कहने को तो किसान अन्न दाता हैं , यानी अगर किसान खेती न करें और फसल न उपजाएं तो भारत की 125 कड़ोड़ जनता का पेट भरना खुद भारतीय जनता के लिए और सरकार के मुश्किल ही नहीं नामुमकिन होगा . कृषि और किसान के मुद्दे की गंभीरता का अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है 1951 में प्रथम पंच वर्षी योजना के तेहत 1960 कड़ोड़ के योजना मैं 601कड़ोड़ यानी एक तिहाई की राशि केवल कृषि छेत्र के विकास के लिए आवंटित किये गए थे किन्तु समय बदला सरकार की नीति बदली और कृषि छेत्र की उपेक्षा की जाने लगी लगी , वर्तमन सरकार ने 20018-19 के कुल बजट का केवल 12.8 % राशी ही कृषि विकास के लिए आवंटित किया. हाल ही में महाराष्ट्र के नासिक जिले के विभिन्न गांवों के 35000 हज़ार किसान, पूर्ण ऋणमाफ़ी, फसल के उचित समर्थन मूल्य, वन भूमि अधिकार अधिनियम 2006 को सही से लागु करने समेत कुल 13 मांगों को लेकर 180 किलोमीटर की दूरी पैदल तय कर के नासिक से मुंबई पहुंचे सरकार से बात करने। भारत कृषि प्रधान देश हो ने के बावजूद यहां के किसानो को न्यूनतम समर्थन मूल्य जैसी बुनियादी मांगो को सरकार तक पहुंचाने के लिए इतनी मशक्कत करनी पड़ती है और ऐसा कोई पहली बार नहीं हुआ।
इस से पहले भी किसानो ने अपने मांगो को लेकर कई बार प्रदर्शन किया है – याद होगा दिल्ली के जंतर मंतर पर तमिलनाडू से आये किसानों की मांगों को 15 दिनों तक नहीं सुना गया, मृत किसानों की कंकाल खोपड़ी , मूत्र तक पीने पर मजबूर होगये क्यों की इनके पास खाने और पीने के लिए कुछ बचा नहीं। उधर मध्य प्रदेश मैं आन्दोलन कर रहे किसानों की आन्दोलन को ख़तम करने के लिए प्रसाशन ने तो गोली तक चलादी जिसमें 2 किसानों को जान गंवाना पड़ा.लेकिन हमेशा से ही वेवस और लाचार किसानों की आवाज को सफ़ेद पोश नेताओं द्वारा अनदेखा किया जाता है , तो कई बार आश्वान मात्र दे कर दिल बहला दिया जाता है । पर इस तरह से देश के अन्नदाता किसानों की स्थिति कब सुधरेगी बड़ा सवाल है?
विभिन्न मांगों को लेकर की जार ही किसान आंदोलन के सम्बन्ध में मध्यप्रदेश, बिहार एंव झारखंड के 30 से अधिक जिलों के किसानों की वर्तमान स्थिति पर मोबाइलवाणी के माध्यम से अभियान चलाया गया जिसमें 300 से अधिक किसानों ने कहा कि वर्तमान समय में किसानों की स्थिति दयनीयहै। कई क्षेत्र के किसानों ने कहा कि एक तो देश के बिहार,झारखण्ड एवं मध्यप्रदेश राज्यों में सिचाई का साधन उपलब्ध नहीं है यहाँ के किसान खेती कार्य के लिए पूरी तरह से वर्षा पर निर्भर रहते हैं और तमाम तरह की समस्या का सामना करते हुए फसल उपजाते हैं।इस तरह से किसानों की हालात ख़राब हो ने के पीछे मुख्य कारण सिचाई का आभाव हैं किसानों के लिए बनाई गई सरकारी योजनाओं का लाभ किसानों को नहीं मिलना ,फसल ख़राब होने पर फसलबीमा का लाभ नहीं मिल पाना ।लोगों ने कहा कि किसान जैसे -तैसे फसल तो ऊगालेते हैं लेकिन फसल बेचने के लिए विक्रय केंद्र मौजूद नहीं है और अगर जहाँ कहीं पर विक्रय केंद्र खुला भी होता है ,तो विक्रय केंद्र समय से नहीं खुलता है।यहाँ तक कि कई जगहों पर धान विक्रय केंद्र हमेशा ही बंद रहता है और कभी कभा रही खुलता हैं, जिस से कई बार किसनों को पता भी नहीं होता. यह बात भी सामने आई है कि विक्रय केंद्र में किसान आसानी से उत्पादित फसल को नहीं बेच सकते हैं।चूँकि सभी सरकारी धान विक्रय केंद्र में धान बेचने के लिए किसानों को बिचौलियों का सहारा लेना पड़ता है।विक्रय केंद्र वही किसान धान बेच पाता है जिनका बिचौलियों से सांठगांग होता है।