पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनावों का कार्यक्रम घोषित होने में भले ही अभी कुछ वक्त बाकी हो परंतु भारतीय जनता पार्टी का असीम उत्साह देखकर ऐसा प्रतीत होता है मानों आगामी चुनावों के लिए वह अभी से कमर कस कर तैयार बैठी है। उसके बुलंद हौसलों को देख कर यह अनुमान लगाया जा सकता है कि निकट भविष्य में होने वाले विधानसभा चुनाव में उसे बहुमत हासिल करने का पूरा भरोसा है।
294 सदस्यीय विधानसभा में उसने बहुमत से भी कहीं अधिक 200 पार का जो लक्ष्य तय कर रखा है वह भले ही अतिरंजित मालूम पड़ता हो परंतु आज की तारीख में तो राजनीतिक पंडित भी यह मानने को विवश हैं कि भाजपा के बुलंद हौसलों ने सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस के होश उडा दिए हैं। तृणमूल कांग्रेस के बड़े बड़े दिग्गजों का भाजपा की ओर आकर्षित होने का सिलसिला थमने का नाम ही नहीं ले रहा है।अब तो कोई भी दिन ऐसा नहीं जाता जिस दिन तृणमूल कांग्रेस के किसी बड़े नेता ने भाजपा का दामन थामने की घोषणा न की हो।
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह हर सभा में यह चुटकी लेने से नहीं चूकते कि चुनाव आते आते तृणमूल कांग्रेस में अकेली ममता बनर्जी रह जाएंगी। अगर भाजपा नेताओं की ऐसी चुटकियां का उद्देश्य मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का मनोबल तोड़ना है तो निश्चित रूप से भाजपा अपनी रणनीति में काफी सफल हो रही है। अपनी पार्टी में मची इस आश्चर्यजनक भगदड़ से ममता बनर्जी हैरान और परेशान हैं ।वे यह समझ पाने में असमर्थ हैं कि आगामी विधानसभा चुनावों की तैयारियों पर ध्यान केंद्रित करें अथवा नित्य प्रति भाजपा की ओर आकर्षित होने वाले अपनी पार्टी के नेताओं की मान मनौव्वल करें। तृणमूल कांग्रेस के आधार स्तंभ माने जाने वाले नेताओं में प्रमुख सुभेंदु अधिकारी के इस्तीफे के सदमे से पार्टी अभी उबर भी नहीं पाई थीं कि पूर्व केंद्रीय रेलमंत्री और राज्य सभा सदस्य दिनेश त्रिवेदी ने तृणमूल कांग्रेस को अलविदा कह दिया है। उधर भाजपा तो उनके स्वागत के लिए पहले से ही पलक पांवड़े बिछाकर तैयार बैठी है।
गौरतलब है कि दिनेश त्रिवेदी का राज्य के उन 70 विधानसभा क्षेत्रों में अच्छा खासा प्रभाव है जहां हिंदी भाषी मतदाताओं की बहुलता है। अब दिनेश त्रिवेदी को भाजपा द्वारा राज्य सभा में भेजे जाने की संभावनाएं बलवती हो उठी हैं। ममता बनर्जी के लिए परेशानी की सब से बड़ी वजह यह है कि उन्हें अकेले ही अपनी पार्टी के चुनाव अभियान का संचालन करना है जबकि उनको चुनौती देने के लिए भाजपा के सारे महारथी पश्चिम बंगाल के चुनावी रण में पिछले कई माहों से पूरी मुस्तैदी के साथ डटे हुए हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह, भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जे पी नड्डा सहित सभी दिग्गज भाजपा नेता जिस तरह थोड़े थोड़े अंतराल से राज्य का चुनावी दौरा कर रहे हैं उसके कारण पार्टी के स्थानीय नेताओं और कार्यकर्ताओं के मनोबल और उत्साह में द्विगुणित वृद्धि हो रही है।
