युवा किसी भी देश का भविष्य होता है,आने वाले समय में उसे देश की कमान संभलनी होती है.युवाओं में हर परिस्थितियों से निपटने का सामर्थ्य होता है,देश का कर्णधार होता है.परन्तु आज ये शब्द लिखते हुए वो उत्साह नहीं आ रहा,जो पहले आता था.समय के साथ इन सब शब्दों के मायने बदल गये हैं.किसी ने भी इस बात की परिकल्पना भी नहीं की होगी कि हमारे ही देश के शिक्षित युवा अपने ही देश के खिलाफ ऐसे जहर उगलेंगे जिसको सुनकर सीना ठिठुर जा रहा है.देश में जब भी कोई क्रांति हुई है.उसमे युवाओं की महती भूमिका रही है.लेकिन आज की परिस्थिति बिल्कुल विपरीत है,ये वक्त विरोध का है का है.परन्तु विरोध पर नकारात्मकता हावी है ,विरोध पहले भी होता था,किंतु वो सकारात्मक विरोध सियासत की कुर्शी को उसकी शक्ति के एहसास कराने के लिए होता था.ये नकारात्मक विरोध विक्राल रूप धारण कर राष्ट्रद्रोह की श्रेणी में खड़ा है.इसके जिम्मेदार कौन है? आज शिक्षण संस्थानों में नक्सली व अलगाववादी विचारधारा पाँव पसार रही है, जो राष्ट्र विरोधी कदम उठाने के लिए छात्रों को उकसा रही है.इसे पोषित करने वाले विश्वविद्यालयों में सबसे ऊपर जेएनयू खड़ा है.इसमें कोई दोराय नही कि छात्र राजनीति ने देश को कई राजनेता दिए है,जो आज देश के कई राज्यों में सत्ता पर आसीन है.मगर अब छात्र राजनीति सियासत के हथकंडे के रूप में कार्य करने लगी है,जिससे स्थिति भयावह हो गई है.वर्तमान समय में छात्र राजनीति ने पूरी तरह से अपने कलेवर को बदल लिया है.
देश के युवा राजनीति तो कर रहें हैं लेकिन, राजनीतिक विमर्श करने में इनकी रूचि नहीं है,जिससे ये स्थिति उत्पन्न हुई है.हर विचारधारा के छात्र सगठन अपने झंडाबरदार को आगे रखने की चेष्टा कर रहें हैं,उनकी चेष्टा का ये रास्ता हिंसा से होकर गुजर रहा है,वैचारिक द्वन्द के इस युग में देश पीछे छुटता जा रहा है,राजनीति कर रहे छात्रों का इस्तेमाल हमारे सियासतदान अपने राजनीतिक स्वार्थ के लिए कर रहें हैं,इसका एक सच ये भी है कि अब छात्र राजनीति से अब कोई बड़ा नेता निकल कर नहीं आ रहा है,जो समाज से सरोकार रखता हो,छात्र राजनीति का मुख्य केंद्र छात्रों की समस्याओं के लिए संघर्ष करना होता है. हुकुमत तथा संस्थान प्रशासन से छात्र हितों की पूर्ति के लिए तथा अपनी मांगो को लेकर संघर्ष करना होता है.परन्तु आज छात्र संगठन अपने मुख्य उद्देश्य से भटक गये हैं.
उनकी राजनीतिक स्थिति आज क्या है ये बात भी जगजाहिर है.ये इसलिए क्योंकि छात्रो का अपने मूल उद्देश्य से भटकना देश के भविष्य के लिए किसी बड़े खतरे से कम नहीं हैं.बीते सप्ताह ऐसी घटनाएँ सामने आई जो देश की एकता व अखंडता के लिए घातक है.देश के नामचीन विश्वविद्यालयों में से एक जेएनयू में वामपंथी छात्र संघठनो द्वारा हमारे लोकतंत्र के मंदिर ससंद पर हमला करने वाले आतंकी अफजल गुरु की बरसी पर कार्यक्रम आयोजित करता है तथा भारत विरोधी नारें लगाता है.इससे बड़ी विडम्बना और क्या हो सकता है.जिसे देश की सबसे बड़ी अदालत ने आतंकी घोषित कर फांसी की सज़ा सुनाई हो उसकी याद में किसी शिक्षण संस्थान में कार्यक्रम आयोजित किया जा रहा हो,खैर इस घटना की जितनी निंदा की जाए कम है. केंद्र सरकार के दखल के बाद प्रशासन ने सक्रियता दिखाते हुए जेएनयू अध्यक्ष समेत कई छात्रों को गिरफ्तार किया है.परन्तु महज गिरफ्तारियों से कुछ नही होने वाला ,देशद्रोह की बात करने वाले हर व्यक्ति को कड़ी से कड़ी सज़ा दी जाए.देश में रहकर देश विरोधी नारे लगाने वाले किसी भी व्यक्ति को बख्शा नही जाना चाहिए.पुलिस ने अनाम छात्रो के ऊपर मुकदमा किया है.किंतु,देश विरोधी नारे लगाने वालें छात्रों की पहचान प्राप्त वीडियो में स्पष्ट रूप से की जा सकती है.छात्र अध्यक्ष की गिरफ्तारी के बाद वामपंथी नेताओं ने जो रुख अख्तियार किया है.ये भी चिंताजनक है,गिरफ्तारी का विरोध करने वालें वामपंथी तथा कथित सेकुलरों को ये समझना चाहिएं कि सवाल किसी विचारधारा का नही बल्कि देश का है.इसके बावजूद वामपंथी नेता देश विरोधी नारे लागने वालों के पक्ष में खड़े दिख रहें है.
