लीजिए फिर आ गया गणतन्त्र दिवस। अब यह मत पूछिएगा कि यह क्यों याद किया जाता है? भाइयों/बहनों/सुधीजनों इसी दिन 1950 को देश में अपना संविधान लागू हुआ था और तब से इस स्वतंत्र राष्ट्र में लोकतन्त्रीय व्यवस्था अभी तक कायम है। हमारे देश का लोकतन्त्र 68 वर्ष पुराना हो गया। जी हाँ 69वाँ हैप्पी बर्थडे ही कहना उचित हो सकता है। देश के लोकतन्त्र की प्रजा यानि आम जनता के विकास के लिए कई पंचवर्षीय योजनाएँ चलीं और यदि विकास हुआ तो भ्रष्टाचार और महंगाई का। ये दोनों फल-फूल रहे हैं और नित्य-निरंतर विकास कर रहे हैं। एक तरह से विशाल बटवृक्ष बन गए हैं।
छोड़िए भ्रष्टाचार और महंगाई का रोना तो सभी रोते हैं तब फिर हमें क्या पड़ी है कि उसी का राग हम भी अलापें। सरकारी दफ्तरों से लेकर आम परचून की दुकान पर जाने से पहले आपको और हमें अपनी जेबों का वजन देखना ही पड़ेगा। यदि वजन नही तो काम नहीं और खरीददारी भी नहीं। हम नेता तो हैं नहीं कि राजनीति जैसे व्यवसाय को अपनाकर रातों-रात स्लमडाग मिलियनेयर हो जाएँ।
अब तो नेता बनने के मानदण्ड ही परिवर्तित हो गए हैं। मसलन कई दर्जन हत्या, अपहरण, बलात्कार, खून-खराबे जैसे अपराधों में संलिप्तता सम्बन्धित थानों में पंजीकृत होनी चाहिए। अदालतों में मुकदमें विचाराधीन होना भी राजनीति में प्रवेश करने का प्रमुख मानदण्ड है। लखपति/करोड़पति ही पॉलिटिक्स जैसा बिजनेस कर सकते हैं।
हम देखते हैं कि जनता की कमाई पर ये नेतागण ऐश करते हैं। वातानुकूलित गाड़ियों से चलते हैं, आई.ए.एस., आई.पी.एस. जैसे अफसर इनकी अगुवानी में व्यस्त रहते हैं। राजनीति के परिवर्तित परिदृश्य पर दृष्टिपात करने से मन खिन्न हो जाता है। हम तो ठण्ड में कम्बल के लिए कतार में लगते हैं, अग्निकाण्ड, बाढ़ और अन्य प्राकृतिक आपदा की स्थिति में सरकारी इमदाद के लिए मारामारी करते हैं। सरकारी मुलाजिम और सत्ता पक्षीय नेताओं की साठ-गाँठ से हम जैसे गरीब पात्रों के लिए प्रदत्त सरकारी इमदाद घूम-फिर कर इन्हीं लोगों के बीच रह जाती है और बूढ़ी माँ कम्बल लेने की कतार में ही खड़ी-खड़ी ठण्डी लगने से प्राण त्याग देती है।
आप शायद यह तो जानते ही होंगे कि डेमोक्रेसी को पहले प्रजातन्त्र कहा जाता था। भला हो ज्ञानी, अक्लमन्द पॉलीटीशियन्स का उन्होंने इसे अवाम को खुश करने के लिए लोकतन्त्र कह दिया। विषय लम्बा क्यों किया जाए? इस समय भ्रष्टाचार के बाद यदि किसी ने विकास किया है तो वह है महंगाई। ये दोनों हमारे गणतन्त्र में लाइलाज बीमारी हैं।
इनका विकास कैसे रोका जाए हमारी समझ से बाहर है। तो क्या आप गणतन्त्र के 69वें जन्मोत्सव पर संकल्प लेकर भ्रष्टाचार और महंगाई पर नियंत्रण लगाने का प्रयास करेंगे। इसके लिए आप को नेता बनना पड़ेगा और राजनीति के माध्यम से जनसेवा करनी होगी जिसके लिए आपको डॉन, माफिया और हत्यारा बाहुबली बनना पड़ेगा। पुलिस थानों में आप की हिस्ट्रीशीट, खुले अदालतों में आपके विरूद्ध मुकदमा विचाराधीन होने चाहिए। यह मानदण्ड (मानक) आपको मंजूर है। यदि है तब तो फिर आप सत्ता का सुख भोगने के लिए फिट हैं।
बीते 2-3 वर्षों में हम और हमारे जैसे लोगों की हालत सरकार नई-नई नीतियों के चलते और भी खराब होने लगी है। मसलन देश में विमुद्रीकरण, जी.एस.टी. और आधार लिंक अनिवार्यता ने आम आदमी को झकझोर कर रख दिया है। आम आदमी जो मतदाता भी है समस्त कष्टों के बावजूद भी येन-केन-प्रकारेण अपना जीवन जी रहा है और इसे अपनी नियति मानने लगा है। मतदाता मतदान के अवसर पर आसन्न प्रसव पीड़ा से कराहती माँ की तरह अपना दुःख भूलकर मतदान करते हैं और बड़े-बड़े दावे करने वालों का चयन होने के उपरान्त वह प्रसव पीड़ा को भूल जाते हैं। आम आदमी अपना जनप्रतिनिधि चुनने में बार-बार और हर बार यही गलती करता है।
