बुरहानपुर – बुरहानपुर का प्राचीन 185 वर्ष पुराने स्वामीनारायण मंदिर में पवित्र पुरूषोत्तम मास में पुरे माह के 30 दिन सुबह में 1 घंटे तक दूध और केसर केे जल से अभिषेक किया जाता हैं। सारे विष्व के स्वामीनारायण संप्रदाय का यहीं एक ऐसा मंदिर हैं जहां 1882 से लगातार दूध और केसर से अभिषेक हो रहा हैं। यहां सैंकडों लीटर दूध के साथ दही, केसर और पंच मिष्ठान के साथ भगवान को स्नान कराया जाता हैं। इस स्नान में सैकडों की संख्या में भक्त उपस्थित होते हैं और अभिषेक के साथ-साथ भगवान के जयकारे भी लगाते हैं। यहीं एक ऐसा मंदिर हैं जहां पूरे महिने तक लक्ष्मीनारायण देव का सैकडों लीटर दूध, मत्रोप्चार के साथ अभिषेक होता हैं।
बुरहानपुर का यह स्वामीनारायण मंदिर विष्व के 50 और भारत के 7 मंदिरों में से एक हैं जहां स्वयं भगवान स्वामीनारायण ने प्रसादी की मुर्तियां अपने लाडले हरी भक्तों को दी थी। ऐसा ही 185 वर्ष पुर्व 1882 में बुरहानपुर के हरी भक्त वडताल गुजरात के मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा उत्सव में गये थे तभी भगवान स्वामीनारायण ने प्रसन्न होकर बुरहानपुर के हरी भक्तों को नारायण भगवान की मुर्ति भेंट दी थी और वरदान दिया था की बुरहानपुर के हरी भक्तों को हमेषा धन धान्य से परी पूर्ण होंगे और सदैेव भगवान के साथ हरी भक्त भी लाडूओं का सेवन करते रहेंगे और सभी के लाडीले कहलाऐंगे। 1883 में स्वामी माया तितानंद जी ने अधिक मास (पुरूषोत्तम मास) में 30 दिनों तक ईष्वर का दुध अभिषेक करने से ईष्वर प्रसन्न होते हैं और तभी से यह परंपरा को यहां के हरी भक्त घरो से दुध लाकर क्विंटलों दुध का अभिषेक करते हैं। यहां दुध के साथ-साथ दही केषर, शुद्ध घी, शकर और वेदोंच्चारण के लिये ब्राम्हण 1600 मंत्रों का उच्चारण कर पवित्र पुरूर्षोत्तम मास में ईष्वर को प्रसन्न कर हरी भक्तों की मनोकामनाऐं पुर्ण करते हैं।
यह अभिषेक स्वामीनारायण संप्रदाय के केवल बुरहानपुर के मंदिर में ही देखने को मिलता हैं। इस अभिषेक बाद कई घंटो तक दुध की अविरल धारा बहती हैं जिसे भक्त तीर्थ के रूप में तपेलों में एकत्र कर अन्य भक्तों को पिने के लिये बांट दिया जाता हैं। वहीं सुबह 5 बजे से ही मंदिर में भक्तों का तांता लगना प्रारंभ हो जाता हैं। यह मंदिर संप्रदाय का विष्व विख्यात मंदिर हैं जहां हरी भक्त देष प्रदेष और विदेषों से भी आते हैं। इस मंदिर का सिंहासन पुर्णतः सोने के पतरे का बना हुआ हैं जिसमें 1882 में भगवान द्वारा नारायण की मुर्ति दिये जाने के बाद लक्ष्मीजी को भी स्थापित किया गया था। यहां अभिषेक के समय प्राचीन वाद्ययंत्र, वाजंत्री की धुन पर अभिषेक चलता है ंवहीं आरती में पुराने वाद्ययंत्रों की तर्ज पर ईलेक्ट्रॉनिक वाद्ययंत्र लगाये गये हैं। हरी भक्त आरती पुजा करने के प्ष्चात पुरूर्षोत्तम मास की कथा का श्रवण भी करते हैं जिसे सभी हरी भक्त अपने जीवन में उतारने का प्रयास भी करते हैं। व्यास पिटपर विराजमान स्वामी सदगुरू शास्त्री राजेंद्र प्रसाददासजी वडताल गुजरात से आकर कथा का वाचन कर रहे हैं। और उनका भी मानना हैं कि भगवान का दुध अभिषेक से ईष्वर को प्राप्ती करने का साधन हैं वहीं दुसरी और कथा का श्रवण करने से जीवन में हुऐं पापों को नष्ट करने का साधन होता हैं।
रिपोर्ट :- जफ़र अली