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Thursday, March 28, 2024

ऐसे थे मिसाइल मेन, जानिये खास बातें !

apj-abdul-kalamनई दिल्ली- भारत के लोकप्रिय ग्यारहवें राष्ट्रपति डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम को शिक्षक की भूमिका बेहद पसंद थी। उनकी पूरी जिंदगी शिक्षा को समर्पित रही। वैज्ञानिक कलाम साहित्य में रुचि रखते थे, कविताएं लिखते थे, वीणा बजाते थे और अध्यात्म से भी गहराई से जुड़े थे।

कलाम का जन्म 15 अक्टूबर, 1931 को हुआ था। इनके पिता अपनी नावों को मछुआरों को किराए पर देकर अपने परिवार का खर्च चलाते थे। अपनी आरंभिक पढ़ाई पूरी करने के लिए कलाम को घर-घर अखबार बांटने का भी काम करना पड़ा था। कलाम ने अपने पिता से ईमानदारी व आत्मानुशासन की विरासत पाई थी और माता से ईश्वर-विश्वास तथा करुणा का उपहार लिया था।

वह भारत को अंतरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र में दुनिया का सिरमौर राष्ट्र बनना देखना चाहते थे और इसके लिए उन्होंने अपने जीवन में अनेक उपलब्धियों को भारत के नाम भी किया। 27 जुलाई, 2015 को डॉ. कलाम जीवन की अंतिम सांसें लेने से ठीक पहले एक कार्यक्रम में छात्रों से बातें कर रहे थे, वह शायद इसी तरह संसार से विदा होना चाहते होंगे। उनका साफ मानना था कि बच्चे ही देश का भविष्य हैं। अब्दुल कलाम हमेशा देश को दिशा दिखाते रहेंगे। महान वैज्ञानिक होने और देश के राष्ट्रपति बनने के बावजूद एपीजे अब्दुल कलाम में कभी गरूर नहीं आया। उन्होंने हमेशा एक आम आदमी की जिंदगी जीने की कोशिश की। उनकी जिंदगी के ऐसे कई किस्से हैं जो उनकी दरियादिली की छाप छोड़ते हैं।

1. जब मोची और ढाबा मालिक को बनाया मेहमान
डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम साल 2002 में राष्ट्रपति बनने के बाद पहली बार केरल गए थे। उस वक्त केरल राजभवन में राष्ट्रपति के मेहमान के तौर पर दो लोगों को न्योता भेजा गया। जानते हैं कौन थे ये दोनों मेहमान? पहला…मोची और दूसरा…एक छोटे ढाबे का मालिक. दरअसल कलाम ने काफी दिनों तक केरल की राजधानी तिरुवनंतपुरम में रहे थे. तभी से उनकी सड़क पर बैठने वाले मोची से जान पहचान हो गई थी। उस दौरान अक्सर वो एक ढाबे में खाना खाने जाया करते थे. राष्ट्रपति बनने के बाद भी डॉ कलाम इन्हें नहीं भूले…और जब मेहमानों बुलाने की बारी आई तो कलाम ने उन दोनों को खासतौर से चुना।

2. ट्रस्ट को दान कर देते थे अपनी पूरी तन्ख्वाह
डॉ कलाम ने कभी अपने या परिवार के लिए कुछ बचाकर नहीं रखा. राष्ट्रपति पद पर रहते ही उन्होंने अपनी सारी जमापूंजी और मिलने वाली तनख्वाह एक ट्रस्ट के नाम कर दी। प्रोवाइडिंग अर्बन एमिनिटीज टू रुरल एरियाज ..यानी PURA नाम का ये ट्रस्ट देश के ग्रामीण इलाकों में बेहतरी के लिए काम में जुटा हुआ है. अमूल के संस्थापक और देश में श्वेत क्रांति लाने वाले डॉ वर्गीज कुरियन ने इस बारे में डॉ कलाम से पूछा …तो उनका जवाब था ‘चूंकि मैं देश का राष्ट्रपति बन गया हूं, इसलिए जबतक जिंदा रहूंगा सरकार मेरा ध्यान आगे भी रखेगी ही। तो फिर मुझे तन्ख्वाह और जमापूंजी बचाने की क्या जरूरत. अच्छा है कि ये भलाई के काम आ जाएं।

