न्यूयॉर्क: कोरोना के मामले छिपाने वाले चीन पर अब मरीजों का डेटा न देने का आरोप है। चीनी वैज्ञानिकों ने वायरस के ओरिजिन का पता लगाने वुहान गई वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन (WHO) की टीम के साथ रॉ डेटा शेयर करने से इनकार कर दिया। उन्होंने सरकार की कही बात मानने के लिए दबाव भी बनाया। WHO ने शुक्रवार को यह जानकारी दी।
WHO के मुताबिक, इस डेटा की मदद से कोरोना वायरस के ओरिजिन को समझने के करीब पहुंचा जा सकता है। न्यूयॉर्क टाइम्स ने हाल में वुहान से जांच कर लौटे एक्सपर्ट्स के हवाले से बताया कि मरीजों के रिकॉर्ड्स और दूसरे मसलों पर हालात काफी तनाव भरे हो जाते थे। कई बार दोनों पक्षों में बहस जैसी स्थिति बन गई।
शुरुआती दिनों की जानकारी नहीं दी
टीम ने यह भी कहा कि चीन ने कोरोना के शुरुआती दिनों के बारे में जानकारी देने का विरोध किया। इससे उनके लिए छिपे हुए सबूत हासिल करना मुश्किल हो गया। यह जानकारी भविष्य में कोरोना जैसी खतरनाक बीमारियों को रोकने में मदद कर सकती है।
टीम में शामिल डेनमार्क की एपिडेमियोलॉजिस्ट थिया कोलसेन फिशर ने बताया कि अगर आप डेटा के भरोसे हैं और प्रोफेशनल हैं, तो डेटा हासिल करना वैसे ही है, जैसे कोई डॉक्टर मरीज को आंखों से देखता है। उन्होंने कहा कि चीनी अफसरों ने WHO की टीम से कहा कि वे वायरस के ओरिजिन के बारे में सरकार की कही बात मान लें। इसमें कोरोना के विदेश से चीन में फैलने की बात भी शामिल है। इस पर टीम के वैज्ञानिकों ने कहा कि वे बिना डेटा के कोई फैसला लेने से बचेंगे।
चीन पर जांच के लिए दबाव
डॉ. फिशर ने कहा कि हर कोई जानता है कि चीन पर जांच के लिए कितना दबाव है और उसका कितना दोष हो सकता है। वायरस का फैलना कब शुरू हुआ, इस बारे में टीम ने कहा कि उसने अभी तक इस बात का सबूत नहीं है कि चीन से पहले कहीं वायरस था।
अक्टूबर 2019 में 92 मरीज एडमिट होने की बात मानी
चीनी वैज्ञानिकों ने यह बात मानी कि अक्टूबर, 2019 की शुरुआत में वुहान के अस्पताल में बुखार और खांसी जैसे लक्षण वाले 92 लोगों को एडमिट कराया गया था। उन्हें उन लोगों में कोरोना का कोई सबूत नहीं मिला, लेकिन उनके टेस्ट अधूरे थे।
इस मामले को दबाने और वायरस के फैलाव को रोकने के लिए कोशिश न करने पर बीजिंग की आलोचना हुई। इससे यह वायरस पूरी दुनिया में फैल गया। बताया जाता है कि चीन में कोरोना का पहला मरीज 17 नवंबर को ट्रेस हो गया था, लेकिन चीन ने 21 दिन बाद 8 दिसंबर को इस बारे में दुनिया को बताया।
देर से किए गए एंटीबॉडी टेस्ट पर भरोसा कम
फिशर ने कहा कि उन्हें उम्मीद थी कि वुहान जैसे शहर में कोरोना के लक्षणों वाले कई लोग मिलेंगे। WHO की टीम ने चीनी वैज्ञानिकों से और ज्यादा सर्च के लिए कहा। टीम ने संक्रमण के लंबे समय बाद एंटीबॉडी टेस्ट की विश्वसनीयता के बारे में भी चिंता जाहिर की। ड्वायर ने कहा कि मुझे लगता है कि यह चीन में शुरू हुआ। इसके यहां से बाहर फैलने के कुछ सबूत है, लेकिन यह बहुत कमजोर हैं।
लैब से वायरस लीक होने की थ्योरी खारिज
WHO की टीम जांच के लिए वुहान के हुनान मार्केट गई थी। माना जाता है कि कोरोना सबसे पहले यहीं मिला था। 12 दिन की जांच के बाद टीम ने किसी लैब से वायरस के लीक होने की थ्योरी को खारिज कर दिया था। वॉशिंगटन पोस्ट के मुताबिक, टीम को लीड करने वाले डेनमार्क के WHO के फूड सेफ्टी एक्सपर्ट पीटर बेन एम्बरेक ने कहा कि वे इस थ्योरी पर आगे जांच की सिफारिश नहीं करेंगे कि वायरस गलती से किसी लैब से लीक हो गया था।
10 करोड़ से ज्यादा मरीज, 23 लाख मौतें
दिसंबर 2019 में वुहान में निमोनिया जैसे लक्षण वाले कुछ मरीजों में नए तरह के कोरोना वायरस की पहचान की गई थी। इसे बाद में कोविड-19 नाम दिया गया। धीरे-धीरे यह बीमारी पूरी दुनिया में फैल गई। 10 करोड़ से ज्यादा लोग इसकी चपेट में आए। 23 लाख लोगों की मौत हुई। तब अमेरिका के राष्ट्रपति रहे डोनाल्ड ट्रम्प ने नए वायरस को चीनी वायरस कहकर इसके लिए चीन को जिम्मेदार ठहराया था।