मकर संक्रांति पर्व का इंतजार केवल दान-पुण्य के लिए ही नहीं होता बल्कि गजक-मूंगफली और पंतग उड़ाने के लिए भी होता है। इसलिए इस दिन का बेसब्री से इंतजार बच्चे और युवा करते हैं क्योंकि इस दिन उन्हें दिल खोलकर पतंग उड़ाने का मौका जो मिलता है। बड़े-बूढ़े भी इस दिन बच्चों को पतंग उड़ाने से रोकते नहीं है।
उत्तर भारत में तो पंतग को गु्ड्डी भी कहते हैं लेकिन क्या कभी आपने सोचा कि इस पर्व पर पतंग उड़ाने का रिवाज क्यों हैं, अगर नहीं तो आज हम आपको इसका राज बताते हैं।
दरअसल मान्यता है कि पतंग खुशी, उल्लास, आजादी और शुभ संदेश की वाहक है, संक्रांति के दिन से घर में सारे शुभ काम शुरू हो जाते हैं और वो शुभ काम पतंग की तरह ही सुंदर, निर्मल और उच्च कोटि के हों इसलिए पतंग उड़ाई जाती है। काम की शुभता के लिए तो कहीं-कहीं लोग तिरंगे को भी पतंग रूप में इस दिन उड़ाते हैं। नयी सोच और शक्ति पतंग उड़ाने से दिल खुश और दिमाग संतुलित रहता है, उसे ऊंचाई तक उड़ाना और कटने से बचाने के लिए हर पल सोचना इंसान को नयी सोच और शक्ति देता है इस कारण पुराने जमाने से लोग पतंग उड़ा रहे हैं। सूरज की रोशनी के लिए सर्दी के दिनों में सूरज की रोशनी बहुत जरूरी होती है इस कारण भी लोग पतंग उड़ाते हैं।
ऐसा माना जाता है मकर संक्रांति के दिन से सूरज देवता प्रसन्न होते हैं इस कारण लोग घंटो सूर्य की रोशनी में पतंग उड़ाते हैं, इस बहाने उनके शरीर में सीधे सूरज देवता की रोशनी और गर्मी पहुंचती है, जो उन्हें सीधे तौर पर विटामिन डी देती है और खांसी, जुकाम से बचाती है।