3. जूनियर वैज्ञानिक व्यस्त था तो उसके बच्चे को खुद प्रदर्शनी ले गए
डॉ कलाम जब DRDO के डायरेक्टर थे…बात तब की है. अग्नि मिसाइल पर काम चल रहा था. काम का दवाब काफी थी। उसी दौरान एक दिन एक जूनियर वैज्ञानिक ने डॉ कलाम से आकर कहा कि ‘मैंने अपने बच्चों से वादा किया है कि उन्हें प्रदर्शनी घुमाने ले जाऊंगा. इसलिए आज थोड़ा पहले मुझे छुट्टी दे दीजिए। कलाम ने खुशी-खुशी हामी भर दी। उस दिन वो जूनियर वैज्ञानिक काम में ऐसा मशगूल हुआ कि उसे प्रदर्शनी जाने की बात याद ही नहीं रही. जब वो रात को घर पहुंचा तो ये जानकर हैरान रह गया कि डॉ कलाम वक्त पर उसके घर पहुंच गए और बच्चों को प्रदर्शनी घुमाने ले गए…ताकि काम में फंसकर उसका वादा न टूटे।

4. मंच पर बड़ी कुर्सी पर बैठने से मना किया
देश के सर्वोच्च पद पर पहुंचने के बाद भी डॉ कलाम को गुरूर कभी छू नहीं पाया था। साल 2013 का किस्सा सुन लीजिए। IIT वाराणसी में दीक्षांत समारोह के मौके पर उन्हें बतौर मुख्य अतिथि आमंत्रित किया गया था। कार्यक्रम में मंच पर 5 कुर्सियां लगाई गई थीं, जिसमें बीच वाली कुर्सी पर डॉ कलाम को बैठना था। लेकिन वहां मौजूद हर शख्स उस वक्त हैरान रह गया जब कलाम ने बीच वाली कुर्सी पर बैठने से मना कर दिया। वजह थी बीच वाली कुर्सी बाकी चार कुर्सियों से बड़ी थी। कलाम बैठने के लिए तभी राजी हुए जब आयोजकों ने बड़ी कुर्सी हटाकर बाकी कुर्सियों के बराबर की कुर्सी मंगवाई।

5. DRDO की दीवारों पर कांच लगाने से मना किया
डॉ कलाम कितने संवेदनशील थे इसका वाकया DRDO में उनके साथ काम कर चुके लोग बताते हैं। 1982 में वो DRDO यानी भारतीय रक्षा अनुसंधान एवं विकास संस्थान में डायरेक्टर बनकर आए थे। DRDO की सुरक्षा को और पुख्ता करने की बात उठी। उसकी चारदीवारी पर कांच के टुकड़े लगाने का प्रस्ताव भी आया. लेकिन कलाम ने इसकी सहमति नहीं दी। उनका कहना था कि चारदीवारी पर कांच के टुकड़े लगे..तो उस पर पक्षी नहीं बैठ पाएंगे और उनके घायल होने की आशंका भी बढ़ जाएगी। उनकी इस सोच का नतीजा था कि DRDO की दीवारों पर कांच के टुकड़े नहीं लगे।

6. VIP तामझाम छोड़ रात में ही छात्रों के बीच पहुंचे
एक बार डॉ कलाम को एक कॉलेज के कार्यक्रम में बतौर मुख्य अतिथि शरीक होना था। उस वक्त तक वो राष्ट्रपति तो नहीं बने थे लेकिन डीआरडीओ में एक बड़े पद पर थे और सरकार के सलाहकार भी थे। कार्यक्रम से एक दिन पहले रात में ही कलाम को कार्यक्रम की तैयारी देखने का इच्छा हुई। वो बिना सुरक्षा लिए ही जीप में सवार होकर कार्यक्रम की जगह पहुंच गए और वहां मौजूद छात्रों से बात की। VIP तामझाम से उलट डॉ कलाम के इस अंदाज ने छात्रों का दिल जीत लिया।

