कोलकाता – संथारा प्रथा पर रोक लगाए जाने के राजस्थान हाईकोर्ट के फैसले को लेकर जैन समाज के धर्मगुरुओं का कहना है कि यह धर्म में दखल की तरह है। महाराष्ट्र और झारखंड की यात्रा के बाद पार्श्वनाथ मंदिर के दर्शन करने आए जैन संत सुपर्श्व सागर ने कहा कि दिगंबर जैन समाज कोर्ट के आदेश को मान्यता नहीं देता।
सागरजी ने कहा कि संथारा प्रथा सिर्फ उन लोगों के लिए है, जो अपने गुरु की आज्ञा के बाद आत्मा और परमात्मा के मिलन के लिए अन्न का त्याग कर देते हैं। सागरजी ने यह भी कहा कि संथारा के बारे में कोई भी व्यक्ति खुद फैसले नहीं ले सकता। सागरजी ने कहा, ‘हम कोर्ट के आदेश को नहीं मानेंगे, हम जैन समाज के सिद्धातों के तहत चलते हैं।’
सागरजी ने कोर्ट के फैसले को पूरी तरह गैरजरूरी करार देते हुए कहा, ‘जैन समाज के गुरु की अनुमति के बाद यदि कोई व्यक्ति संथारा पर जाने का फैसला लेता है तो उसे कोई नहीं रोक सकता। कोई भी संत निर्वाण की प्रक्रिया के लिए इसे अपना सकता है। यह कोलकाता में भी हो सकता है।’
मंदिर कमेटी के सदस्य आनंद जैन ने कहा, ‘पिछले महीने संथारा प्रथा के तहत निर्वाण प्राप्त करने वाले दिगंबर जैन मत के अनुयायी रतनलाल जैन ने व्रत रहते हुए बेहद शांतिपूर्ण ढंग से अपने प्राण छोड़े थे।’
पार्श्वनाथ मंदिर के सचिव सुधीर जैन ने कहा कि कोर्ट को धार्मिक मान्यताओं से कोई लेना-देना नहीं होना चाहिए, जो सदियों से चली आ रही हैं। सुधीर जैन ने संथारा प्रथा की आत्महत्या से तुलना किए जाने को गलत करार देते हुए कहा, ‘यह धार्मिक मामला है, इसे आत्महत्या नहीं कहा जा सकता। इसमें किसी तरह का बदलाव नहीं किया जा सकता।’
गौरतलब है कि हाल ही में राजस्थान हाईकोर्ट ने जैन समाज की संथारा प्रथा पर यह कहते हुए रोक लगाने का आदेश दिया था कि यह सती प्रथा सरीखी है, किसी को भी आत्महत्या करने की अनुमति नहीं दी जा सकती।