प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने शिक्षक दिवस पर देश के बच्चों से सीधा संवाद कर कई मिथकों को तोडने का प्रयास किया है। इस प्रयास का परिणाम तो भविष्य में दिखाई देगा लेकिन अपने तरीके के संवाद को लेकर जो सवाल उठाए जा रहे ये उनका जवाब जरूर सामने आ गया है। मोदी ने अपनी पाठशाला के जरिए एक कडवी हकीकत से रूबरू तो करा दिया कि देश में शिक्षक की महत्वता लगभग समाप्त हो चुकी है। शिक्षक दिवस की प्रासंगिकता एक दिन तक है और उसमें यह दिन शिक्षकों के सम्मान के लिए नहीं बल्कि छुट्टी का दिन होने पर प्रचलित हो गया है। देश के प्रधानमंत्री ने इस मंच का प्रयोग बच्चों को नैतिक, सामाजिक, व्यक्तित्व निर्माण की षिक्षा देने के लिए किया। पूर्व में जो राजनैतिक दल शिक्षक दिवस के अवसर पर इस संवाद को राजनीति से पे्ररक बताने की कोशिष कर रहे थे। जो नेता खुले आम कह रहे थे की प्रधानमंत्री अपने भाषण से भाजपा के लिए भविष्य के वोटर तैयार करना चाहते है उन्हें उनका जवाब बच्चों के सवालों और मोदी को एक भारत श्रेष्ठ भारत बनाने को लेकर दिए गए जवाबों से मिल गया होगा।
मोदी ने इस मंच का प्रयोग कही भी राजनैतिक हित के लिए नहीं किया। इस संवाद कार्यक्रम से यह तो पता चलता है कि देश का प्रधानमंत्री बहुत सर्जनात्मक व्यक्ति है। अपने तरह की पहली और अनूठी पाठशाला से बच्चों के मासूम सवालों का जवाब दिया गया। देश की प्रगति में हर छोटी से छोटी सीख जैसे बिजली बचाना, पर्यावरण सुधार, स्कूलों की साफ सफाई, शौचालय की व्यवस्था, बालिका शिक्षा पर जोर, ग्लोबल वार्मिंग, प्रकृति के साथ जीने की शिक्षा के साथ व्यक्तित्व निर्माण, देश सेवा का पाठ मास्टर मोदी ने पढाया। शिक्षकों का सम्मान करना, शिक्षकों से हर बात साझा करना जैसी तमाम शिक्षा एक मंच से दी गयी। प्रधानमंत्री मोदी ने शिक्षक के रूप में कुछ सुझाव भी दिए जिनका वास्तविक रूप से अमल किया जाए तो ये सुझाव सुखद परिवर्तन में बेहद सहायक सिद्ध होंगे। गांवों में मास्टर का जो सम्मान पूर्व में किया जाता रहा है उसे वापस सम्मानीय स्थान मिले इसका संदेश भी इस मंच से देने की कोशिष की। मोदी ने इन कामों में मीडिया की भूमिका पर भी सकारात्मकता से सोचने का आग्रह किया। मोदी ने गणमान्य नागरिकों से आसपास के विद्यालयों में सप्ताह में एक दिन पढाने की जो बात कही है वह बच्चों के भविष्य निर्माण में एक मील का पत्थर साबित हो सकती है।
शिक्षक दिवस का यह पर्व शिक्षकों के सम्मान के लिए जाना जाता रहा है। प्रधानमंत्री मोदी ने इस पर्व पर शिक्षकों के सम्मान के साथ बच्चों को किताबी ज्ञान नहीं बल्कि नैतिक शिक्षा देने की दिशा में जो प्रयास किया उससे समाज को भी सीखने की जरूरत है। मोदी ने जो शिक्षा बांटी वह स्पष्ट है कि जापान की तरह हिन्दुस्तान में भी शिक्षक एवं विद्यार्थी मिलकर स्कूलो में साफ सफाई रखे और इसे राष्ट्रीय चरित्र के रूप में विकसित किया जाए। बच्चों को टीवी, लेपटाॅप, मोबाइल की दुनिया से बाहर निकलकर खेलकूद में मन लगाकर बचपन को जीने की शिक्षा देने का समाज से भी आव्हान किया। ज्ञान के लिए गूगल पर नहीं गुरू के पास जाना सीखे, जानकारी नहीं स्थिति, चीजों को समझना सीखे। आत्मकथाओं को पढकर अपने जीवन चरित्र में सकारात्मकता लाने का ज्ञान भी मोदी ने अपने मंच से दिया। शिक्षा सिस्टम में सुधारने के लिए मोदी ने समाज और शिक्षक दोनो को ये शिक्षा देने के प्रयास किया है। जापान यात्रा के उदाहरण भी मोदी ने बच्चों को दिए। अनुशासन जो विकसित जापान का आधार है उसे बच्चों को अपनाने को भी कहा। वास्तव में इस तरह की शिक्षा अब बच्चों को कम ही दी जाती है। स्कूलों में पढाई का बोझ, टाॅप करने का तनाव बच्चों में बना रहता है। इन सब से बाहर निकलकर बेहतर नागरिक बन देश सेवा करने का संदेष आजादी के 60 वर्ष पश्चात पहली बार किसी प्रधानमंत्री ने दिया है।
मोदी ने अपनी पाठशाला से बता दिया कि वे केवल प्रधानमंत्री नहीं है बल्कि देश निर्माण में सबको साथ लेकर चलने वाले एक करिश्माई नेता है। सुबह से बल्कि दो तीन दिन पहले से इस कार्यक्रम को मिली मीडिया कवरेज ने भी जाहिर कर दिया कि मोदी किसी भी पूर्व नियोजित कार्यक्रम को हडपकर देश का भविष्य निर्माण के लिए संदेश देने का माद्दा रखते है। 10 साल की खामोशी के बाद इतना हंगामा तो बनता है और यह हंगामा देश को नई दिशा देने के लिए आवश्यक भी है। मोदी प्रधानमंत्री बनने के बाद धीरे धीरे जो सुधार कार्यक्रम लागू कर रहे है वह देश ने देखना भी प्रारंभ कर दिया है। मोदी जिस मंच का प्रयोग अपने चुनावों के प्रचार में करते रहे उसका प्रयोग शिक्षक दिवस पर कर नया उदाहरण प्रस्तुत किया है। इसके पहले किसी सरकार या प्रधानमंत्री ने जिन बच्चों के संबोधन करने के बारे में कभी नहीं सोचा। मोदी ने ऐसे तमाम दलों को नए तरीके की राजनीति पर सोचने को मजबूर कर दिया कि वे भाजपा के नेता मोदी से तब भी पीछे थे और प्रधानमंत्री मोदी के दूरदृष्टता से आज भी पीछे है।
– सत्येन्द्र खरे, स्वतंत्र पत्रकार
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