देश का सर्वाधिक चर्चित और मध्यप्रदेश का सबसे बड़ा व्यापम घोटाला “बरमूडा ट्रेंगल” से भी ज्यादा रहस्यमय होता जा रहा है। इसकी जद में जो भी आ रहा है उसे यह लीलता जा रहा है। इस घोटाले से प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष जुड़े लोगों का जीवन,राजनीतिज्ञों का भविष्य और लाखो युवाओं का कॅरियर सब कुछ तबाह हुआ है। अब तक 47 जान ले चुके इस महाघोटाले ने बिहार चारा घोटाले को काफी पीछे छोड़ दिया है,इसने फिर साबित किया है कि देश का सबसे बड़ा चारागाह तो मध्यप्रदेश ही है।
पिछले दिनों मध्यप्रदेश में लोकायुक्त के छापों में अनेक करोड़पति क्लर्क, बाबू और अरबपति अफसरों की कहानियों सामने आई जिसने यह साफ कर दिया की यहाँ भ्रष्टाचार किस कदर व्याप्त है।
अब व्यापम के माध्यम से जो घोटाला अब देश के सामने आया है उसने यह स्पष्ट किया कि यहाँ बाकायदा शासकीय प्रश्रय में यह सब योजनाबद्ध तरीके से चल रहा था जहाँ मंत्री से लेकर अफ़सर तक भ्रष्टाचार की विषबेल को सींचने में लगे थे और वो भी मुख्यमंत्री की नाक के नीचे। अब इस विषबेल का ज़हर पूरे प्रदेश में फ़ैल रहा है तो एक के बाद एक मौतों का सिलसिला शुरू हो गया। हाल ही में जब तीन दिनों में हुई तीन मौतों की हैट्रिक लगी तो मानो भूचाल आ गया। व्यापम के घोटाले और इससे जुड़े लोगो की असामयिक मौतों पर जब सवाल उठे तो इसकी सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में सीबीआई से जाँच की मांग जोर पकड़ने लगी।
पहले तो मध्यप्रदेश सरकार विशेष जांच दल (एसआईटी) से ही जाँच कराने पर अड़ी रही लेकिन जब राष्ट्रिय-अंतर्राष्ट्रीय मिडिया का दबाव बढ़ा तो मुख्यमंत्री शिवराज सिंह को सीबीआई जाँच की अनुशंसा के लिए बाध्य होना पड़ा। अब सीबीआई के व्यापम-मंथन से जो विष निकलेगा उसे पीने के लिए क्या “शिव” तैयार है ? कभी उमा के हिस्से में “हलाहल” देकर सत्ता का “अमृत” चखने वाले शिवराज के लिए यह कठिन परीक्षा की घडी है।
क्या है व्यापम घोटाला ?
दरअसल व्यापम यानि व्यावसायिक परीक्षा मंडल Professional Examination Board (MPPEB), मध्यप्रदेश सरकार की ही एक स्वशासी संस्था है जो कई तरह की प्रवेश परीक्षाएं आयोजित करता है जिसमे मेडिकल कॉलेज में प्रवेश भी शामिल है। इसके साथ ही पुलिस सब इन्स्पेक्टर,सूबेदार,प्लाटून कमांडर ,पुलिस कांस्टेबल ,फ़ूड इन्स्पेक्टर से लेकर विभिन्न विभागों में शासकीय नियुक्तियां भी इसके माध्यम से होती है। व्यापम को लेकर सबसे पहला सवाल मेडिकल कॉलेज की प्रवेश परीक्षा को लेकर उठा।
