अमेठी- उत्तर प्रदेश में गांधी गढ़ माने जाने वाली अमेठी का नाम सुनते ही जेहन में तमाम सियासी तकरारों के बीच भी विकास की ऐसी तस्वीर उभरती है कि लगता है कि यहां सबकुछ दुरुस्त होगा, लेकिन जमीनी हकीकत ऐसी है नहीं कहने सुनने व समझने में भले ही यह बात अटपटी लगे, पर है सोलह आने सच। यहां बिना हाथ-पांव के ही विकास धरातल पर उतरने की कोशिश कर रहा है। सरकार बनती है तो तमाम योजनाओं को आरंम्भ करने की घोषणा की जाती है। सत्ता जाती है योजनाएं अन्यत्र स्थापित करने की कवायद शुरू हो जाती है, फिर परियोजनाएं स्थानांतरित हो जाती हैं।
अमेठी अपने विकास के लिए आसू बहाती रह जाती है आजादी के पहले अमेठी एक रियासत थी। इस रियासत ने देश और प्रदेश में अपनी अलग पहचान स्थापित कर रखा था। देश के आजादी के पहले और आजादी के बाद अमेठी रियासत हमेशा सुर्खियों में रही है। आजादी के पहले अमेठी रियासत ने अंग्रेजों के खिलाफ मोर्चा लिया था। आजादी के बाद पण्डित जवाहर लाल नेहरू रियासत के काफी करीब रहे हैं।
नेहरू ने अमेठी रियासत से ही वकालत की शुरुआत की थी। तो 1977 में कांग्रेस के तेज तर्रार नेता संजय गांधी को लाने का श्रेय भी इसी परिवार को जाता है 1977 में संजय गांधी चुनाव हार गए। संजय गांधी के बाद मेनिका गांधी परिवार से बगावत कर यहां से चुनाव लड़ी। उन्हें भी हार का सामना करना पड़ा। फिर राजीव गांधी ने अपना क्षेत्र अमेठी बनाया। उसके बाद अमेठी राजीव गांधी के बचपन के दोस्त कैप्टन सतीश शर्मा का क्षेत्र रहा। जो अब कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और उपाध्यक्ष राहुल गांधी का क्षेत्र है, लेकिन अमेठी विकास का बाट जोहती रही। विकास की बात करें तो क्षेत्र की स्थित वैसी की वैसी है।
धरती पुत्र ‘किसानों’ की अमेठी में हो रही अनदेखी-
उत्तर प्रदेश अमेठी में विकास का रथ बहुत वर्षों से रूका पड़ा है देश की राजनीति में ‘राजनीति शिरोमणि’ और सूफी संतों की धरती अमेठी कृषि के मामले में भी धनाढ्य है। इसके बावजूद यहां खेतों से अमूमन दो तीन ही फसलें ली जाती हैं रंजीतपुर निवासी किसान भगवानदीन मिश्र कि आज भी अमेठी के किसानों को समय पर खाद-पानी नहीं मिलता और फसल जब तैयार होती है तो उसका उचित मूल्य नहीं मिल पाता गेहूं और धान के खरीद केन्द्र खोले जरूर जाते हैं लेकिन वहां किसानों की उपज नहीं खरीदी जाती बल्कि बिचौलिये किसानों से औने-पौने दाम पर उपज खरीद कर सरकारी न्यूनतम मूल्य प्राप्त कर लेते हैं।
बड़े किसानों के सामने उतनी समस्या नहीं होती है जितनी लघु सीमांत किसानों को क्योंकि बड़े किसानों के पास अपने संसाधन होते हैं और दैवी आपदा से यदि उनकी एक फसल बर्बाद हो गयी तो कोई बड़ा झटका नहीं लगता लेकिन जिसके पास थोड़ी जमीन है और उसमें अच्छी फसल उगाने के लिए उसने कर्ज लेकर खाद डाली, सिंचाई के पैसे दिये और वही फसल सूख गयी अथवा बारिश-ओलों की भेंट चढ़ गयी तो वह किसान तो पूरी तरह बर्बाद ही हो जाता है। ऐसे ही किसान कभी-कभी परेशान होकर आत्महत्या तक कर लेते हैं सरकार यदि ऐसे किसानों के बारे में सहानुभूति रखे तो उनका कष्ट कुछ कम किया जा सकता है।
कृषि के साथ ही पशुपालन और दुग्ध विकास को बढ़ावा देने की बात भी गांवों के विकास के लिए जरूरी है पहले गांवों में दिन ढलने के समय चारागाहों से लौटती गाएं और भैंसें एक मनमोहक दृश्य उपस्थित करती थीं अब गांवों में पशुओं की संख्या सीमित हो गयी है। उत्तर प्रदेश में पशुधन की संख्या में अभूत पूर्व गिरावट आयी है इसका एक कारण पशुओं की अवैध तस्करी भी है ।
