संभावनाएं जताई जा रही थी कि राजस्थान में खड़े हुए राजनीतिक संकट पर कांग्रेस अध्यक्ष के चुनाव के बाद फैसला लिया जाएगा, लेकिन अब नेता हिमाचल प्रदेश और गुजरात चुनाव में व्यस्त नजर आ रहे हैं।
कांग्रेस के नए अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे कमान संभाल चुके हैं, लेकिन राजस्थान मसले का हल निकाला जाना बाकी है। इसी बीच मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और पूर्व उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट के बीच नया तनाव खड़ा होता दिख रहा है। अब पायलट ने गहलोत पर निशाना साधा है, जिससे सियासी चर्चाएं तेज हो गई हैं। कहा जा रहा है कि खड़गे की तरफ से जवाब नहीं मिलने के चलते अब पायलट खेमा भी अंतिम प्रयासों में जुटता नजर आ रहा है।
बुधवार को पायलट ने वरिष्ठ नेता केसी वेणुगोपाल के बयान का जिक्र किया और कहा, ‘राजस्थान से अनिर्णय का माहौल खत्म करने का समय आ गया है।’ 29 सितंबर को वेणुगोपाल ने कहा था कि तत्कालीन अध्यक्ष सोनिया गांधी दो दिनों में राजस्थान के मुख्यमंत्री की उम्मीदवारी के बारे में फैसला लेंगी। पायलट की संभावित उम्मीदवारी की खबरों के बीच कांग्रेस अध्यक्ष चुनाव से पहले गहलोत समर्थक कहे जा रहे राजस्थान विधायकों ने इस्तीफे की पेशकश कर दी थी।
इस दौरान पायलट ने 25 सितंबर को आयोजित विधायक दल की बैठक का कथित तौर पर बहिष्कार करने वाले विधायकों के खिलाफ भी कार्रवाई की मांग की। कांग्रेस ने शांतिलाल धारीवाल, महेश जोशी और धर्मेंद्र राठौर के खिलाफ नोटिस जारी किए थे।
पूर्व उपमुख्यमंत्री ने कहा, ‘कांग्रेस एक पुरानी पार्टी और समान नियम और अनुशासन सभी पर लागू होते हैं। पार्टी की तरफ से राजस्थान में नियुक्त किए गए पर्यवेक्षकों ने पहले ही अपनी बात कह दी है और तीन विधायकों को नोटिस भी मिल गए हैं। लेकिन अब समय आ गया है कि कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे इस मामले में जल्द से जल्द फैसला लें। मुझे उम्मीद है कि वह ऐसा करेंगे।’
शांत रहे पायलट क्यों फूट पड़े?
वेणुगोपाल की बात को एक महीने से ज्यादा का समय हो चुका है। संभावनाएं जताई जा रही थी कि इस मामले पर अध्यक्ष के चुनाव के बाद फैसला लिया जाएगा, लेकिन अब नेता हिमाचल प्रदेश और गुजरात चुनाव में व्यस्त नजर आ रहे हैं। इधर, राहुल गांधी भी भारत जोड़ो यात्रा में हैं। ऐसे में बेचैन पायलट एक बार फिर फ्रंट फुट पर आ गए हैं। उन्होंने बयानों से साफ कर दिया है कि वह राजस्थान में मौजूदा स्थिति को बर्दाश्त नहीं करेंगे।
कहा जा रहा है कि पायलट खेमे के लिए गहलोत को सीएम बनाए रखना और पायलट को अगले साल मुख्यमंत्री उम्मीदवार घोषित करना वरिष्ठ नेताओं के प्रति युवाओं का गुस्सा और युवा नेता के प्रति सहानुभूति को दूर कर सकता है। इधर, पायलट कैंप का यह भी मानना है कि अगर कांग्रेस को 30 सालों का चक्र तोड़कर दोबारा सरकार में वापसी करनी है तो बदलाव की जरूरत है और वह बदलाव पायलट को सीएम बनाना है।
एक और संदेश
इस पूरे घटनाक्रम में एक संदेश यह भी नजर आता है कि राज्य में विधानसभा चुनाव में एक ही साल का वक्त रह गया है और पार्टी को सीएम के मुद्दे का निपटारा करना होगा। राज्य में दिसंबर 2023 में चुनाव होंगे। फिलहाल, विधानसभा में कांग्रेस के 106, भारतीय जनता पार्टी के 71, राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी के 3, सीपीआई (एम) के 2, भारतीय ट्राइबल पार्टी के 2, राष्ट्रीय लोक दल का 1 और 13 निर्दलीय विधायक हैं।
खड़गे के लिए क्यों है बड़ी चुनौती?
हाल ही में पार्टी का नेतृत्व संभालने वाले वरिष्ठ नेता के सामने विधानसभा चुनाव के अलावा राजस्थान संकट भी बड़ी चुनौती है। खास बात है कि गहलोत कैंप के विधायकों के इस्तीफे अभी भी स्पीकर सीपी जोशी के पास हैं और जोशी को सीएम का करीबी माना जाता है। अब गहलोत भी सही सियासी दांव खेलने के लिए मशहूर हैं। ऐसे में पार्टी अध्यक्ष को ऐसा हल निकालना होगा जिससे प्रदेश इकाई प्रभावित न हो।
क्यों नहीं मानी गई वेणुगोपाल की बात?
वेणुगोपाल ने पार्टी नेताओं को दल के अन्य नेताओं या आंतरिक मामलों के खिलाफ बोलने से बचने के निर्देश दिए थे। हालांकि, 2 अक्टूबर को ही गहलोत ने पायलट और प्रदेश के तत्कालीन प्रभारी अजय माकन पर बगैर नाम लिए निशाना साधा। 17 अक्टूबर को भी उन्होंने युवा नेता पर इशारों-इशारों में सवाल उठाए और कहा कि अनुभव का कोई विकल्प नहीं है।
अब 2020 में असफल बगावत के बाद पायलट भी जनता के सामने अपने बयानों को लेकर सतर्क रहे, लेकिन बुधवार को उन्होंने बयान से राजनीतिक सरगर्मी बढ़ा दी है।