इस सम्बन्ध में सबसे पहले शक जाहिर करने वाले मेडिकल स्टूडेंट डॉ आनंद राव ने बताया कि उंन्होने जब पोस्ट ग्रेजुएशन के लिए परीक्षा दी और परिणाम आये तो वे चौकाने वाले थे ,क्योंकि जिनका इसमें चयन हुआ वे पढ़ाई में दूसरों से कमजोर थे लेकिन रसूखदारों या पैसेवालों की संतान थे। इससे कई मेघावी छात्र प्रवेश से वंचित हो गए। यहीं से उन्हें गड़बड़ घोटाले की आशंका हुई। वे इसकी तह में गए तो पता चला कि योजनाबद्ध तरीके से जिस विद्यार्थी का चयन कराया जाना होता था उसके प्रवेश पत्र पर इम्परसॉनेटर (पैसा लेकर दूसरे विद्यार्थी के लिए परीक्षा देने वाले) का फोटो चस्पा कर उससे परीक्षा दिलवाई जाती और मनचाही रकम लेकर उसे मेडिकल कॉलेज में प्रवेश दिला दिया जाता।
डॉ राय ने 15 जुलाई 2009 को पुलिस की क्राइम ब्रांच को शिकायत दर्ज़ कराई कि दूसरे राज्यों से बड़ी संख्या में इम्परसॉनेटर प्री-मेडिकल टेस्ट में शामिल हो रहे है। इस शिकायत पर एक जाँच कमेटी तो गठित हुई लेकिन कोई ठोस कार्यवाही नहीं हुई तो फिर उन्होंने अलग-अलग विधायको के माध्यम से विधानसभा में प्रश्न उठवाए। पहली बार सरकार ने नवम्बर 2011 में विधायक पारस सकलेचा के प्रश्न के जवाब में 14 फर्जी परीक्षार्थियों के पकडे जाने की बात स्वीकार की। एक वर्ष में डॉ राय ने 295 इम्परसॉनेटर के नामो की लिस्ट तैयार कर ली, तब लगा कि यह उच्चस्तर से संचालित प्रवेश घोटाला है जिसमे करोडो के वारे-न्यारे हो रहे है। 7 जुलाई 2013 को इंदौर में बड़ी संख्या में फर्जी परीक्षार्थी पकड़ाए तो उनसे पूछताछ में पहली बार इंदौर के डॉ जगदीश सागर का नाम सामने आया। डॉ सागर की गिरफ्तारी के बाद इस घोटाले में कई हाई-प्रोफाईल नाम सामने आये तो सब दंग रह गए। इसके बाद सितम्बर 2013 को व्यापम के परीक्षा कंट्रोलर पंकज त्रिवेदी की गिरफ्तारी हुई तो इस घोटाले का विकराल रूप सामने आया। जुलाई 2014 में विपक्ष ने विधानसभा में इस घोटाले को लेकर खासा हंगामा मचाया तो मुख्यमंत्री शिवराजसिंह ने इसकी उच्चस्तरीय जाँच का आश्वासन दिया। जून 2014 में पहली बार प्रदेश के तत्कालीन उच्च शिक्षामंत्री लक्ष्मीकांत शर्मा की गिरफ्तारी हुई तो इस मामले में सरकार की संलिप्तता भी सिद्ध हुई।
सत्ता के गलियारों से व्यापम घोटाले की लपटें राजभवन तक पहुँच गई और राज्यपाल रामनरेश यादव के विरुद्ध भी एफआईआर दर्ज हो गई। उन पर भी कुछ लोगो की सिफारिशे करने का आरोप लगा। वस्तुतः पीएमटी घोटाले से शुरू यह मामला अब अवैध शासकीय नियुक्तियों तक जा पहुंचा था। व्यापम के कंप्यूटर से जैसे-जैसे नाम सामने आते गए वैसे-वैसे एसआईटी की जाँच का दायरा बढ़ता चला गया और उसी पैमाने पर गिरफ्तारियां भी बड़े पैमाने पर हुई। इस दौरान 2000 से ज्यादा गिरफ्तारियां हुई जिनमे 900 से ज्यादा तो विद्यार्थी और उनके पालक थे जिन्होंने व्यापम के दलालों को लाखों रुपयो की रिश्वत देकर मेडिकल कॉलेज में एडमिशन कराया था। इसके लिए 15 लाख रुपयों से लेकर 1 करोड़ रुपयों तक की डील हुई थी। इन पालको के पैसे तो डूबे ही ,विद्यार्थियों का भविष्य भी चौपट हो गया। इसमें कई प्रतिष्ठित घरानो की छात्राओं को भी जेल की हवा खानी पड़ी।
और मौतों का सिलसिला….
