मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के विधानसभा क्षेत्र बुधनी पर घमासान अब तय हो चुका है। इसका कुछ अंदाजा आज शिवराज सिंह के बयानों की लड़ी से लगा जिसका मकसद दिवाली बाद चुनावी पटाखों से विरोधी खेमे में चिंगारी सुलगाना था।
शिवराज ने बुधनी से कांग्रेस उम्मीदवार अरुण यादव पर ‘प्यार और सहानुभूति’ बरसाने के बहाने विरोधियों को कई मोर्चों पर घेरने की कोशिश की। उ
उन्होंने मीडिया से बात करते हुए कहा, “तीन महीने में अरुण यादव के साथ दो बार अन्याय हुआ है। पहले अध्यक्ष पद से हटाया फिर बुधनी से टिकट दे दिया।”
शिवराज ने एक बयान से कई निशाने साधने की कोशिश की है। दरअसल, कांग्रेस ने काफी विचार मंथन के बाद बुधनी से पूर्व प्रदेश अध्यक्ष अरुण यादव को शिवराज के सामने खड़ा किया है।
अरुण यादव कुछ वक्त पहले तक कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष थे। लेकिन अप्रैल में उनकी जगह कद्दावर नेता कमलनाथ के हाथों में पार्टी ने प्रदेश की कमान सौंपना मुनासिब समझा। यादव ने यहां तक कहा कि वो अब कोई चुनाव नहीं लड़ेंगे। न विधानसभा, न लोकसभा।
आपको बता दें कि यादव दो बार लोकसभा सांसद रह चुके हैं। लेकिन, बाद में सब ठीक हो गया। अरुण यादव ने कहा कि पार्टी अध्यक्ष राहुल गांधी का हर फैसला मान्य है। कमलनाथ पर भरोसा है और प्रदेश में बदलाव की जरूरत थी।
शिवराज, अरुण यादव की पुरानी दुखती रग को टटोल कर दर्द उठने का इंतजार कर रहे हैं, जो ताजा घटनाक्रम देखते हुए दूर की कौड़ी ही दिखती है।
दूसरा, बुधनी से यादव के लड़ने की बात करते हुए वो जताना चाहते है कि ये शायद अरुण यादव के लिए ‘राजनीतिक आत्महत्या’ का मामला साबित होने जा रहा है।
शिवराज कहना चाहते हैं कि बुधनी के मैदान में उनके सामने कोई नहीं टिक सकता। ये मनोवैज्ञानिक जीत हासिल करने का पैंतरा है।
शिवराज यहीं नहीं रुके। उन्होंने तो ओबीसी कार्ड भी खेल दिया। उन्होंने कहा, ” हम सीधे सादे पिछड़े लोग हैं। कई बार शिकार होते रहते हैं।”
माना जा रहा है कि ओबीसी वोट अपने पाले में खींचने के लिए ही कांग्रेस ने अरुण यादव पर दांव खेला है। बता दें कि शिवराज सिंह भी ओबीसी के किरार समुदाय से आते हैं।
बुधनी कहने को शिवराज का गढ़ है। अपना पहला चुनाव शिवराज ने सीहोरी जिले की इसी सीट से 1990 में जीता था। 2006 के उपचुनाव में सीएम पद पर रहते हुए उन्होंने यहां जीत हासिल की।
जिसके बाद 2008 और 2013 के चुनावों में भी वो बुधनी से विजयी हुए। इस बार देखना दिलचस्प होगा कि शिवराज जीत की परंपरा कायम रख पाते हैं या नहीं?