भाजपा भली भांति यह समझ चुकी है कि ममता बनर्जी को जयश्री राम के नारों से’ एलर्जी ‘ है इसलिए उसके कार्यकर्ता राज्य के हर गली कूचे में जयश्री राम के नारों से आकाश गुंजायमान कर रहे हैं। भाजपा कार्यकर्ताओं के द्वारा लगाए जाने वाले ये गगनभेदी नारे मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को मानों चुनौती दे रहे हैं कि रोक सको तो रोक लो। यहां आकर जब केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह यह कहते हैं कि जयश्री राम के नारे यहां नहीं तो क्या पाकिस्तान में लगेंगे तो उसका एक ही मतलब होता है कि भगवान राम के प्रति अडिग आस्था और अटूट श्रद्धा का परिचायक जयश्री राम का नारा आगामी चुनावों में भाजपा की शानदार विजय का मूल मंत्र बन चुका है। ममता बनर्जी की सरकार और उनकी पार्टी में अब यह ताकत शेष नहीं बची है कि वे भाजपा के विजय रथ को पश्चिम बंगाल में सत्ता की दहलीज तक पहुंचने से रोक सकें। भाजपा के द्वारा राज्य में सत्ता परिवर्तन की मंशा से जो पांच रथयात्राएं प्रारंभ की गई हैं उन्हें जनता का जो अपार समर्थन मिल रहा है उनसे राज्य में भाजपा के चुनाव अभियान को और बल मिला है। पार्टी कार्यकर्ताओं का उत्साह चरम पर पहुंच चुका है।
भाजपा की रैलियों पर विगत दिनों जो हमले हुए हैं उन्हें लेकर भी भाजपा ममता सरकार पर तीखे हमले कर रही है। तृणमूल कांग्रेस कार्यकर्ताओं की हिंसा और ममता सरकार में पनपा भ्रष्टाचार भाजपा के प्रमुख चुनावी मुद्दे बन गए हैं। मुख्यमंत्री ने मुस्लिम वोटबैंक का ध्यान रखते हुए समय समय पर जयश्री राम के नारों पर जो नाराज़गी दिखाई है वह भाजपा के पक्ष में मतों के ध्रुवीकरण का कारण सकती है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, अमित शाह और भाजपा अध्यक्ष जे पी नड्डा ने विगत दिनों राज्य में जिन रैलियों को संबोधित किया है उनमें उमड़ी भीड़ से यही संदेश मिलता है कि आगामी विधानसभा चुनावों में लगातार तीसरी बार सत्ता पर काबिज होने का तृणमूल कांग्रेस का सुनहरा सपना साकार होने की संभावना अब धूमिल हो चुकी है।
2014 में संपन्न लोकसभा चुनावों के पश्चात् जब केंद्र में भाजपा नीत सरकार के प्रधानमंत्री पद की बागडोर नरेन्द्र मोदी के हाथों में आई और अमित शाह को पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी सौंपी गई तभी पार्टी ने पश्चिम बंगाल में अपना जनाधार बढ़ाने की दिशा में सुनियोजित रणनीति के साथ आगे कदम बढ़ाना शुरू कर दिया था और जब भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने मध्यप्रदेश सरकार के एक कद्दावर मंत्री कैलाश विजयवर्गीय को भाजपा का पश्चिम बंगाल प्रभारी बनाकर राज्य में भाजपा के जनाधार का विस्तार करने की जिम्मेदारी सौंपी गई थी तब शायद ममता बनर्जी को यह अंदाजा नहीं रहा होगा कि कैलाश विजयवर्गीय के अथक परिश्रम, राजनीतिक सूझ-बूझ और रणनीतिक चतुराई के बल पर भाजपा 2019 के लोकसभा चुनावों में राज्य की 18लोकसभा सीटों पर जीत का परचम फहराने में सफल हो जाएगी। गत लोकसभा चुनावों में भाजपा ने पश्चिम बंगाल में जो ऐतिहासिक सफलता अर्जित की उसने ममता बनर्जी को स्तब्ध कर दिया था।उस समय ममता बनर्जी को पहली बार यह अहसास हुआ कि भाजपा उनकी पार्टी के मजबूत किले में सेंध लगाने में कामयाब होने की स्थिति में आ चुकी है।
राज्य में भाजपा की उस अभूतपूर्व सफलता ने ममता को चौकन्ना तो अवश्य कर दिया परन्तु वे अपनी पार्टी के नेताओं के अन्दर पनप रहे असंतोष को भांपने में असफल रहीं। दूसरी ओर भाजपा अपनी सुनियोजित रणनीति के ममता बनर्जी के अधिनायकवादी रवैए से नाराज तृणमूल कांग्रेस विधायकों को अपने खेमे में लाने की कोशिशों में जुटी रही और धीरे धीरे उसे अपेक्षित कामयाबी भी मिलती गई। तृणमूल कांग्रेस छोड़कर भाजपा का दामन थामने थामने वाले नेताओं की फेहरिस्त अब इतनी लंबी हो चुकी है कि शायद ममता बनर्जी को उन सारे नेताओं के नाम याद रख पाने में मुश्किल हो रही है।एक बात तो निश्चित रूप से कही जा सकती है कि ममता बनर्जी का साथ छोड़कर भाजपा में शामिल होने सांसदों और विधायकों ने भी यह मान लिया है कि भाजपा अब आगामी विधानसभा चुनावों में बहुमत हासिल करने की स्थिति में आ चुकी है। इन दिनों पश्चिम बंगाल मेंभाजपा का उत्साह और मनोबल जिस तरह आकाशीय ऊंचाइयों को स्पर्श कर रहा है वह तृणमूल कांग्रेस के उन नेताओं को अपनी ओर आकर्षित करने में सफल हो रहा है जिन्हें तृणमूल कांग्रेस में अपना राजनीतिक भविष्य अंधकारमय दिखाई देने लगा है।
