ही हनुमान जी का मंदिर बना।
जिसे अब हनुमान जी के पुराने मंदिर के नाम से जाना जाता है इस जगह को अब मेहदी टोला के नाम से भी जाना जाता है ,सआदत अली खान की पैदाइश मंगल के दिन हुई इसलिए उनकी माँ उन्हें मंगलू कहती थी मन्नत पूरी हो चुकी थी मंदिर भी बन चुका था।
उसी दौरान जेठ महीने के पहले मंगल को यहाँ पहले मेले का आयोजन हुआ और कर्बला वालों की याद में सरकार की तरफ से लखनऊ में जगह -जगह सबील (प्याऊ) लगी और प्रसाद बाटा गया, इसके बाद सरकार ने जेठ महीने के पहले मंगल को बड़ा मंगल घोषित किया और सरकारी छुट्टी का एलान कर दिया तब से लेकर आज तक इस आदेश का पालन होता है।
और जेठ माह में पड़ने वाले सभी मंगलवार को पुराने हनुमानजी के मंदिर के साथ नए हनुमान मंदिर (जिसकी तामीर राजा जाट मल ने करवाई थी ),लखनऊ शहर के सभी हनुमान मंदिरों में जगह-जगह भक्तो के द्वारा सबील (प्याऊ) लगतें हैं और प्रसाद बंटता है .अवध की गंगा जमुनी तहज़ीब की यह मिसाल जेठ के बड़े मंगल पर दिखायी देती है बड़े मंगल पर सभी धर्म के लोग जगह-जगह प्याऊ लगवाते है और प्रसाद का वितरण होता है।
रिपोर्ट:- शाश्वत तिवारी