नई दिल्ली [ TNN] गंभीर सूखे और सूखे जैसे हालात या अभाव से निपटने के लिए, केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्री नितिन गडकरी ने आदेश दिया है कि जिला स्तर पर एजेंसीज द्वारा लिए जाने वाले श्रमिकों में से 50 फीसदी को चेक डेम संरक्षण, पारंपरिक जल स्रोतों, छोटे तालाबों और नहरों से गाद निकालने के काम में लगाया जाएगा। यह निर्णय संदस सदस्यों और स्थानीय जन प्रतिनिधियों द्वारा महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) को भ्रष्टाचार का गढ़ कहे जाने के बाद लिया गया। मनरेगा के बारे में कहा जाने लगा था कि इस ग्रामीण रोजगार योजना से किसी प्रकार की उत्पादक संपत्ति का निर्माण नहीं हो रहा है।
एक प्रेस विज्ञप्ति के जरिए मंत्री ने स्पष्ट किया है कि इस प्रकार के कार्यों के लिए दिहाड़ी श्रमिकों और मशीनरी के संयोजन की आवश्यक होती है। इसमें कुशल घटकों की भागीदारी 49 फीसदी तक बढ़ गई है। कुशल भागीदारी को 40 प्रतिशत से बढ़ाकर 49 प्रतिशत किए जाने का प्रावधान राज्यों को अधिकार संपन्न बनाता है। यदि वे चाहें तो चेक डेम, छोटे सिंचाई तालाबों का काम मशीन से कर सकते हैं और बाकी 51फीसदी का भुगतान वो दिहाड़ी मजदूरी के रुप में कर सकते है।
मंत्री ने आगे कहा कि यदि राज्य कुशल भाग को 40 फीसदी तक सीमित रखना चाहते हैं तो वे ऐसा करने के लिए स्वतंत्र हैं। संसद सदस्यों और जल संरक्षण से जुड़े राजेंद्र सिंह और पोपट राव पंवार जैसे गैर सरकारी संगठनों के कार्यकर्ताओं ने इन बदलावों का स्वागत किया है। उनका कहना है कि मनरेगा में इस प्रकार के बदलावों के जरिए जल संरक्षण के लिए ढ़ांचा विकसित होगा जो सूखे और जल संकट से निपटने में मदद करेगा।
मंत्री ने ग्रामीण विकास मंत्रालय को निर्देश दिया है कि राज्य सरकारों को किए जाने वाले सभी कोष हस्तांत्रण ई-पेमेंट प्लेटफॉर्म के जरिए समय से किए जाएं जिससे कि मजदूरी के भुगतान में एक सप्ताह से अधिक की देरी नहीं हो।