यूं तो देश के विभिन्न राज्यों के वरिष्ठ भाजपा नेताओं को पश्चिम बंगाल में पार्टी के चुनाव अभियान में सक्रिय भागीदारी सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी सौंपी गई है परन्तु ऐसा प्रतीत होता है कि संभवतः पार्टी ने इस संबंध में मध्यप्रदेश के वरिष्ठ नेताओं की क्षमताओं पर अधिक भरोसा किया है। सबसे पहले मध्यप्रदेश सरकार में वरिष्ठ मंत्री रहे कैलाश विजयवर्गीय को पश्चिम बंगाल में पार्टी का जनाधार बढ़ाकर राज्य में उसका मजबूत संगठन खडा करने की जिम्मेदारी गई थी।
विजयवर्गीय अपनी रणनीतिक चतुराई और संगठन क्षमता के जरिए यह साबित कर दिया कि पश्चिम बंगाल में हवा का रुख बदलने की सामर्थ्य उनके अंदर कूट कर भरी है। गत लोकसभा चुनावों में राज्य में भाजपा को मिली ऐतिहासिक सफलता ने पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व की नजरों में कैलाश विजयवर्गीय का कद इतना ऊंचा कर दिया है कि वे पार्टी के प्रमुख रणनीतिकार की भूमिका में आ चुके हैं। विजयवर्गीय के दो निकट सहयोगी अरविंद मेनन और केंद्रीय मंत्री प्रहलाद पटेल भी मध्यप्रदेश से ही संबंध रखते हैं।
पश्चिम बंगाल में भाजपा के चुनाव अभियान में इस समय मध्यप्रदेश के गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा का तेजी से उभर रहा है। उन्हें राज्य की 48 विधानसभा सीटों पर भाजपा उम्मीदवारों की विजय सुनिश्चित करने का दायित्व सौंपा गया है। गौरतलब है कि मध्यप्रदेश में गतवर्ष हुए सत्ता परिवर्तन में नरोत्तम मिश्रा की भूमिका महत्वपूर्ण मानी गई थी। नरोत्तम मिश्रा की संगठन क्षमता और राजनीतिक सूझ-बूझ को देखते हुए उन्हें अतीत में उत्तर प्रदेश और गुजरात विधानसभा के चुनावों में पार्टी ने महत्वपूर्ण जिम्मेदारियां सौंपी थी और पार्टी की अपेक्षाओं पर वे खरे उतरे।
पश्चिम बंगाल में पार्टी के चुनाव अभियान में सक्रिय भागीदारी के लिए जब नरोत्तम मिश्रा ने राज्य की धरती पर कदम रखे तब पार्टी कार्यकर्ताओं ने भारी हर्षोल्लास और अपार उत्साह के उनका जो स्वागत किया वह इस हकीकत को बयां कर रहा था कि मध्यप्रदेश भाजपा में नरोत्तम मिश्रा होने के क्या मायने हैं। पश्चिम बंगाल के सभी 294 विधानसभा क्षेत्रों से गुजरने वाली पांच रथयात्राओं में से एक रथयात्रा को रवाना करने के लिए भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा के साथ नरोत्तम मिश्रा भी मौजूद थे। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि विगत दिनों नरोत्तम मिश्रा जब भोपाल में विशिष्ट बंगाली परिवारों से भेंट करने पहुंचे थे तब वहां उनका आत्मीय स्वागत किया गया था। गृहमंत्री को उन संभ्रांत परिवारों ने प बंगाल में निवास रत उनके परिजनों का पार्टी के लिए समर्थन मिलने का भरोसा दिलाया था। पश्चिम बंगाल में इस समय पार्टी की चुनावी व्यूह रचना और रणनीति में मध्यप्रदेश के भाजपा नेताओं की राय अहम मानी जा रही है और अब तो यहां कहा जाने लगा है कि पश्चिम बंगाल में भाजपा के लिए सत्ता का मार्ग मध्यप्रदेश से होकर ही निकलेगा।
कृष्णमोहन झा