नई दिल्लीः केन्द्र सरकार ने बीते दिनों ऐतिहासिक फैसला लेते हुए जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 के प्रावधान हटाने का फैसला किया है। सरकार के इस फैसले पर कई लोगों ने खुशी का इजहार किया है, वहीं कुछ लोग ऐसे भी हैं जो सरकार के इस फैसले का विरोध कर रहे हैं। विरोध कर रहे लोगों में पूर्व केन्द्रीय मंत्री यशवन्त सिन्हा भी शामिल हैं। द इंडियन एक्सप्रेस में छपे एक लेख में यशवन्त सिन्हा ने सरकार के फैसले पर नाराजगी जाहिर की है।
यशवन्त सिन्हा ने लिखा कि जम्मू कश्मीर से आर्टिकल 370 हटाने का भाजपा का एजेंडा जनसंघ के दौर से रहा है। लेकिन साल 1998 से 2004 की अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में इसे जारी नहीं रखा गया। इसके अलावा वाजपेयी की जम्मू कश्मीर पॉलिसी आज के समय की संकीर्ण, सांप्रदायिक पॉलिसी से अलग थी। उनकी पॉलिसी इंसानियत, कश्मीरियत और जम्हूरियत पर आधारित थी, ऐसे में उनकी यह पॉलिसी आर्टिकल 370 हटाने के फैसले के आड़े आ रही थी।
वाजपेयी जम्मू कश्मीर मसले पर सभी पक्षों से बातचीत करने के पक्ष में थे। वह इसमें हुर्रियत को भी शामिल करना चाहते थे और शांति और बातचीत के जरिए कश्मीर समस्या का हल निकालना चाहते थे। सिन्हा के अनुसार, साल 2014 में केन्द्र में मोदी सत्ता पर काबिज हुए। वहीं उसी साल नवंबर-दिसंबर में जम्मू कश्मीर में विधानसभा चुनाव हुए। इन चुनावों में किसी भी पार्टी को पूर्ण बहुमत नहीं मिला।
क्षेत्रीय विरोधी पार्टियां होने के चलते पीडीपी और एनसी में गठबंधन नहीं हो सका। इसी बीच भाजपा ने उस घटना में अपने लिए अवसर तलाशते हुए जम्मू कश्मीर में पीडीपी के साथ गठबंधन में सरकार ली। हालांकि इसके लिए दोनों पार्टियों के बीच बाकायदा एक समझौता हुआ। इस समझौते के तहत दोनों पार्टियां इस बात पर सहमत हुई कि ‘राज्य के लोगों की सामाजिक-राजनैतिक इच्छाओं में बहुत अंतर है और सिर्फ आर्थिक विकास राज्य में शांति और समृद्धि नहीं ला सकता। ऐसे में जम्मू कश्मीर के मुद्दे पर बातचीत के लिए आपसी समझ विकसित करना जरुरी है।’
यशवन्त सिन्हा अपने लेख में सवाल उठाते हुए लिखते हैं कि आज वो शब्द-वादे कहां हैं? बातचीत के लिए किए गए वादे कहां हैं? भाजपा सदस्य विपक्ष से पूछ रहे हैं कि जम्मू कश्मीर में कौन पक्ष है? वो उनसे क्यों पूछ रहे हैं बल्कि सरकार से पूछें कि वह जब इस मुद्दे पर बातचीत कर रही थी तो किनसे कर रही थी? आर्टिकल 370 हटाने के सरकार ने जो कमिटमेंट किया था, उसका क्या हुआ?
सिन्हा ने कहा कि जम्मू कश्मीर का पुनर्गठन और उसे केन्द्र शासित प्रदेश बनाना कभी भी भाजपा का एजेंडा नहीं था। सिन्हा ने बताया कि अगस्त 2015 में सरकार ने नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नागालैंड के साथ समझौता किया था। इस समझौते की शर्तों को लेकर संसद या लोगों को भरोसे में नहीं लिया गया। समझौते के तहत नगा मिश्रित संप्रभुत्ता की शर्त पर मान गए हैं, लेकिन यह मिश्रित संप्रभुता क्या है?
सिन्हा ने सवाल उठाते हुए कहा कि यदि सरकार को नागालैंड के साथ मिश्रित संप्रभुत्ता के मुद्दे पर बातचीत करने में कोई परेशानी नहीं है तो फिर कश्मीरियों के साथ ऐसी बातचीत क्यों नहीं हो सकती? सिन्हा ने लिखा कि मुझे कश्मीरियों के लिए दुख हो रहा है। मैं उन्हें बताना चाहता हूं कि भारत में अभी भी कुछ लोग हैं जो बातचीत में विश्वास रखते हैं।