इतना ही नहीं जब किसान सरकारी धान विक्रय केंद्र जाते हैं ,तो उन्हें केंद्र संचालकों के द्वारा काफी परेशान किया जाता है और किसानों से कहा जाता हैं कि आज दुकान बंद है ,कल आइये या किसी दूसरे दिन आइये।एक बात और गौर करने वाली यह है कि अगर किसान किसी तरह से जदोजहद कर सरकारी मंडी में फसल बेच भी लेते हैं , तो उन्हें उसका पैसा समय पर नहीं मिलता है कई बार तो साल भर तक किसानों को पैसा नहीं मिलता है जिस से वे काफी त्रस्त हो जाते हैं और इस तरह से किसान थक हार कर अपना फसल दलालों के हांथों बेचने को बेवस हो जाते हैं।बिचौलियों के कारण ही किसान को निर्धारित न्यूनतम समर्थन मूल्य का लाभ नहीं मिल पाता ।साथ ही बहुत कम किसान ही ऐसे हैं,जो विक्रय केंद्र में जा कर धान की बिक्री कर पाते हैं।हर जगह पर सरकारी मंडी का आभाव होना और उसमे में भी बिचौलियों का बोलबाला होने के कारण किसानों को निजी दुकानों में जाकर औने-पौने दामों में अपना धान बेचना पड़ताहै।कई क्षेत्र से किसानों ने कहा कि सरकार द्वारा जो फसल बिक्री के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्यनिर्धारित किया है,वह काफी कम है।चूँकि किसानों को खेती करने में काफी लागत आती है लेकिन उस आधार पर उन्हें फसल का मूल्य नहीं मिलता ।
“रामकरन ठाकुर मधुबनी जिले से बताते हैं की सरकार द्वारा तय किये गए न्यूनतम मूल्य अनाज उत्पादन का नहीं मिलता,ना ही गोदाम है अपने फसल को रखने के लिए इसलिए हम लोगों को फसल उत्पादन के फ़ौरन बाद बेचना पड़ता है – हम चाहते हैं की गोदाम खुले – सरकार न्यूनतम मूल्य पर आनाज खरीदने के लिए मंडी बनाये “
वहीँ लोगों ने कहा कि देश के किसानों को प्रकृति का भी मार झेलना पड़ता है किन्तु सरकार किसी तरह का मुआवजा नहीं देती है किसान तंग आकर आत्महत्या करने को बेवस हैं।किसानों को फसल का सही मूल्य नहीं मिलने से किसान परेशान हैं चूँकि अक्सर छोटे एवं मंझोले किसान खेती करने के लिए कर्ज लेते हैं और खेतों में फसल लगाते हैं और जब फसल प्राकृतिकआपदा के कारण ख़राब हो जाती हैं ,तो किसानों के समक्ष ऐसी स्थिति उत्पन्न हो जाती है की अपने आपको हर तरफ से असर्म्थ्य और लाचार महसूस करते उपर से डर सताता है कर्ज कैसे चुकाएं. वहीँ लोगों ने कहा कि किसानों को कृषिकार्य में सक्षम बनाने राज्य सरकारें विभिन्न प्राकार की योजनाएं चलाती हैं ताकि वे आसानी से फसल उपजा सके और अपना घर परिवार चला सके लेकिन इन योजनाओं में भी लूटखसोट की राजनीती व्याप्त होती है और बिचौलियाँ हावी होते हैं, योजना का लाभ किसानों तक सीधे नहीं पहुँच पाती।लोगों ने कहा कि किसानों के लिए खादबीज एवं डीजल अनुदान की व्यवस्था की गई लेकिन किसानों को किसी भी तरह का अनुदान राशि समय पर नहीं मिलता।
आप को जान कर आश्चर्य होगा की अब तक किसानों के उपर बैंक द्वारा कुल कर्ज कितना दिया गया है, अब तक किसानों को 8,94,459 कड़ोड़ रुपया कर्ज दिया गया है जिनमें से 218,344 कड़ोड़ रूपये की कर्ज माफ की गयी – (श्रोत रेजेर्ब बैंक ऑफ़ इंडिया)
दूसरी तरफ बड़े बड़े कंपनी जो अपनी लागत से जयादा मूल्यों पर उपभोक्ता को सामान बेचते हैं – मुनाफा कमाना ही इनका धर्म है किन्तु सरकार ने 2017 में 2.4 लाख कड़ोड़ को नीतिगत तौर पर लिखित रूप में माफ़ कर दिया गया है – किसानों के कर्ज माफ़ी पर संसद और उद्योगपतियों ने खूब हंगामा मचाया लेकिन जब , उद्योगपतियों के कर्ज माफ़ी हुए तो किसी को कानों कान भी खबर नहीं मिली . यही है हमारा भारत और फिर हम कहते नहीं थकते की भारत कृषि प्रधान देश है और किसान अन्न दाता .