इधर व्यापम घोटाले की परत दर परत खुलती गई और एसआईटी ने गिरफ्तारियां तेज़ कर दी। प्रदेश के कई शहरों से प्रतिष्ठित और रसूखदार परिवारों से एसआईटी ने विद्यार्थियों को उनके पेरेंट्स के साथ गिरफ्तार किया। उनसे पूछताछ के नाम पर प्रताड़ना का दौर शुरू हुआ। इस बीच व्यापम से जुड़े मामलों में कुछ लोगों की संदेहास्पद स्थितियों में मौत के मामले सामने आने लगे।
इंदौर के एमजीएम मेडिकल कॉलेज की छात्रा नम्रता डामोर (19 वर्ष) की 7 जनवरी 2012 को उज्जैन के पास रेलवे पटरी पर लाश मिली। उसके पिता मेहताबसिंह ने उसके अपहरण और हत्या का आरोप लगाया लेकिन पुलिस ने इसे आत्महत्या बताकर जाँच बंद कर दी। नम्रता के परिजनों का आरोप है कि व्यापम के दलालों ने पैसे के लिए उसकी जान ली।
बताया जाता है कि नम्रता व्यापम के घोटालेबाजो के बड़े राज जानती थी जिसके कारण ही उसकी हत्या की गई। नम्रता के पहले 6 और संदेहास्पद मौते हो चुकी थी जिनमे मेडिकल स्टूडेंट अंशुल सचान एवं व्यापम के आरोपी एजेंट श्यामवीर यादव,अनुज उइके और दीपक वर्मा की मौत सड़क दुर्घटना में हुई। मेडिकल स्टूडेंट ज्ञानसिंह जाटव और दलाल विकास सिंह ठाकुर की अधिक शराब पीने से मौत होना बताया गया। इसके बाद तो मौतों का आंकड़ा लगातार बढ़ने लगा। किसी छात्र ने आत्महत्या की तो कोई आरोपी सड़क दुर्घटना में मारा गया। कोई गवाह अचानक बीमारी से मर गया तो किसी को ब्रेन हेमरेज हो गया।
एक बड़ा मामला तब हुआ जब व्यापम में आरोपी बनाये गए मध्यप्रदेश के राज्यपाल रामनरेश यादव के पुत्र शैलेश यादव की संदिग्ध हालात में मौत हो गई , पुलिस ने इसे आत्महत्या बताया लेकिन इसमें भी संदेह है। ये आकस्मिक मौतें सिर्फ व्यापम के आरोपियों और पीडितो की ही नहीं हुई बल्कि इसमें जाँच अधिकारी भी नहीं छूटे। व्यापम घोटाले की जाँच कर रहे जबलपुर मेडिकल कॉलेज के डीन डॉ डी के साकल्ले का जला हुआ शव उनके ही घर में 4 जुलाई 2014 को मिला इसके ठीक एक साल बाद 5 जुलाई 2015 को नए डीन डॉ अरुण शर्मा का शव दिल्ली के एक होटल से बरामद किया गया। इसके पहले 28 जून को इंदौर जेल में कैद 29 वर्षीय नरेंद्र सिंह तोमर की अचानक मौत हो गई। वे रायसेन में असिस्टेंट वेटरनरी ऑफिसर के पद पर तैनात थे उन्हें व्यापम घोटाले में ही 5 माह पूर्व गिरफ्तार किया गया था। तोमर के परिजनों का आरोप है कि उनकी हत्या हुई है चूँकि उन्हें कोई गंभीर बीमारी थी ही नहीं। इसी दिन सागर मेडिकल कॉलेज के असिस्टेंट प्रोफ़ेसर राजेन्द्र आर्य (40 वर्ष)की भी आकस्मिक मौत हो गई। इन मौतों को लेकर कांग्रेस लगातार हल्ला मचाये हुए थी लेकिन सरकार इन्हे सामान्य और स्वाभाविक बताकर जाँच से पल्ला झाड़ती रही।
ताबूत की आखिरी कील