गिरफ्तारी का विरोध कर रहें है.ऐसे में सवाल उठता है कि क्या देश के कथित बौद्धिक वामपंथियो ने ऐसे कार्यक्रमों पर अपनी सहमती दे रहें है ? ऐसे आयोजन देश की एकता अखंडता के लिए किसी भी सूरतेहाल में सही नहीं है.इस प्रकार के कार्यक्रम देश की आत्मा पर चोट पहुंचाते है. आखिर इन छात्रो की मंशा क्या है? कैसी आज़ादी चाहतें है ये छात्र ? दरअसल ये पहली बार नहीं है जब ये इस प्रकार से राष्ट्र विरोधी कार्यों में बढ़चढ़ के हिस्सा लिया हो.समय-समय पर ये राष्ट्र को कमजोर करने वाले,देश की संप्रभुता को चोट पहुँचाने वाले कार्यक्रम करते रहते हैं.समूचे देश में अभिव्यक्ति की स्वंत्रता को लेकर बहस छिड़ी हुई है. सबसे ज्यादा वामपंथी विचारधारा के लोग अपना विरोध दर्ज कराते हुए सरकार पर आरोप लगा रहें हैं कि जब से मोदी सरकार आई है,आपातकाल जैसे हालात देश के हो गये हैं,यहाँ बोलने की आज़ादी नहीं है,विरोध करने की आज़ादी नहीं है.एक स्थिति यह भी है कि ये उसी विचारधारा के पैरोकार है,जो देश में लगे आपातकाल के समय मौन थे.अभिव्यक्ति की आज़ादी का कवच पहन देशद्रोह का नारा लगाना अराजकता की पराकाष्ठा है.इसकी जितनी भर्त्सना की जाए कम है.
बहरहाल,देश के संविधान ने सभी को सरकार का विरोध करने का हक दिया है,राजनीतिक पार्टियों के खिलाफ बोलने की आज़ादी हमारे संविधान ने दी है.लेकिन देश के प्रति जहर उगलने की आज़ादी भारतीय संविधान नही देता .विरोध का तरीका न्यायसंगत होना चाहिएं ,सरकार किसी की भी हो आप उसकी नीतियों, उसके कार्यशैली का विरोध करने के लिए स्वतंत्र है.परन्तु जब बात भारत के विरोध की आयेगी तो यह मामला देश द्रोह का होता है.छात्रो ने ये करतूत करते हुए अपनी लज्जा किस ताख पर रख दी थी कि हम उसी देश के खिलाफ आवाज उठा रहें हैं ,जो देश हमारे आवश्यकताओं की पूर्ति करता है,इसी देश की सरकार हमें सुरक्षा की गारंटी देती है.बहरहाल,देश हित के खिलाफ आवाज़ उठाने वाले हर उस आस्तीन के सापों का फन कुचल देना चाहिएं,भारत जैसे लोकतांत्रिक और सहिष्णु देश में देश के प्रति नफरत का भाव रखने वाली किसी भी व्याक्ति या विचारधारा के लिए कोई जगह नही है.सरकार को भी ऐसे मसलो पर शख्त व त्वरित कार्यवाही करनी चाहिएं जिससे आने वाले दिनों में कोई भी व्यक्ति देश के विरोध में बोलने की हिम्मत न कर सकें.
:- आदर्श तिवारी
लेखक :- आदर्श तिवारी (स्वतंत्र टिप्पणीकार )
माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं जनसंचार विश्वविद्यालय भोपाल
के विस्तार परिसर “कर्मवीर विद्यापीठ” में जनसंचार के छात्र है ।
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