जिस प्रकार गंगा को उत्तर-भारत का “जीवन रेखा” कहा जाता है,उसी प्रकार “नर्मदा नदी” को भी मध्यप्रदेश का जीवन रेखा कहा जाता है । नर्मदा नदी भारतीय प्रायद्वीप की सबसे प्रमुख तथा भारत की पांचवी बड़ी नदी मणि जाती है ।गंगा के बाद नर्मदा दूसरी ऐसी नदी है,जिसका वर्णन वेंदो व पुराणों में सबसें ज्यादा हैं ।इस नदी की धार्मिक महत्ता कों इसी सें समझा जा सकता हैं कि नर्मदा कों गंगा ,यमुना व सरस्वती कें बाद पांचवा वेद कहा जाता हैं अर्थात नर्मदा को सामवेद के रूप में माना जाता हैं ।विन्ध्य की पहाड़ियों में बसा मध्यप्रदेश का एक जिला “अमरकंटक” हैं ,जिसे नर्मदा का उद्गम स्थल कहा जाता हैं ।नर्मदा अपने उदगम स्थल अमरकंटक से निकलकर लगभग 8 किमी दूरी पर दुग्धधारा जल प्रपात तथा 10 किमी की दूरी कपिलधारा जल प्रपात बनाती हैं ।अतः कहा जा सकता है कि नर्मदा कें विना नर्मदा की घाटी में जीवन संभव नहीं हैं , इसलिए इसकी रक्षा,प्रदूषण मुक्त करने की चिंता करना और प्रयास करना हम सभी का कर्तव्य हैं ।
नर्मदा भारत की पांच बड़ी नदियों में गिनी जाती है, जो पश्चिम की ओर बहकर अरब सागर में गिरती है। मध्यप्रदेश के अमरकंटक पर्वत की मेकल पर्वत श्रेणी से निकली नर्मदा नदी 1312 किलोमीटर का लंबा स़फर तय करके गुजरात में भड़ौच के समीप अरब सागर की खंबात की खाड़ी में समुद्र से जा मिलती है। नर्मदा मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र और गुजरात राज्यों में बहती हैं लेकिन नदी का 87 प्रतिशत जल प्रवाह मध्यप्रदेश में होने से, इस नदी को मध्यप्रदेश की जीवन रेखा कहा जाता है। आधुनिक विकास प्रक्रिया में मनुष्य ने अपने थोड़े से लाभ के लिए जल , वायु और पृथ्वी के साथ अनुचित छेड़-छाड़ कर इन प्राकृतिक संसाधनों को जो क्षति पहुंचाई है, इसके दुष्प्रभाव मनुष्य ही नहीं बल्कि जड़ चेतन जीव वनस्पतियों को भोगना पड़ रहा है। नर्मदा तट पर बसे गांव, छोटे-बड़े शहरों, छोटे-बड़े औद्योगिक उपक्रमों और रासायनिक खाद और कीटनाशकों के प्रयोग से की जाने वाली खेती के कारण उदगम से सागर विलय तक नर्मदा प्रदूषित हो गई है और नर्मदा तट पर तथा नदी की अपवाह क्षेत्र में वनों की कमी के कारण आज नर्मदा में जल स्तर भी 20 वर्ष पहले की तुलना में घट गया है।
ऐसे में नर्मदा को प्रदूषण मुक्त करना समय की सबसे बड़ी ज़रूरत बन गई है, लेकिन मध्यप्रदेश, गुजरात और महाराष्ट्र की सरकारें औद्योगिक और कृषि उत्पादन बढ़ाने के लिए नर्मदा की पवित्रता बहाल करने में ज़्यादा रुचि नहीं ले रहे है।नर्मदा का उदगम स्थल अमरकंटक भी शहर के विस्तार और पर्यटकों के आवागमन के कारण नर्मदा जल प्रदूषण का शिकार हो गया है। इसके बाद, शहडोल , बालाघाट, मण्डला, शिवनी, डिण्डोरी, कटनी, जबल पुर, दामोह, सागर, नरसिंहपुर, छिंदवाड़ा, बैतूल , होशंगाबाद, हरदा, रायसेन, सीहोर, खण्डवा, इन्दौर, देवास, खरगोन, धार, झाबुआ और बड़वानी जिलों से गुजरती हुई नर्मदा महाराष्ट्र और गुजरात की ओर बहती है, लेकिन इन सभी जिलों में नर्मदा को प्रदूषित करने वाले मानव निर्मित सभी कारण मौजूद है। अमलाई पेपर मिल शहडोल, अनेक शहरों के मानव मल और दूषित जल का अपवाह, नर्मदा को प्रदूषित करता है। सरकार ने औद्योगीकरण के लिए बिना सोचे समझे जो निति बनाई उससे भी नर्मदा जल में प्रदूषण बढा है, होशंगाबाद में भारत सरकार के सुरक्षा क़ागज़ कारखाने बड़वानी में शराब कारखानों , से उन पवित्र स्थानों पर नर्मदा जल गंभीर रूप से प्रदूषित हुआ है। गर्मी में अपने उदगम से लेकर, मण्डला, जबलपुर, बरमान घाट, होशंगाबाद, महेश्वर, ओंकारेश्वर, बड़वानी आदि स्थानों पर प्रदूषण विषेषज्ञों ने नर्मदा जल में घातक वेक्टेरिया और विषैले जीवाणु पाए जाने की ओर राज सरकार का ध्यान आकर्षित किया है।
