गुरु नानक देव ने अपने शिष्य मरदाना के साथ करीब 28 वर्षों में दो उपमहाद्वीपों में पांच प्रमुख पैदल यात्राएं की थीं, जिन्हें उदासी कहा जाता है। इन 28 हजार किलोमीटर लंबी यात्राओं में गुरु नानक ने करीब 60 शहरों का भ्रमण किया। अपनी चौथी उदासी में गुरु नानक ने मक्का की यात्रा की।
उन्होंने हाजी का भेष धारण किया और अपने शिष्यों के साथ मक्का पहुंच गए। कई हिंदू, जैन और बौद्ध धर्म के कई तीर्थस्थलों की यात्रा करने के बाद नानक ने मक्का की यात्रा की थी।
गुरु नानक की मक्का यात्रा का विवरण कई ग्रन्थों और ऐतिहासिक किताबों में मिलता है। ‘बाबा नानक शाह फकीर’ में हाजी ताजुद्दीन नक्शबन्दी ने लिखा है कि वह गुरु नानक से हज यात्रा के दौरान ईरान में मिले थे। जैन-उ-लबदीन की लिखी ‘तारीख अरब ख्वाजा’ में भी गुरु नानक की मक्का यात्रा का जिक्र किया है। उन्होंने नानक और रुकुद्दीन के बीच संवाद का उल्लेख भी किया है। हिस्ट्री ऑफ पंजाब, हिस्ट्री ऑफ सिख, वारभाई गुरदास और सौ साखी, जन्मसाखी में भी नानक की मक्का यात्रा का जिक्र किया गया है।
गुरु नानक जी के दो शिष्य थे। उनका एक शिष्य हिंदू था जिसका नाम बाला था और दूसरा मरदाना था जो मुस्लिम था। मरदाना ने गुरु नानक से कहा कि उसे मक्का जाना है क्योंकि जब तक एक मुसलमान मक्का नहीं जाता तब तक वह सच्चा मुसलमान नहीं कहलाता है। गुरु नानक ने यह बात सुनी तो वह उसे साथ लेकर मक्का के लिए निकल पड़े। गुरु जी जैसे ही मक्का पहुंचे तो वह थक गए थे और वहां पर हाजियों के लिए एक आरामगाह बनी हुई थी तो गुरु जी मक्का की तरफ पैर करके लेट गए।
हाजियों की सेवा करने वाला खातिम जिसका नाम जियोन था वह यह देखकर बहुत गुस्सा हुआ और गुरु जी से बोला, क्या तुमको दिखता नहीं है कि तुम मक्का मदीना की तरफ पैर करके लेटे हो। तब गुरु नानक ने कहा कि वह बहुत थके हुए हैं और आराम करना चाहते हैं। उन्होंने जियोन से कहा कि जिस तरफ खुदा ना हो उसी तरफ उनके पैर कर दे। जियोन ने जब उनके पैर दूसरी तरफ करने की कोशिश की तो उसे उसी तरफ मक्का भी दिखने लगा।
इसके बाद जियोन को गुरु नानक ने समझाया कि खुदा हर दिशा में है। अच्छे कर्म करो और खुदा को याद करो, यही सच्चा सदका है।