सबसे ज्यादा हड़कम्प तब मचा जब न्यूज़ चैनल आज तक के पत्रकार अक्षय सिंह की बड़ी ही संदेहास्पद स्थितियों में तब मौत हो गई जब वे झाबुआ में नम्रता डामोर के परिजनों का इंटरव्यू ले रहे थे। 38 वर्षीय अक्षय बिलकुल स्वस्थ थे और उनकी अचानक मौत कई सवाल खड़े करने वाली थी। इस घटना के बाद ही नेशनल और इंटरनेशनल मीडिया ने व्यापम के सन्दर्भ में हो रही संदेहास्पद मौतों की जाँच का मामला उठाया। अभी अक्षय की अंत्येष्टि भी नहीं हुई थी कि दिल्ली से जबलपुर मेडिकल कॉलेज के डीन अरुण शर्मा की संदिग्ध मौत की खबर आ गई।
इसके दूसरे दिन सागर से ट्रेनी सब इन्स्पेक्टर अनामिका कुशवाह के तालाब में डूबने से मौत की खबर आई। उसका चयन व्यापम के ही माध्यम से हुआ था। परिजनों ने इसमें हत्या का संदेह व्यक्त किया जबकि पुलिस इसे आत्महत्या का मामला बता रही है। इस कड़ी में अगली मौत कांस्टेबल रमाकांत पण्डे की ओरछा में फांसी पर लटकी लाश मिली। वह भी व्यापम घोटाले में संलिप्त बताया गया था।
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह इन घटनाओं से बुरी तरह हड़बड़ा गए ,पहले तो वे सफाई देते रहे कि हर मौत को व्यापम से जोड़कर देखना ठीक नहीं है। उन्होंने सीबीआई जाँच की मांग पहले तो यह कहकर ठुकरा दिया कि एसआईटी की जाँच हाईकोर्ट के निर्देश पर चल रही है ऐसे में उन्हें हस्तक्षेप का कोई अधिकार नहीं है। इसके साथ ही उन्होंने एसआईटी की जाँच को संतोषप्रद बताते हुए कहा कि वे सही दिशा में जा रहे है। इस बयान के दूसरे ही दिन यू-टर्न लेते हुए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह सीबीआई जाँच की मांग स्वीकारी और हाईकोर्ट को इस सम्बन्ध में पत्र भी लिखा। इधर हाईकोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश का इंतज़ार किया।
सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई जाँच के दिए आदेश
9 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट ने जनहित याचिकाओं पर व्यापम की जाँच सीबीआई से कराने के आदेश दिए। सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई को व्यापम घोटाले के साथ मौतों की जांच का भी जिम्मा सौंपा। अब व्यापम के सारे मामलों की जांच करेगी सीबीआई और सारी जांच सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में होगी।
न्यायालय ने इस मामले पर सीबीआई का रुख भी पूछा और दो हफ्ते में उससे जवाब भी मांगा। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में कड़ा रुख अपनाते हुए
केंद्र और राज्य सरकार को भी नोटिस दिया साथ ही मध्यप्रदेश के राज्यपाल को हटाने का नोटिस भी भेजा। अब इस मामले की अगली सुनवाई 24 जुलाई को होगी।
जाहिर है अब सीबीआई के व्यापम मंथन से क्या निकलता है इस पर सबकी निगाहे होंगी। अब तक इससे निकले विष से प्रदेश के लाखो भांजे-भाजियों (शिवराज सिंह बच्चो को यह सम्बोधित करते है ) के सपने चूर हुए है जो उन्हें मामा शिवराज ने दिखाए थे ,क्या उन्हें “मामू ” बना दिया गया ? कभी प्रधानमंत्री पद के लिए मोदी के विकल्प के बतौर देखे जा रहे शिवराज ने लगातार तीन चुनाव जिताकर “भले आदमी ” की जो अपनी छवि गढ़ी थी ,अब वो इतनी भली नहीं रही।
