दमोह [ TNN ] जब कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक भाजपा की हवा तेज गति से बह रही हो। नमो के रंग में देश ही नहीं विश्व रंग गया हो,शिव के प्रति जमकर विश्वास जनता में लगातार बना हो और एैसे अच्छे वातावरण में भी भाजपा को जिले में पांच में से सिर्फ एक पर सफलता मिले तो प्रश्र उठना तो लाजमी है? आखिर एैसा कौन सा वह बांध,या रोडा है जिसने उसकी जीत की लहर या हवा को रोकने के लिये कार्य किया? इसको बनाने में किसने कार्य किया जो नमों और शिव की गति को चुनौति देता रहा? संगठन नहीं व्यक्ति पर केंद्रित राजनीति को केन्द्र बिन्दु मान कार्य करने वाले आखिर एैसे कौन से लोग हैं जिन्होने कांग्रेस मुक्त भारत नमो के सपने को चकना चूर करने में अपना योगदान देते हुये कांग्रेस युक्त दमोह को बनाने में सहयोग किया? भले ही भारतीय जनता पार्टी को प्रदेश में भारी सफलता प्राप्त हो गयी हो परन्तु दमोह जिले में मिली चार सीटों की असफलता लगातार प्रश्रों को उपजा रही है? जिले की एक नगर पालिका परिषद एवं चार नगरपंचायतों में से उसको सिर्फ दमोह नगर पालिका पर जीत प्राप्त हो सकी है। जबकि दो पर कांग्रेस एवं दो पर निर्दलीय ने अपनी जीत दर्ज कराते हुये अपना परचम लहराया। वैसे तो पूर्व से ही यही कयास लगाये जा रहे थे जैसे कि परिणाम सामने आये। परन्तु अगर सही प्रयास किये जाते तो कम से कम पूरी नहीं तो तीन सीटें तो भाजपा जीत सकती थी?
कहीं खुशी कहीं गम-
भारतीय जनता पार्टी की ओर घोषित प्रत्यासी श्रीमती मालती असाटी को मिली जीत से जहां भाजपा खेमें ने प्रसन्नता तो कांग्रेस के लिये परिणाम चौकाने वाले थे,जिसके कारण उसके खेमें सन्नाटा पसर गया।श्रीमती मालती असाटी को 32 हजार 120 मत प्राप्त हुये जबकि कांग्रेस की श्रीमती चमेली जैन को 27 हजार 864 मत मिले। यहां पर भाजपा प्रत्यासी ने 4 हजार 256 मतों से जीत दर्ज करायी। ज्ञात हो कि यहां पर जिस प्रकार से कांगे्रस ने अपने प्रत्यासी के समर्थन में हवा बनायी थी और जातिगत समीकरण बनाने का प्रयास किया था। जब अन्य समाज ने एक एक समाज एवं व्यक्ति विशेष उपज रहे आक्रोश को मतदान में मतदाताओं ने परिवर्तित कर दिया तो वह दाव उसके लिये उल्टा साबित हो गया। सूत्रों की माने तो कांग्रेस के लिये अति विश्वास यहां हार का कारण बना।
इतना सन्नाटा क्यों है भाई?-
भारतीय जनता पार्टी को मिली दमोह नगरपालिका परिषद के निर्वाचन में मिली सफलता के बाद भाजपा कार्यालय में पसरा सन्नाटा परिणाम आने की संध्या से लेकर चर्चाओं में आज भी बना हुआ ? अंधेरे में छाया कार्यालय तथा अनेक चर्चित पदाधिकारियों के चेहरों पर उभरते भाव लगातार कुछ न कुछ बयां करते होने की बात इस समय जन चर्चा में बनी हुई है? लोगों के मुंह से यह निकलना कि इतना सन्नाटा क्यों है भाई? यह बात अलग है कि पार्टी को जिले की चार सीटों पर पराजय का मुंह देखना पडा परन्तु नगर में तो उसको अच्छी सफलता प्राप्त हुई है। क्या यह बात सही नहीं है कि मालती की जीत ने जिले में भाजपा की नाक को बचाने का कार्य किया है?
क्या है मालती को ताज का राज-
नगर पालिका परिषद में श्रीमती मालती असाटी की जीत पर भले ही भाजपा अपनी पीठ थप थपाये परन्तु देखा जाये तो यह विजय उसको एैसे ही नहीं मिल गयी? एैसी विषम परिस्थितियो में जब असंतुष्टों की संख्या लगातार बढ रही हो,प्रत्यासी के लिये अचानक दावेदारों की संख्या में ईजाफा हो?भीतरघातियों की कमी न हो और सिर्फ अपने लिये कार्य करने वाले ज्यादा दिखलायी दे रहे हों? एैसे में मालती असाटी की जीत किसी चमतकार से कम नहीं कही जा सकती है। इस जीत के पीछे के कुछ प्रमुख कारण उभरकर सामने आये हैं उनमें सबसे प्रमुख वह है जिसमें नेता नहीं मतदाता पर ध्यान केंद्रित किया गया। जी हां यह वह सच्चाई है जिसमें लोकसभा चुनाव में चौकाने वाला परिणाम देश के सामने रखने में महत्वपूर्ण निभाने वाला राष्ट्रवादी संगठन ने कार्य किया। जिसने मतदाताओं का मन बना उसको बाहर निकलने और भाजपा प्रत्यासी के पक्ष में मतदान करने के लिये प्रेरित किया। दूसरा प्रमुख कारण है एक समाज एवं व्यक्ति के प्रति आक्रोश जिसने मतदाता को कांग्रेस के विरोध में वोट करने के लिये प्रेरित किया। तीसरा कारण एक जमीनी कार्यकर्ता के साथ ही अनुभवी,मिलनसार,संघर्षशील प्रत्यासी के रूप में मालती की छबि बनना। यह बात अलग है कि चर्चित नेता अपनी पीठ थप थपाने में लगे हों कि सफलता के पीछे उनका हाथ है परन्तु सच्चाई वह भी जानते हैं?
संगठन नगर तक ही सीमित रहा-
उक्त निर्वाचन की प्रक्रिया में देखा जाये तो दमोह नगर के अलावा भाजपा संगठन या तो दिखलायी नहीं दिया और अगर दिखा तो नाम मात्र के लिये। टिकिट वितरण के दौरान एक विशेष जगह से संचालन होने की बात लगातार सामने आने तथा हस्तक्षेप के चलते या तो कार्यकर्ता बागी हो गये या फिर वह भीतरघात करते रहे? बतलाया जाता है कि भाजपा जिला संगठन की इसी प्रकार की कार्यप्रणाली का परिणाम भाजपा को चुनाव में आये परिणामों में भोगना पडा? वह दमोह नगर की टिकिट वितरण को लेकर ही ज्यादा उलझा रहा। वहीं प्रचार प्रसार के मामले में भी वह अन्य क्षेत्रों में पीछे ही रहा। पार्टी कार्यालय द्वारा जारी समाचार कभी कभार ही हुये जबकि नगर को छोडकर अन्य क्षेत्रों की संख्या न्यून ही रही। छपा और दिखा रोग से पीडित चर्चित नेता सोशल मीडिया पर अपनी तस्वीर को डाल खुश होते रहे।
रिपोर्ट :- डा.एल.एन.वैष्णव