7. बिजली गुल हुई तो छात्रों के बीच जाकर भाषण दिया
साल 2002 की बात है. डॉ कलाम का नाम अगले राष्ट्रपति के रूप में तय हो चुका था. उसी दौरान एक स्कूल ने उनसे छात्रों को संबोधित करने की गुजारिश की. बिना सुरक्षा तामझाम के डॉ कलाम उस कार्यक्रम में शरीक हुए। 400 छात्रों के सामने वो भाषण देने के लिए खड़े हुए ही थे कि बिजली गुल हो गई। आयोजक जबतक कुछ सोचते…डॉ कलाम छात्रों के बीच पहुंच गए…और बिना माइक के अपनी बात रखी और छात्रों के सवालों का जवाब दिया।

8. जब कलाम ने हाथ से बनाकर भेजा ग्रीटिंग कार्ड
डॉ कलाम दूसरों की मेहनत और खूबियों को तहेदिल से सराहते थे और अपने हाथों से थैंक्यू कार्ड बनाकर ऐसे लोगों को भेजा करते थे. डॉ कलाम जब राष्ट्रपति थे. उस दौरान नमन नारायण नाम के एक कलाकार ने उनका स्केच बनाया और उन्हें भेजा। नमन के पास जब राष्ट्रपति डॉ कलाम का हाथ से बना थैंक्यू कार्ड और संदेश पहुंचा…तो वो भौंचक्के थे। उन्हें उम्मीद नहीं थी कि देश के महामहिम इस तरह दोस्ताना अंदाज में उन्हें शाबासी देंगे।

9. IIM अहमदाबाद की कहानी
डॉ कलाम में एक बड़ी खूबी ये थी कि वो अपने किसी प्रशंसक को नाराज नहीं करते थे। बात पिछले साल की है। डॉ कलाम IIM अहमदाबाद के एक कार्यक्रम में मुख्य अतिथि बनकर गए। कार्यक्रम से पहले छात्रों ने डॉ कलाम के साथ लंच किया और छात्रों की गुजारिश पर उनके साथ तस्वीरें खिंचवाने लगे। कार्यक्रम में देरी होता देख आयोजकों ने छात्रों को तस्वीरें लेने से मना किया। इस पर कलाम ने छात्रों से कहा कि ‘कार्यक्रम के बाद मैं तबतक यहां से नहीं जाऊंगा जब तक आप सबों के साथ मेरी तस्वीर न हो जाए। ’ ऐसे थे डॉक्टर कलाम।

10. मां की जली रोटी पर पिता के व्यवहार ने दी सीख
मिलने आने वाले बच्चों को डा. कलाम अक्सर अपने बचपन का एक किस्सा बताया करते थे। किस्सा तब का है जब डॉ कलाम करीब आठ-नौ साल के थे। एक शाम उनके पिता काम से घर लौटने के बाद खाना खा रहे थे। थाली में एक रोटी जली हुई थी। रात में बालक कलाम ने अपनी मां को पिता से जली रोटी के लिए माफी मांगते सुना तब पिता ने बड़े प्यार से जवाब दिया- मुझे जली रोटियां भी पसंद हैं। कलाम ने इस बारे में पिता से पूछा तो उन्होंने कहा- जली रोटियां किसी को नुकसान नहीं पहुंचाती हैं, कड़वे शब्द जरूर नुकसान पहुंचाते हैं. इसलिए रिश्तों में एक दूसरे की गलतियों को प्यार से लो…और जो तुम्हें नापसंद करते हैं, उनके लिए संवेदना रखो।




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