यह भी एक आश्चर्यजनक संयोग ही है कि भारतीय जनता पार्टी ने जब पश्चिम बंगाल में सत्ता हासिल करने की महत्वाकांक्षा से अपनी पूरी ताकत झोंक दी है तब उसे उत्तराखंड की अपनी ही सरकार का मुख्य मंत्री बदलने के लिए इसलिए विवश होना पड़ा क्योंकि सत्ताधारी विधायक दल के अनेक सदस्यों की यही मंशा थी। दर असल यह स्थिति इसलिए निर्मित हुई क्योंकि मुख्यमंत्री की कुर्सी पर आसीन होने के बाद कुछ ही महीनों के अंदर त्रिवेंद्र सिंह रावत विवादों में घिरने लगे थे और मुख्यमंत्री के रूप में उनकी विवादास्पद कार्यशैली और क्रियाकलाप देखकर जल्दी ही अनुमान लगना शुरू हो गए थे कि भाजपा को उनका कार्यकाल पूरा होने के पहले ही उन्हें मुख्यमंत्री पद से हटाने के लिए विवश होना पड़ेगा लेकिन लंबे इंतजार के बाद पार्टी ने यह फैसला तब लिया जब राज्य विधानसभा के आगामी चुनावों के लिए मात्र एक साल का समय बाकी रह गया है। अगर अभी भी भाजपा त्रिवेंद्र सिंह रावत को मुख्यमंत्री पद से हटाकर तीरथसिंह रावत को मुख्यमंत्री पद की बागडोर सौंपने का फैसला नहीं करती तो अगले विधानसभा चुनावों में वह दुबारा सत्ता में लौटने के प्रति आशान्वित नही हो सकती थी। चुनावों के एक साल पहले मुख्यमंत्री पद की बागडोर तीरथ सिंह रावत के पास आ जाने से उन्हें चुनावों की तैयारी के लिए पर्याप्त समय मिल सकेगा। राज्य की जनता भी तब तक पूर्व मुख्यमंत्री के विवादित कार्यकाल को संभवतः भूल चुकी होगी यद्यपि अभी से यह मान लेना जल्दबाजी होगा कि राज्य के नए मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत के नेतृत्व में चुनाव लड़कर भाजपा उत्तराखंड में लगातार दूसरी बार सत्ता हासिल करने में सफलता के प्रति अभी से निश्चिंत हो सकती है। यहां यह बात विशेष उल्लेखनीय है कि उत्तराखंड के इतिहास में भाजपा और कांग्रेस, दोनों में से किसी भी पार्टी को अभी तक लगातार दो विधानसभा चुनावों में बहुमत हासिल करने में सफलता नहीं मिली है। उत्तराखंड के उस राजनीतिक इतिहास को देखते हुए ही भाजपा ने तीरथ सिंह रावत को मुख्यमंत्री पद की बागडोर सौंपने का फैसला किया और जिस दिन भाजपा विधायक दल का नेता चुना गया उसी दिन उनका शपथग्रहण समारोह भी संपन्न हो गया। इस तरह तीरथ सिंह रावत राज्य के नवें मुख्यमंत्री बन गए । मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने के बाद त्रिवेंद्र सिंह रावत ने कहा है कि पार्टी ने मुझ जैसे छोटे से कार्यकर्ता को चार सालों तक मुख्यमंत्री पद पर काम करने का जो अवसर प्रदान किया उसमें मैंने महिलाओं और युवाओं सहित समाज के सभी वर्गों के लोगों की भलाई के लिए योजनाएं प्रारंभ की परंतु पार्टी ने चार सालों के बाद मुझे मुख्यमंत्री पद छोड़ने का निर्देश क्यों दिया यह तो दिल्ली जाकर ही पता किया जा सकता है।पूर्व मुख्यमंत्री का कथन यही संदेश देता है कि उन्हें पार्टी के इस फैसले की उम्मीद नहीं थी।
गौरतलब है कि मुख्यमंत्री पद पर आसीन होने के बाद त्रिवेंद्र सिंह रावत तब मीडिया की सुर्खियों में आए थे जब राज्य सरकार की एक विधवा कर्मचारी को उन्होंने अपमानित करके अपने कार्यालय से बाहर निकलवा दिया था जो अपने गृहनगर में स्थानांतरण हेतु मुख्यमंत्री से प्रार्थना करने के लिए उनके कार्यालय पहुंची थी।उस महिला के सहानुभूति प्रदर्शित करने के बजाय पूर्व मुख्यमंत्री ने जो असंवेदनशील व्यवहार किया था उसकी उत्तराखंड के बाहर भी आलोचना हुई थी परन्तु उन्होंने उसके लिए कोई खेद व्यक्त नहीं किया,न ही उक्त महिला को कोई राहत प्रदान की। उत्तराखंड के कांग्रेस नेतृत्व ने त्रिवेंद्र सिंह रावत के स्थान पर तीरथ सिंह रावत को मुख्यमंत्री बनाए जाने के भाजपा के फैसले पर अपनी प्रतिक्रिया में कहा है कि’ पूर्व मुख्यमंत्री के कार्यकाल में कुंभ मेला प्रबंधन, फारेस्ट गार्ड भर्ती,मिड डे मील और कर्मकार बोर्ड में भ्रष्टाचार के जो गंभीर मामले उजागर हुए हैं उन्हें देखते हुए भाजपा का यह फैसला लीपापोती से अधिक कुछ नहीं है। वास्तव में पूरी सरकार बदलने की आवश्यकता है। यह भी बताया जाता है कि कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल होने वाले विधायकों ने भी मुश्किलों में इजाफा कर दिया था। पार्टी कार्यकर्ता भी प्रशासन से नाराज़ थे और लगातार पार्टी हाईकमान के पास त्रिवेंद्र रावत सरकार के विरुद्ध शिकायतें पहुंच रही थी। इस कारण उन्हें मुख्यमंत्री पद से हटाना भाजपा के लिए अपरिहार्य हो गया। त्रिवेंद्र सिंह रावत यद्यपि अपने समर्थक मंत्री धन सिंह को मुख्यमंत्री की कुर्सी सौंपना चाहते थे परन्तु पार्टी विधायकों की त्रिवेंंद्र रावत से
नाराजगी को देखते हुए सरल एवं सौम्य स्वभाव के तीरथ सिंह रावत को मुख्यमंत्री बनाया गया। तीरथ सिंह रावत वर्तमान में गढ़वाल से सांसद हैं और संघ के निकट माने जाते हैं। उन्होंने पृथक उत्तराखंड राज्य के गठन हेतु चलाए आंदोलन में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।वे अतीत में राज्य के शिक्षा मंत्री, भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष और राष्ट्रीय सचिव भी रहे चुके हैं। उन्हें मुख्यमंत्री पद के रूप में कांटों का ताज मिला है। भाजपा ने इस भरोसे के साथ उन्हें मुख्यमंत्री पद की बागडोर सौंपने का फैसला किया है कि वे राज्य विधानसभा के आगामी चुनावों में पार्टी की शानदार बहुमत के साथ सत्ता में वापसी की पटकथा लिखने में सफल होंगे। पार्टी की कसौटी पर वे कितना खरा उतर पाते हैं यह तो आगामी विधानसभा चुनावों में ही पता चल पाएगा।
- कृष्णमोहन झा