33 नहीं, व्यापमं घोटाले में हुईं हैं 46 मौतें: कांग्रेस
मध्यप्रदेश कांग्रेस कमेटी ने व्यापमं घोटाले से जुड़े व्यक्तियों की मौत को लेकर दावा किया है कि अब तक 46 मौतें हो चुकी हैं। मुख्य प्रवक्ता केके मिश्रा ने एसआईटी को मृतकों की सूची सौंपते हुए गहराई से जांच की मांग की है। मिश्रा ने आशंका जताई कि मृतकों की संख्या और बढ़ सकती है। सरकार पहले 25 मौत होने का दावा कर रही थी, लेकिन एसआईटी ने 33 व्यक्तियों की मृत्यु स्वीकार की है। एसआईटी को सौंपी मृतकों की सूची में नम्रता डामोर, डा.डीके साकल्ले, शैलेष यादव, विजय पटेल, रिंकू उर्फ प्रमोद शर्मा, देवेन्द्र नागर, आशुतोष सिंह, श्यामवीर सिंह यादव, आनंद सिंह यादव, ज्ञानसिंह जाटव, अमित जाटव, अनुज उइके, पशुपतिनाथ जायसवाल, राघवेन्द्र सिंह, आनंद सिंह, विकास पांडे, दीपक जैन, अंशुल सचान, ज्ञान सिंह भिंड, विकास सिंह, अनुज पांडे, अरविंद शाक्य, कुलदीप मरावी, अनंतराम टैगोर, मनीष समीधिया, दिनेश जाटव, ज्ञान सिंह सागर, आनंद कुमार सिंह, बृजेश राजपूत, ललित कुमार, नरेन्द्र तोमर, डॉ.राजेन्द्र आर्य, रामेन्द्र सिंह भदौरिया, तरूण मछार, आशुतोष तिवारी, ज्ञान सिंह ग्वालियर, विकास ठाकुर, आदित्य चौधरी, रविन्द्र प्रताप सिंह, प्रेमलता पांडे, बंटी सिकरवार, दीपक वर्मा, ललित कुमार गुलारिया, नरेन्द्र राजपूत, नरेन्द्र सिंह राजपूत, अमित सगर शामिल हैं।
व्यापम घोटाले को लेकर कांग्रेस के दस सवाल
कांग्रेस ने जो सवाल किए हैं उनमें पहला यह है कि सात साल से सीएम की जानकारी के बिना घोटाला कैसे संभव है? दूसरा सवाल था कि जब यह घोटाला 2009 में ही सामने आ गया था तो सरकार 2013 तक क्यों चुप रही? तीसरे सवाल में पुछा कि घोटाले में जब सीएम के पूर्व पीए का नाम भी तो उन्हें अब तक गिरफ्तार क्यों नहीं किया गया। चौथा सवाल था कि मेडिकल शिक्षा मंत्री रहते हुए शिवराज खुद इसके जिम्मेदार नहीं हैं? पांचवा सवाल था कि 2009 में जब कमेटी बन गई थी तो 13 महीने तक उसकी बैठक क्यों नहीं हुई? छठा सवाल था कि क्या लक्ष्मीकांत शर्मा को सरकार बचा रही थी? कांग्रेस ने सांतवा सवाल किया कि सीएम के करीबी आरोपी हैं फिर भी सीएम की जांच क्यों नहीं की जा रही? आठवां सवाल था कि उनके करीबी शंकर मेहता की गिरफ्तारी क्यों नहीं हुई? घोटाले की जांच कर रहे अधिकारियों को भी धमकियां मिल रहीं हैं ऐसे में जांच कैसे करेंगे? नौंवा सवाल था कि निष्पक्ष जांच से ध्यान क्यों भटका रहे हैं जबकि दसवां सवाल था कि एसआईटी जांच में नाकाम तो सीबीआई से जांच क्यों नहीं करवा रहे शिवराज?