हाईकोर्ट के मुताबिक, किसी भी विवाह को वैध मानने के लिए हिंदू रीति रिवाजों के साथ उसका संपन्न होना जरूरी है और उसमें सात फेरे सबसे अहम हैं। सात फेरे साबित करने में नाकाम होने पर मैरिज सर्टिफिकेट को विवाह की वैधता साबित करने वाला सबूत नहीं माना जा सकता।
पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट ने यह अहम आदेश कुरुक्षेत्र निवासी याची द्वारा पंचकूला जिला अदालत से जारी तलाक की डिक्री को चुनौती देने वाली याचिका को खारिज करते हुए दिया है।
याचिका दाखिल करते हुए कुरुक्षेत्र निवासी याची ने हाईकोर्ट को बताया कि वह प्रतिवादी पत्नी को चार साल से जानता था तथा वे दोनों एक दूसरे से प्यार करते थे। इसी बीच 18 फरवरी को पंचकूला के प्राचीन शिव दुर्गा मंदिर में शादी कर ली। इस दौरान प्रदीप शर्मा और मुकेश ने इस शादी की फोटो भी खींची थी।
याची ने कहा कि विवाह समारोह के दौरान सिंदूर व सात फेरे दोनों संपन्न हुए थे। याची ने मैरिज सर्टिफिकेट भी कोर्ट के समक्ष रखा और कहा कि यह सत्यापित करता है कि शादी वैध है।
याची के साथ एक दिन भी नहीं रुकी: प्रतिवादी
वहीं, प्रतिवादी पत्नी की ओर से कहा गया कि याची उसे प्राचीन शिव मंदिर में लेकर गया था लेकिन वहां पर सात फेरे नहीं हुए थे। इसके बाद वह याची के साथ एक दिन भी नहीं रुकी। याची ने उसे अपने प्रभाव में लेकर मैरिज सर्टिफिकेट पर हस्ताक्षर ले लिए थे।
इस पर याची ने कहा कि वह अपनी पत्नी के साथ दो दिन कुरुक्षेत्र में रुका था और इसके बाद लड़की के पिता उनके घर आए और शादी को अपनाने की बात कही। साथ ही यह भी कहा कि वे अपनी बेटी को घर ले जाना चाहते हैं ताकि विदाई समारोह के साथ उसे याची के घर भेज सकें।
इसके बाद उन्होंने लड़की पर दबाव बनाया और शादी को खत्म करने के लिए कोर्ट में याचिका दाखिल कर दी।
पंचकूला कोर्ट के तलाक के आदेशों पर लगाई मुहर
हाईकोर्ट ने दोनों पक्षों को सुनने के बाद अपना फैसला सुनाते हुए जिला अदालत द्वारा दिए गए तलाक के आदेशों पर मुहर लगाते हुए याचिका खारिज कर दी।
याचिका खारिज करते हुए हाईकोर्ट ने कहा कि याची फोटो को सही प्रमाणित करने में नाकाम रहा और सात फेरे भी साबित नहीं कर पाया। इसके अभाव में केवल मैरिज सर्टिफिकेट को आधार मानकर शादी को वैध करार नहीं दिया जा सकता। हिंदू विवाह अधिनियम के अनुसार सातवें फेरे के बाद ही दो हिंदुओं का विवाह पूर्ण माना जाता है।