किसानों ने सरकार से अपनी विभिन्न मांगों में पहली मांग रखते हुए कहा कि अगर सरकार वास्तव में देश के किसानों की स्थिति सुधारना चाहती है,तो सरकार को हर गांव और पंचायतों में सरकारी धान बिक्री केंद्रस्थापित करनी होगी और इनमें जो बिचौलियाँ हावी हैं उन्हें सरकार दूर करे
ताकि किसान आसानी से अपना फसल बेच सके और और कृषि आय बढ़ा सके, न्यूनतम समर्थन मूल्य के निर्धारण में किसानों की भागीदारी सुनिश्चित हो ।जिन क्षेत्रों में सिचाई के साधन उपलब्ध नहीं है, उन क्षेत्रों में सिचाई का साधन मुहैया कराए।इतना ही नहीं किसानों को सस्ते दामों में खाद बीज आदि उपलब्ध कराए ताकि किसान कम लागत में अच्छे फसल उपजाए । फसल बीमा का लाभ किसानों को दी जाये ,स्वामीनाथन कमिशन की सिफारिशों को स्वीकार करना चाहिए ,सरकार द्वारा लिया गया हरफैसला किसानों के हक़ में हो, किसानों को आसानी से कृषि लोन मिले, किसानों ऋणमाफ़ी पर सरकार ध्यान दें ताकि वे कृषि कार्य कर सके और आत्मनिर्भर बन सकें।
कहीं ऐसा तो नहीं की सरकार कृषि छेत्र को बर्बाद कर- छोटे व मझोले किसानों को भूमि हीन का एहसास करा रही और उसे कारखानों में मजदूरी करने के लिए विवस वो भी न्यूनतम मजदूरी से भी कम वेतन पर – महिलों को तो और भी कम वेतन पर काम करने लिए मजबूर किया जाता है. विद्यालयों और विश्विद्यालयों की हालात पहले ही ख़राब कर चुके हैं – न पदाई होगी और न सरकार के ऊपर काम देने का दवाव . खेतिहर किसान अब कारखानों में अकुशल मजदूर बनेंगे – मेक इन इंडिया का नारा दे ही चुकी है सरकार ,GST लगा कर पूरे भारत में व्यापार को आसन बना ही दिया अब पूरी कोशिश है भूमि अधिग्रहण कानूनों में बदलाव किया जाए ताकि किसान की जमीन उनसे छीन कर उद्योगपतियों को दे दिया जाए और उसे अपने जमीन पर काम करने के वजाए उद्योगपतियों के लिए सस्ते मजदूर उपलब्ध कराये जाएँ ताकि मुनाफा केवल बड़े उद्योगपतियों को मिले और भारत सम्पूर्ण दुनिया के लिए सामान बनाने का सरल और बेहतर स्थान मात्र–ऐसा करने से राजनितिक पार्टियों के लिए तो और भी बेहतर होजायेगा – चुनाव जीतने के लिए उद्योगपतियों की तरफ से चंदे ज्यादा मिलेंगे, उद्योगपतियों को व्यापार अर्ने के लिए बैंकों द्वारा कर्ज उपलब्ध कराया जायेगा और फिर उसे एन पी एदिखा कर कर्ज माफी – या तो उद्योगपति भारत छोड़ कर किसी अन्य देश जाकर बस जाएंगे जैसे निरभ मोदी , विजय माल्या और फिर नारा लगेगा सब का साथ सब का विकास.
सुल्तान अहमद – ग्राम्वानी
(लेखक मोबाइल मीडिया – मोबाइल वाणी के राष्ट्रीय प्रबंधक हैं)