भाजपा और शिवसेना का गठबंधन बिल्कुल लहूलुहान हो चुका है। इस गठबंधन का चलते रहना अब शर्म की बात है। गुलाम अली और खुर्शीद कसूरी प्रसंगों के समय भी दोनों पार्टियों के बीच तू-तू–मैं मैं हुई थी लेकिन वह किसी तरह धक गई थी और लग रहा था कि वह शिवसेना का तात्कालिक पैतरा था लेकिन अब शिवसेना और भाजपा ने मुंबई के स्थानीय चुनावों में एक-दूसरे के खिलाफ तलवारें खींच ली हैं।
शिवसेना के एक मंत्री ने शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे को अपना इस्तीफा दे डाला और बहाना यह बनाया कि वे पीडब्ल्यूडी मंत्री हैं लेकिन मुख्यमंत्री ने उन्हें हाशिए में डाल रखा है। शिवसेना के अन्य चार मंत्रियों का भी यही आरोप है। वे कहते हैं कि वे सरकार में हैं या नहीं, यही उन्हें मालूम ही नहीं पड़ता। खुद ठाकरे ने चुनौती दी और कहा कि मोदी सरकार अपने आपको क्या समझती है?
इंदिरा गांधी की 1977 में इतनी फजीहत हो गई तो मोदी किस खेत की मूली है। इस समय विधानसभा में भाजपा के 122 और शिवसेना के 63 सदस्य हैं। भाजपा को बहुमत के लिए सिर्फ 22 सीटें चाहिए। ये बड़ी आसानी से शरद पवार की नेशनलिस्ट कांग्रेस दे सकती है। दोनों पार्टियों में बात भी चल रही है। शायद इसीलिए भाजपा के मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़नवीस ने खुले-आम खम ठोक दिए हैं।
उन्होंने कहा है कि शिवसेना गीदड़भभकियां देना बंद करे। यदि देना ही है तो कांग्रेस जैसी मरियल पार्टियों को दे। फड़नवीस ने शिवसेना को आतंकवादी बताया और कहा कि भाजपा के कार्यकत्ताओं ने चूडि़यां नहीं पहन रखी हैं। वे ईंट का जवाब पत्थर से देंगे। शिवसेना अब कोई राजनीतिक पार्टी नहीं रह गई है। यह एक नाटक मंडली बन गई है।
फड़नवीस ने जैसा शाब्दिक हमला शिवसेना पर किया है, वैसा मेरी याद में आज तक किसी ने नहीं किया है। शिवसेना के बड़बोले और घरघुस्सू नेताओं के लिए फड़नवीस के ये कड़वे बोल दस्त लगा देंगे। गठबंधन टूटे, इसकी चिंता नहीं है लेकिन मुझे शंका यही है कि मुंबई में कहीं खून की नदी न बहने लगे।
लेखक:- डॉ. वेदप्रताप वैदिक