स्वास्थ्य और शिक्षा का अभाव-
अमेठी में एक मेडिकल कॉलेज, एक ट्रामा सेंटर और विश्वविद्यालय के लिए तरस रहा है। अमेठी से राजीव गांधी चुनाव जीतकर प्रधानमंत्री रहे तो, संजय गांधी, संजय सिंह, कैप्टन शर्मा, प्रधानमंत्री के बहुत नजदीक रहे, समाजसेवी इक़बाल हैदर बताते है कि अमेठी की जनता को चिकित्सा सुविधाओं के लिए आज भी बहुत दूर जाना पड़ता है। मरीजों को इलाज के लिए लखनऊ, फैजाबाद, इलाहाबाद पहुंचते-पहुंचते जान तक गवांना पड़ता है। क्षेत्रवासियों ने कई बार प्रयास किया लेकिन अमेठी में ट्रामा सेंटर मेडिकल कॉलेज नहीं खुल सका।
अमेठी में अक्सर जिन्हें नेतृत्व करने का अवसर दिया वह प्रधानमंत्री और मंत्री बनाये गये, लेकिन अपनी अमेठी को एक मेडिकल कॉलेज, ट्रामा सेंटर और चिकित्सा विश्वविद्यालय नहीं दे सके। यहां स्वास्थ्य और शिक्षा क्षेत्र में बहुत पिछड़ा हुआ है। सैफई या अन्य वीआईपी क्षेत्र के नेताओं के क्षेत्रों जैसी जैसी सुविधाएं अमेठी में नहीं है। यहां सीएचसी-पीएचसी में डॉक्टर नहीं रहते। सोनिया गांधी ने प्रधानमंत्री का पद छोड़ कर के दूसरे को दे दिया, लेकिन वह भी अमेठी की मूलभूत जरूरत को पूरा नहीं कर पाये स्मृति ईरानी जो अमेठी से बहुत लगाव रख रही हैं, वह भी साड़ियां बांट कर चली जाती हैंं।
मानव संसाधन विकास मंत्रालय उनके पास रह चुका है। वह भी चाहती तो अपने मंत्रालय के द्वारा यहां पर विश्वविद्यालय खोल सकती थी, लेकिन उन्होंने भी ऐसा नहीं किया। अमेठी को मेडिकल कॉलेज और बच्चों को पढ़ने के लिए विश्वविद्यालय चाहिये। कहने को तो दो केंद्रीय विद्यालय है, लेकिन वह बीएचएल और एएचएल के लिए है। केंद्रीय विद्यालयों की घोषणा की गयी है, लेकिन अभी कागजों पर ही है। जब की कान्वेंट स्कूलों में आम जनमानस अपने बच्चों को भेज पाने में सक्षम ही नहीं है।
रोजगार के अवसर-
अमेठी में 1980 के दशक में कई कल-कारखाने की स्थापना की गयी। जो सब्सिडी मिलने के बाद कांग्रेस की केंद्र में सरकार न होने के दंश के चलते बन्द हो गए। यहां पर स्थापित ज्यादातर बड़े कारखाने सम्राट साईकिल, उषा इलेक्ट्रिकल, मालविका स्टील लिमटेड बन्द होकर जर्जर स्थित में ढांचा मात्र रह गए हैं। इसके अलावा छोटे बड़े कारखाने सैकड़ां की संख्या में बन्द पड़े हैं। इनके पुनर्स्थापना के लिए केंद्र और राज्य सरकार द्वारा कोई सार्थक पहल नहीं की जा रही है। अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के प्रदेश मंत्री अरुण मिश्र का कहना है कि आज हजारों की संख्या में लोग बेरोजगार हो गये है जिसके कारण ये बेरोजगार अन्य प्रदेशों में रोजगार के लिए पलायन कर रहे हैं। पलायन करने के कारण अमेठी का मतदान प्रतिशत हमेशा कम रहता है ।
सड़के बदहाल-
अमेठी क्षेत्र की ज्यादा तर सड़के 1980 की दशक की बनी हैं। जर्जर हो चुकी सड़कें मरम्मत की बाट जोह रही है मरम्मत के अभाव में सड़कों की जगह पगडंडी नजर आने लगी है। उनपर अब बड़े-बड़े गड्ढे नजर आते हैं। जिन पर चलना मुश्किल है। यही नहीं यहां पर एनएच 56 राष्ट्रीय राजमार्ग में बड़े-बड़े गड्ढे की वजह से अक्सर बड़ी दुर्घटनाएं होती रहती हैं, लेकिन प्रशासनिक उपेक्षाओं के चलते कई वर्षों से दुरुस्त नही किया जा रहा है। कस्थुनी पूरब पूरे बखत निवासी अलीम खान कि लोहिया समग्र ग्राम चयनित होने के बाद भी हमारे गाँव सड़क शौचालय जैसी बुनियादी सुविधाओं से महरूम है ।
रिपोर्ट- @राम मिश्रा