मण्डला में ही नर्मदा जल में घातक प्रदूषण होने लगा है और जबलपुर आते-आते तो प्रदूषण की समस्या और भी गंभीर हो जाती है। गुजरात में औद्योगीकरण ने नर्मदा जल का प्रदूषण स्तर और भी बढ़ाया है। अंकलेश्वर में नर्मदा जल घातक स्तर तक प्रदूषित पाया जाता है। प्रदूषित नर्मदा को पवित्र बनाने और प्रदूषण मुक्त करने के लिए भारत सरकार ने राज्यों को सहायता उपलब्ध कराई है और राज्यों को यह महत्वपूर्ण कार्य उच्च प्राथमिकता से करने की हिदायत दी है, लेकिन मध्यप्रदेश में हिंदूवादी भाजपा सरकार बड़ी सुस्त गति से नर्मदा की पवित्रता बहाल करने के लिए काम कर रही है। नर्मदा के भावनात्मक दोहन और हिन्दु राजनीति के लिए इस्तेमाल पर भाजपा और राज्य सरकार उत्सव, जुलूस और आयोजनों पर तो भारी ख़र्च करती है और उनके आयोजनों से नदी में प्रदूषण फैल जाती है, लेकिन नर्मदा जल की पवित्रता बहाल करने और नर्मदा के किनारे के पर्यावरण को सुधारने के लिए भाजपा और राज्य सरकार के पास न तो कोई सोच है और न तो कोई इच्छा शक्ति है। हाल ही इस वर्ष मई माह में राज्य सरकार के नगरीय प्रशासन विभाग ने नर्मदा के उदगम स्थल अमरकंटक में नदी को प्रदूषण से मुक्त करने के लिए 50 लाख रूपयें की मंजूरी दी है।
सरकार का मानना है कि उदगम स्थल से ही पवित्रता बहाल करके नदी को प्रदूषण मुक्त कराया जा सकता है। जबलपुर, होशंगाबाद और दूसरे नगरों में स्थानीय नगरीय संस्थाओं को नर्मदा नदी को प्रदूषण मुक्त करने और तटवर्ती औद्योगिक उपक्रमों को दूषित जल शोधित करने के निर्देश भी राज्य सरकार द्वारा दिए गए है, लेकिन अभी तक नदी को प्रदूषित करने वाले किसी भी उद्योग के ख़िला़फ सरकार ने कोई कड़ी क़ानूनी कार्यवाही नहीं की है। इससे राज्य सरकार की कमज़ोर इच्छा शक्ति का पता चलता है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान सीहोर जिले में नर्मदा तट के निवासी है और स्वयं को नर्मदा पुत्र बताकर इस क्षेत्र की जनता का भावनात्मक दोहन करते रहते है, लेकिन औद्योगिक विकास के नाम पर मुख्यमंत्री बिना सोचे समझे नए उद्योग लगाने के लिए नर्मदा तट को प्राथमिकता दे रहे है। इससे नर्मदा तट के वनों को क्षति हो रही है और नर्मदा जल के प्रदूषण का नया ख़तरा पैदा हो रहा है।
केंद्र में नई सरकार बनने कें बाद जब उमा भारती कों केन्द्रीय “जल संसाधन” मंत्री बनाया गया तों मध्यप्रदेश कें लोगों में नर्मदा कों प्रदूषण मुक्त करने कें लिएं सरकार कें प्रति एक आशा की किरण दिखी ।इसके कारण भी साफ हैं क्योंकि उमा भारती इससे पहले मध्यप्रदेश की मुख्यमंत्री रह चुकी हैं और वह समस्त प्रदूषण कारकों से अच्छी तरह वाकिफ़ है ।भारत सरकार नें मध्यप्रदेश कों नर्मदा,क्षिप्रा ,बेतवा व ताप्ती को प्रदूषण मुक्त करने के लिये 15 करोड़ रुपयें आवंटित किये हैं । सरकार कें द्वारा प्रदूषण मुक्त के लिये किये जानें वाले कार्यों की धीमी चाल कें कारण ही इस बार भी “माँ नर्मदा” दूषित जल के साथ ही अपना जन्मदिन मनाने के लिये मजबूर हैं ।अतः इस चुनौती से मुकाबला कियें बिना “नर्मदा” हमारा उद्धार नहीं कर सकती हैं ।
:-नीतेश राय
लेखक :- नीतेश राय (स्वतंत्र टिप्पणीकार )
माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं जनसंचार विश्वविद्यालय भोपाल
के विस्तार परिसर “कर्मवीर विद्यापीठ” में पत्रकारिता के छात्र है ।
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