68 वर्षीय भारतीय गणतन्त्र में साक्षरता का जो भी प्रतिशत हो परन्तु शिक्षित और ज्ञानियों (दूरगामी परिणाम सोचने वाले) की संख्या में कोई विशेष बढ़ोत्तरी हुई हो ऐसा देखने को नहीं मिल रहा है। देश की जनसंख्या नित्य-निरंतर बढ़ रही है। देश विकास कर रहा है। कंकरीटों के जंगल बढ़ रहे हैं, हरे-भरे बाग-बगीचों, वनों, जंगलों का सफाया हो रहा है। देश के अवाम के लिए संचालित सरकारी योजनाओं में लूट मची है। भ्रष्टाचार चरम पर है। जातिवाद, सम्प्रदायवाद……अनेकों वाद प्रचलन में हैं। मिलावट, घूसखोरी, कमीशनखोरी बढ़ती जा रही है।
कुछ प्रतिशत विरोधियों के स्वर जंगलराज के नक्कारखाने में तूती की आवाज की तरह होकर रह गये हैं। देश में जंगलराज कायम हो गया है। हत्या, लूट, बलात्कार की घटनाओं के बारे में कुछ भी लिखना कमतर ही कहा जाएगा। सेल्फी का जमाना चल रहा है। इण्डिया जो भारत है के समस्त क्षेत्रों का डिजिटलाइजेशन कर दिया गया है। छोटे से लेकर बड़े कार्य आनलाइन होने लगे हैं। रोटी, कपड़ा और मकान की व्यवस्था भी आनलाइन हो गई है। देश के लोग अमीर बन गए हैं। घर बैठे इन्टरनेट के जरिए सभी कार्यों का सम्पादन कर रहे हैं।
दिनवा की सन्तानों से लेकर अनिल बी के सन्तानों के हाथों में हजारों रूपए के महंगे स्मार्ट फोन देखने को मिल रहे हैं। इन 68 वर्षों में देश ने बहुत ही तरक्की कर लिया है। कितना और करेगा यह आने वाला समय बताएगा। पिछले कुछ दशकों से आज तक देश का जिस तेजी से विकास हो रहा है उस गति की बराबरी हमारी लेखनी भी नहीं कर पा रही है।
हालांकि हैप्पी बर्थडे विश करना फिरंगी परम्परा है। कहने को हम पूर्णतया गुलामी व अंग्रेजी दासता की बेड़ियों से मुक्त हैं……. स्वाधीन राष्ट्र के नागरिक हैं, परन्तु इस तरह की शुभकामनाएँ देना हमारे संस्कार में शामिल है। हम ऐसा इसलिए कह रहे हैं कि जब हम किसी को भारतीय संस्कृति में शुभकामना व बधाई देते हैं तो हमें उसके प्रत्युत्तर में फिरंगियों की तरह विशिंग्स कॉम्पलीमेन्ट्स मिलते हैं। चलिए मिला तो सही भले ही तौर-तरीका व संस्कृति अलग हो।
खैर! छोड़िए गणतन्त्र दिवस पर देशवासियों को शुभकामनाएँ दीजिए और प्रेम से बोलें 26 जनवरी जिन्दाबाद, जन-गण-मन………..और विजयी विश्व तिरंगा प्यारा……….।
68 वर्षों में हुए विकास कार्यों की झाँकी सजाएँ। बस एक दिन की ही बात है, फिर सब पूर्ववत चलने लगेगा। भ्रष्टाचार और महंगाई के बारे में सोचकर क्या किया जाएगा। इस पर कौन अंकुश लगाएगा? वह जिसे हमारा नेता/जनप्रतिनिधि कहा जाता है? जिसे चुनकर हम छोटी से लेकर बड़ी पंचायतों में भेजते हैं? वह तो स्वयं ही सत्ता की बागडोर संभालने के बाद भ्रष्टाचार में लिप्त हो जाता है।
सरकारी पैसों का स्वहितार्थ उपयोग कर सुख भोगते हुए उसे महंगाई की विकरालता का पता ही नहीं चलता। साउण्ड प्रूफ, बन्द गाड़ियों में चलता है, आगे-पीछे पूरा फोर्स लगा रहता है, उसे अवाम की इन्कलाबी आवाजें सुनाई नहीं पड़ती हैं। क्योंकि ‘‘जाके पाँव न फटी बिवाई सो का जाने पीर पराई।’’ ऐसे परिदृश्य को ही शायद ‘‘रामराज’’ कहा जा सकता है और ऐसे में रामनाम की लूट है, लूट सको तो लूट……..। अन्त में 69वें गणतन्त्र दिवस की हार्दिक शुभकामना के साथ- रीता
रीता विश्वकर्मा
सम्पादक रेनबोन्यूज
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