बरेली : मोहर्रम की दसवीं तारीख यौम-ए-आशूरा के मौके पर ताजियों का जुलूस निकाला गया। इस मौके पर नम आंखों और भरे दिलों से मुस्लिम समुदाय के लोगों ने कर्बला के 72 शहीदों को खिराजे अकीदत पेश की। उधर शिया समुदाय ने इमाम हुसैन अ○स○ को खिराजे अक़ीदत पेश की। वही इससे पहले रियाज़ असकरी ने तक़रीर करते हुये कहा कि इमाम हुसैन ने कर्बला के मैदान में अपनी शहादत दे कर दीने इस्लाम को बचाया।तो अल्लाह ने वादा किया कि ऐ हुसैन मैं तेरा ज़िक्र क़यामत तक बाकी रखूँगा गया। हिदुस्तान के अन्य शहरों में ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में इमाम हुसैन का गम मनाया जाता है कर्बला के मैदान में जब इमाम हुसैन अ0स0 अकेले बचे हैं तो मैदाने कर्बला में एक आवाज़ बुलंद करते हैं कि है कोई जो मेरी मदद को आये है कोई जो मेरी नुसरत को आये इस आवाज को सुनकर जनाबे अली असग़र ने अपने को झूले से गिरा दिया और खयामे हुसैनी में कोहराम बरपा हो जाता है ये सुन कर इमाम हुसैन खैमे में आते हैं और कहते हैं कि बहन मेरी मौजूदगी में रोने का सबब क्या है।शहज़ादी कहती हैं कि भईया आप की अवाज़ में इतना दर्द था कि जिसे सुनकर असग़र ने खुद को झूले से गिरा दिया है इमाम ने कहा कि लाओ बहन मैं असग़र का मकसद समझ गया इमाम अली असग़र को लेके कर्बला के मैदान में आते है और फौजे यज़ीद से बच्चे के लिए पानी का सवाल किया जवाब आया कि ऐ हुसैन अगर पूरी दुनिया पानी पानी हो जाये तब भी एक क़तरा पानी न दिया जाये गया ये सुनकर इमाम ने अली असगर को जलती ज़मीन पे लेटा दिया लेकिन जवाब आया कि ऐ हुसैन तुम बच्चे के बहाने पानी पीना चाहते हो ये सुनना था कि इमाम ने अली असग़र से कहा कि तुमभी तो हुज्जते खुदा के सुपुत्र हो अपनी हुज्जत इन जालिमो पर तमाम कर दो उस के बाद असग़र ने अपनी सुखी ज़बान अपने पपड़ाये हुए होंठो पर फिराना शुरू किया तो फौजे यज़ीद मुह फेर कर रोने लगी ये देख उमरे साद ने हुर्मला को बुलाया और अली असग़र को क़त्ल करने का हुक्म दिया । हुर्मला ने तीन भाल का तीर चलाया तीर अली असग़र का गला छेदता हुआ इमाम के बाजू में लगा तीर का वजन इतना ज्यादा था कि बेटा बाप के हाथों पे पलट गया। वही ताजिये का जुलूस बड़े इमामबाड़े से होते हुये अपने विभिन्न मार्गो होते हुये सेथल के बाज़ार जा पहुंचा जहां पर लोगों ने ब्लैड़ ,ज़जीर, कमां का मातम करते हुये इमाम हुसैन अ॰स को पुरसा दिया वही जूलूस शांतिपूर्ण रहा और निश्चित स्थानों पर ताजिए दफन किए गए हैं। दस दिन के मातम के बाद ताजियों को दफन करने के साथ मुहर्रम की मजलिसों, सीनाजनी और नौहाख्वानी का समापन हुआ। घरों, चौकियों, इमामबाड़ों व अजाखानों में रात भर सजाकर रखे गए ताजिए जुलूस के रूप में कर्बला पहुंचे। ताजियों को दफनाने का सिलसिला कर्बला में हुआ।
शांतिपूर्ण रहा मुहर्रम
वही दूसरी ओर जिले भर में मुहर्रम के शांतिपूर्ण निपटने से जिला एवं पुलिस प्रशासन ने राहत की सांस ली है। संवेदनशील स्थानों पर तथा ताजिए के जुलूस को लेकर आपात स्थितियों से निपटने के लिए प्रशासन ने पूरी तैयारी कर रखी थी। ख़बर लिखे जाने तक कहीं से किसी अप्रिय घटना या विवाद की सूचना नहीं आयी। बड़ी संख्या में पुलिस बल की तैनाती और सतर्कता बरतने के निर्देश का कड़ाई से अमल किया गया।
@संदीप चन्द्र